असली चेहरा!
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सोसाइटी की चार वायोव़द्ध महिलाओं को संमानित करके सोसाइटी के सचिव भरत जी ने तमाम महिलाओं के मन में अपनी एक खास जगह बना ली थी। अपने उद्बोधन में जब उन्होंने कहा था कि न सिर्फ हमें स्वयं हर महिला का सम्मान करना चाहिए बल्कि अपने बच्चों को भी ऐसा करने की शिक्षा देनी चाहिए तो सबसे ज्यादा तालियां मिस आहूजा ने ही बजाई थी। उसी समारोह में भरत जी ने चार दिन बाद अाने वाले होली के त्योहार को सोसाइटी में सामूहिक रूप से मनाने का प्रस्ताव पारित किया था।
सोसाइटी के प्रांगण में सभी रंग के अबीर-गुलाल को खूबसूरती से प्लेटों में सजा कर रखा गया था। अति उत्साही लोगों के लिए पक्के रंग और पानी की व्यवस्था भी की गई थी। अपने फ्लैट से निकल कर आती मिस आहूजा को देखते ही भरत जी खिल उठे। वे रंग लेकर उसकी तरफ बढ़े और अपने खुरदरे हाथों से रगड़ते हुए ढेर सा गुलाल मिस आहूजा के गोरे चेहरे पर मल दिया। इससे पहले कि वे मौका देखकर चौका लगाते, किसी शरारती बच्चे ने पिचकारी की तेज धार उनके चेहरे पर मार दी। मिस आहूजा को उनका असली चेहरा अब साफ-साफ नजर आ रहा था।
– इंजीनियर आशा शर्मा
ज्ञान!
दादा-पोता चांदनी रात में छत पर थे। दादा ने पोते को चांद दिखाते हुए पूछा- क्या तुम चांद पर जाकर बैठना चाहोगे? पोते ने जवाब दिया- बिल्कुल नहीं। मैं उस प्लेट में जाकर बैठूंगा तो लुढ़क कर धरती पर आ गिरूंगा। मैं तो धरती पर ही ठीक हूं। आप कल पापा अंकल वगैरह को कह ही रहे थे कि इंसान चाहे कितना ही ऊंचा उठ जाए, पांव जमीन पर ही रहने चाहिए। पोते द्वारा बॉल जैसे गोल चांद को प्लेट कहने पर भी दादा खुश थे। उनकी कल कही गई बात को बड़ों ने माना हो या नहीं, छोटा मानने को तैयार है।
– गोविंद शर्मा