शुरूआती सफेद दाग (विटिलिगो) में कारगर है होम्‍योपैथी चिकित्‍सा!

भारत में सफेद दाग के प्रति बहुत भ्रांतियां है, इसे सफेद कुष्‍ठ के नाम से भी जाना जाता है। भारतवर्ष में कुल जनसंख्‍या का लगभग 1% से 8% के मध्‍य विटिलिगो के रोगी हैं। विश्र्व जनसंख्‍या का 1% लोग इस रोग से ग्रसित हैं।

██ सफेद दाग क्‍या है ?
विटिलिगो यानी सफेद दाग एक त्‍वचा का रोग है, इसमें इंसान के शरीर के विभिन्‍न स्‍थानों पर सफेद दाग /धब्‍बे दिखाई देते हैं। इसमें त्‍वचा के प्राकृतिक रंग के स्‍थान पर छोटे-छोटे सफेद धब्‍बे दिखाई देते हैं। प्रारम्‍भ में रोगी के शरीर पर जैसे साथ, पांव, कोहनी, गर्दन, कमर, चेहरे, होंठ और जाननांगों आदि पर छोटे-छोटे सफेद धब्‍बे निकलते है। ये आपस में मिलकर बड़ा धब्‍बा बना लेते हैं। इस प्रकार शरीर के विभिन्‍न्‍ भागों में सफेद दाग दिखाई देते हैं। इस रोग में रोगी को किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं होती, परंतु सफेद दाग चेहरे, होंठ, हाथ, पांव, आदि पर दिखाई देने के कारण रोगी कुरूप दिखाई देता है, इस कारण रोगी तनाव, हीन भावना व डिप्रेशन में रहता है।

██ कारण क्‍या है ?
त्‍वचा का प्राकृतिक रंग बनाने वाली कोशिकाएं जिन्‍हें ‘मेलेनोसाइट्स’ कहते हैं, किसी कारण से नष्‍ट होने लगती हैं तथा त्‍वचा का रंग सफेद धब्‍बों में दिखाई देने लगता है। विटिलिगो एक ऑटोइम्‍यून बीमारी है। इसमें शरीर की स्‍वस्‍थ कोशिकाएं आपस में नष्‍ट होने लगती हैं। विटिलिगो में भी मेलेनोसाइट कोशिकाएं एक दूसरे को नष्‍ट करने लगती है। इस रोग के कई कारण हो सकते है जैसे- आनुवांशिकी, दुर्बल्‍यता, बच्‍चों में पेट के कृमि, चिंता, तनाव आदि लेकिन अभी तक शोध में इस रोग के मुख्‍य कारणों का पता नहीं लगा है।

██ विटिलिगो के क्‍या लक्षण है ?
रोगी के शरीर पर छोटे-छोटे सफेद दाग/धब्‍बे दिखाई देते हैं। कुछ रोगियों में थोड़ी खुजली पाई जाती है। धीरे-धीरे ये सफेद दाग आपस में मिलकर बड़ा धब्‍बा बना लेते हैं। कुछ रोगियों में धब्‍बों के बढ़ने की गति धीमी होती है और कुछ में तेज होती है। इनके अतिरिक्‍त कोई विशेष लक्षण रोगी में नहीं पाए जाते।

██ सफेद दाग के प्रकार
• फोकल विटिलिगो – इसमें छोटे-छोटे धब्‍बे शरीर के किसी विशेष भाग में दिखाई देते है।
• एक्रोफेसियल विटिलिगो – इसमें सफेद दाग चेहरे, सिर तथा हाथ पर दिखाई देते है।
• म्‍यूकोजल विटिलिगो – जब सफेद दाग, होंठ, आंखों की पलकों, जननांग, गुदा आदि में होते है, अर्थात् जिस स्‍थान पर चमड़ी व म्‍यूकस मैम्‍ब्रेन आपस में मिलता है।
• यूनिवर्सल विटिलिगो – शरीर के अधिकतर भागों पर सफेद दाग दिखाई देते हैं। शरीर के बाल भी सफेद हो जाते हैं तथा रोग तेजी से बढ़ता है।

██ विटिलिगो का निदान
इस रोग को आसानी से पहचाना जाता है। अन्‍य रोगों से अंतर स्‍पष्‍ट करने के लिए वुड लैम्‍प टेस्‍ट, स्किन टेस्‍ट और बायेप्‍सी की जाती है।

██ होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा
► होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा विटिलिगो रोग की शुरूआती अवस्‍था में बहुत ही कारगर है। रोगी के संपूण लक्षणों, रोगी की प्रकृति तथा उनके मानसिक अवस्‍था व संपूण लक्षणों के आधार पर उपयुक्‍त दवा दी जाती है। इस रोग में कम से कम 6 माह से 1 वर्ष तक उपचार कराना जरूरी होता है।

► यदि किसी रोगी के होंठ/नाक अथवा जननांगो में सफेद दाग है तो वह एक होम्‍योपैथिक दवा सप्‍ताह में एक बार लम्‍बे समय तक लेने से लाभ होता है। होम्‍योपैथी विशेषज्ञ से ही इसकी चिकित्‍सा कराई जानी चाहिए।

██ विटिलिगो रोग से बचाव
संतुलित भोजन, व्‍यायाम, योग और तनाव से दूरी।
अपनी जीवनशैली को आरामतलब नहीं बनाकर काम में व्‍यस्‍त रहना चाहिए। खाने-पीने में अधिक चटपटा, खटाई कम लें। बच्‍चों के चेहरे पर हल्‍के भूरे दाग उदरकृमि के कारण हो जाते है। अत: दुर्बलता एवं कृमि की चिकित्‍सा लेनी चाहिए।
चोट लगने, चलने अथवा शरीर पर हल्‍के भूरे रंग के धब्‍बे होने पर शीघ्र निदान कराकर उपयुक्‍त चिकित्‍सा लेनी चाहिए। कुछ अन्‍य रोगों में भी हल्‍के सफेद दाग पाए जाते हैं। जैसे- दुर्बलता, पिटिराईसिस, कुष्‍ठ रोग आदि, इनकी चिकित्‍सा करानी चाहिए।

██ समाज में फैली भ्रांतियां और निवारण
• छूत का रोग नहीं है – माना जाता है कि ये एक छूत का रोग है, जो संपर्क में आने से दूसरे व्‍यक्ति को भी यह रोग फैलता है। लेकिन यह बिल्‍कुल असत्‍य है, विटिलिगो छूत का रोग नहीं है। संपर्क में आने, छूने, साथ में रहने से यह रोग नहीं फैलता।

• यह रोग आनुवांशिक है – धारणा यह है कि मां-बाप को यदि यह रोग हो तो बच्‍चों मे भी हो जाता है। कुछ अपवादों को छोड़कर यह आवश्‍यक नहीं है कि माता-पिता को हो तो बच्‍चों में भी होता ही हो। केवल 10 प्रतिशत लोगों में ऐसा पाया जा सकता है।

• यह एक सफेद कुष्‍ठ रोग है – यह धारणा भी बिल्‍कुल मिथ्‍या है। यह कुष्‍ठ रोग नहीं है। आम लोगों को सफेद दाग से ग्रसित रोगी से घृणा करने की आपेक्षा उन्‍हें मानसिक रूप से सुदृढ़ बनाना चाहिए और समाज को अपनाना चाहिए।

इस रोग की प्रारंभिक अवस्‍था में निदान करवाकर उचित चिकित्‍सा लेनी चाहिए। यहां यह स्‍पष्‍ट करना आवश्‍यक है कि यदि रोग शरीर के अधिकांश भाग में फैल जाता है तथा बाल और रोम भी सफेद हो जाते हैं, तब इस रोग को असाध्‍य माना जाता है इस अवस्‍था में रोगी को किसी भी चिकित्‍सा पद्धति से निरोग नहीं किया जा सकता है। ऐसी अवस्‍था में इस रोग को पूरी तरह से निरोग करने वाले भ्रामक विज्ञापनों से बचना चाहिए और इनकी ठगी में नहीं आएं। अपना पैसा और समय बर्बाद होने से बचाएं।

डॉ. दिनेश कुमार नागर,
होम्‍योपैथी विशेषज्ञ, जयपुर


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