ईश्वर की रचना – कितनी अदभुद! कितनी गहन! कितनी सरल!

ईश्वर की रचना – कितनी अदभुद!, कितनी गहन!, कितनी सीधी(सरल)

ईश्वर की रचना कितनी अद्भुद है, हम जितना चिंतन करते हैं प्रभु की इस दुनिया का, उतने ही नए-नए अहसास होते है। आज आपसे ऐसे ही कुछ अहसासों के बारे में जिक्र करना चाहती हूँ :-

1:- हमारी काया, यह मानव देह, इसके हर अंग का कितना महत्व है, सबके काम भगवान ने कितने अविश्वश्नीय बनाये है कि डॉक्‍टर इस देह से रोज नीत नए परिवर्तन का अध्ययन करते हैं, फिर भी हर पल नया अहसास वह पाते है।

हमें भूख क्यू लगती है,
खाना कैसे पच जाता है,
ब्लड सर्कुलेशन सिस्टम GOD ने गजब का बनाया है,
दिमाग कि अजीब पहेली है इत्यादि।

2:- एक मानव देह से दूसरी मानव देह का जन्म, अतुलनीय रचना प्रभु की। जितना सोचे उतना प्रभु का धन्यवाद्! यह सब तो प्रभु ने हमें आशीर्वाद के रूप में देकर भेजा है!

अब कुछ ऐसे रोचक अहसास जो दुनियाँ में हम महसूस करते है:-

1:- एक बच्चा जब घर में आता है तो पति-पत्नी एक पल में पेरेंट्स (माता-पिता) बन जाते हैं, उनकी अलग विचारधाराएं उस बच्चे के लिए एक बन जाती है। (कितना बड़ा मानसिक परिवर्तन एक पल में)

2:- बेटा होते ही पिता का सीना फुल जाता है, और माँ अपने आप को धन्य मानती है कि उसने परिवार को कुलदीपक दिया है, यह अहसास अगर Normal रहता है तो बच्चा बड़ा होकर अपने पेरेंट्स का ख्याल रखता है और उनका बुढ़ापा भी अच्छा व्यतीत होता है। वही उसके विपरीत अगर पिता का अहम् बढ़ता जाता है तो उस बच्चे के बड़े होने पर पिता के वह सपने कभी पुरे नहीं हो पाते जो उसने बच्चे से उम्मीद किये थे। अगर ज्यादा प्यार बचपन में मिलता है तो बच्चा जिद्दी होता जाता है, अगर ज्यादा गुस्सा देखता है परिवार में तो चिड़चिड़ा हो जाता है, और सीधी सच्ची लाइफ देखता है तो अच्छा इंसान बनता है।

ऐसा क्यू होता है???? इसमें प्रभु कि क्या रचना ???

जब चिंतन करेंगे तो पाएंगे कि:-

1:- भगवत गीता कहती है कि:- जो भी बच्चा घर में आ रहा है वह अपने पिछले कर्म के अनुसार इस दुनिया में जन्म लेता है, पेरेंट्स सिर्फ माध्यम है उसे दुनिया में लाने के लिए। अगर माध्यम अपने आप को कर्त्ता समझने लगे तो उस अभिमान को तोड़ने के लिए प्रभु ने बुढ़ापा बनाया है। एक माता-पिता का कर्त्तव्य बच्चे को अच्छी परवरिश और समझ देना है, बाकि वह क्या बनता है और बनेगा? यह उसके कर्म Already तय कर के आया है। इतना जरूर है कि अगर माता-पिता के रूप में आप बच्चे को प्यार और समझ देंगे बचपन में तो बच्चा उसे वापस बुढ़ापे में आपको वापिस कर देगा, (प्यार के बदले सेवा के रूप में देगा) और (गुस्से (व्यस्तता) का बदला जवानी में वह रुपये कमाने में व्यस्त होगा और बुढ़ापे में माँ बाप अकेले नौकर के भरोसे।) कहते है:- “न बचपन और बुढ़ापा एक समान”, “बुढ़ापा है बचपन कि पुनरावृति “

“जब बच्चा छोटा होता है, कुछ आता नहीं तो पेरेंट्स उसको सिखाते है, प्यार करते है। प्रभु ने रचना ऐसी बनायीं कि उन्ही पेरेंट्स को वापस बच्चे कि बुढ़ापे में जरुरत होती है।

“यह है प्रभु कि समानता (BALANCING in RELATIONS), कोई किसी का नहीं रख सकता – न प्यार, न नफरत”
ALL SHOULD BE BALANCE)

2:- आपने कभी सोचा है:- पति-पत्नी भी हमेशा Two opposite सोच के साथ जीवन गुजार देते है। हमेशा लुक में देखेंगे तो एक गोरा होगा दूसरा थोड़ा काला। अगर पति पॉजिटिव THOUGHT का होगा तो पत्नी थोड़ी NEGATIVE सोच वाली। पति कंजूस और पत्नी थोड़ा खर्चीली। पति Caring और पत्नी Busy और Not too care for LOVE! इत्यादि…

3:- प्रभु ने दो विभिन्न सोच को एक किया है, कभी एक मयान में दो तलवार नहीं देखी हम सबने।

प्रभु ने हमे हर छोटी बड़ी घटना से सिखाया है कि अच्छे कर्म हमे ख़ुशी देते है और बुरे कर्म आज नहीं तो कल दुःख ही देंगे। यह कर्म कि गणित उस परमात्मा का सबसे बड़ा विज्ञानं है जो हम सब इन्सान भूल कर अपनी गणित चलाना चाहते है। कितने मूढ़ प्राणी है हम, जो दिमाग परमात्मा ने अच्छे उपयोग के लिए दिया उसे चालाकी में Use करके भगवान को ही छलना चाहते है!

“ऐसी कही बातें हम सब के आस-पास होती है जो हमे प्रभु का अहसास कराती है कि प्रकृति की कुछ तो न्याय व्यवस्था है। समझो तो सीधी बात है कि जो देंगे वो पाएंगे, गहन ऐसी ही छोटे से छोटे पाप और पुण्य का रिजल्ट मिलता है और अद्धभूत इसलिए लगती है कि प्रभु यह सब ध्यान और हिसाब हमारा कैसे रखता है?”


Writer Shweta Jhanwar Bhilwara

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