दो प्रेरणादायक कहानियां “याद्दाश्‍त” और “तीसरा मित्र”

याद्दाश्‍त – कमलेश कुमार (Mother Love Short Story in Hindi)

बढ़ती उम्र के साथ शांतादेवी की याद्दाशत साथ छोड़ रही थी। चीजें कहीं भी रखकर भूल जातीं, दोबारा दवा खा लेतीं। शाम को पार्क में टहलने जातीं तो वापसी का रास्‍ता भूल जाती और कोई पड़ोसी घर तक छोड़ने आता।

कई बार इस वजह से बहू-बेटे को बहुत परेशानी होती थी। शांतादेवी को अहसास था कि उनकी वजह से सब बहुत परेशान हो रहे हैं। एक दिन बेटे के ऑफिस से लौटने के बाद वे उसके पास पहुंची और बोली, ‘बेटा, मुझे वृद्धाश्रम छोड़ आ। मेरी भूलने की यह आदत सबे जी का जंजाल बन रही है’।

मां की बात पर दुखी बेटा कुह कहता, इससे पहले ही बहू बोल पड़ी, ‘मां जी, आपकी याद्दाश्‍त उम्र की वजह से थोड़ी कमजोर हो गई है। हमारी नहीं। परिवार के लिए आपका प्रेम, त्‍याग, समर्पण हम नहीं भूले हैं।

आपके बेटे को उनके लिए उठाए गए आपके सारे कष्‍ट याद हैं। मुझ नई-नवेली सहमी बहू को आपका जो स्‍नेह और दुलार मिला था, वह मुझे याद है। हम कुछ भूले नहीं है। आप हमेशा हमारे साथ रहेंगी। आप कुछ भी भूलिए, बस हमें मत भूलिएगा।


तीसरा मित्र – सुरेश कुशवाहा तन्‍मय ( Friendship Story in Hindi)

एक पुराने मित्र से भेंट हुई। बातेां के बीच में अचानक उसने बताया- ‘अरे दो दिन पहले हमारे तीसरे मित्र दनेश से भी भेंट हुई थी, तुम्‍हारे बारे में बता रहा था कि…’

‘क्‍या बता रहा था वह शेर की नकली खाल ओढे सियार मेरी बुराई ही कर रहा होगा। सच बताऊं यार, वह आदमी कहीं से भी ठीक नहीं है। वह तो हम ही लोग हैं जो जैसे-तैसे उससे दोस्‍ती निभाते चले आ रहे हैं, वरना तो वह किसी भी लायक नहीं है।’ दिनेश का नाम सुनते ही मै एकदम से आवेश में आ गया था। हम दोनों साहित्‍य की एक ही विघा में कलम चला रहे थे और प्रतिद्वंद्विता के चलते अनजाने ही वह मेरी ईर्ष्‍या का कारण बन गया था। मित्र ने मुझे बीच में ही टोकते हुए कहा- ‘यार, तुम जिसकी इतनी बुराई कर रहे हो वह तो लगभग पूरे समय तुम्‍हारी प्रशंसा करता रहा। बता रहा था कि तुम अब राष्‍ट्रीय स्‍तर के लेखकों की श्रेणी में गिने जाने लगे हो, यह भी कि साहित्‍य के क्षेत्र में उसने तुमसे बहुत कुछ सीखा है, इस मायने में तुम उसके गुरू जैसे हो।

तुम्‍हारी प्रकाशित सभी पुस्‍तकों के बारे में भी जानकारी दी। समझ नहीं पा रहा हूं कि जुम किस बात के लिए उसकी इतनी बुराई कर रहे हो ? मैं हैरान हूं कि तुम्‍हारी और उसकी सोच में इतना अंतर किस कारण है ?’ यह सुनकर मुझे अपनी क्षुद्र सोच पर आत्‍मग्‍लानि होने लगी। मैंने मित्र को धन्‍यवाद दिया और साहस दिनेश के घर की ओर चल दिया।



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