नसीहत – लघुकथा

नसीहत

मुंबई स्‍टेशन पर खड़ी ट्रेन का इंजतार कर रही थी। मैं प्‍लेटफॉर्म पर बैठी पत्रिका पढ़ने का प्रयास कर रही थी। एक बच्‍चे की गिड़गिड़ाहट ने तन्‍मयता भंग की। सुबू को भूक्‍खा हैं मेम साब! पेट के वास्‍ते कुछ दो ना! आपका बच्‍चा सुखी रहेगा।

देखा तो ठीक-ठाक सा चंट बच्‍चा लगा। मैंने वापस नजरें पत्रिका पर जड़ दी। उसकी मांग फिर से हुईा मुंबई में किसी को नजर भर देखने पर भी डर लगता है। ऊपर से मेरा अकेला होना। सो मैंने मन में सोचा भीख देना तो मेरे सिद्धांत के खिलाफ है। मैंने पीछा छुड़ने के लिए नसीहत दे डाली। जो सबके लिए आसान है। ‘जाओ मांगते शर्म नहीं आती’

फिर अहसास हुआ बच्‍चा वास्‍तव में भूखा है। सोचा पैसे के बदले खाना खरीद कर दिया जा सकता है, अचानक बात याद आ गई कि आजकल आप पर किसी भी तरह से जहर खिलाने का इल्‍जाम लग सकता है। सो मुंह फेर लेने की जुगत सोजने लगी। बच्‍चा शायद मानव मन को पढ़ने में समर्थ था। तपाक से बोला- आती तो है मेमसाहब पर कौन काम देता है। मेरे कितनी देर पहले पूछे गए प्रश्‍न के जवाब में उसने बोलना शुरू किया। हम सड़क छाप को कौन काम देगा। क्‍यों नहीं देगा? पहले ईमानदारी और मेहनत से काम करने का वादा करो। घरेलू नौकरी की कमी तो हर जगह है पर सच तो यह है कि तुम लोग काम करना चाहो तब न। फोकट का खाना मिले तो काम क्‍यों करोगे भला?

वह मुझे ध्‍यान से देख रहा था मानो अभी कुछ छीन का भाग जाएगा। जाओ तंग मत करो। लड़का तेज भी था और अडि़यल भी। टला नहीं बोला आपको नौकर की जरूरत है? हां।

तो अपुन को रख लो न । आई शपथ । जो बोलेगा सब करेगा घर का कोने में पड़ा रहेगा। मैं पशो-पेश में थी। मेरी नसीहत मुण्‍ पर भारी पड़ने लगी थी वैसे मुझे एक नौकर की सख्‍त जरूरत थी। सोच रही थी कि यह छोटा है जैसा सिखाऊंगी सीख जाएगा। पगार भी मेरे हिसाब से तय करूंगी। तुम्‍हारे मां-बाप से मिलूंगी पहले। आवाज आई मां अपना बचपन में ही मर गया, बाप ने तीसरी शादी बनाया। सौतेली मां ने निकाल दिया घर से। बोत खडुस है वो, अक्‍खा दिन भुक्‍का रखती थी। एक दिन पड़ोस की बेकरी से पाव चोरी की सेठ ने मारा और दे दिया पुलिस को मां-बाप बोला मैं उसका बच्‍चा हीच नहीं। थाने से छूटा तो हमाली करने लगा। पन बिल्‍ला मांगता इधर हमाली के वास्‍ते। मेरी ट्रेन दस मिनट में आने वाली थी। तुम मन पक्‍का करो अपुन दगा नहीं देगा रखलो न मेम साहब। उस बच्‍चे के इतिहास ने मेरी सारी हिम्‍मत निचोड़ ली थी। सोचा, घर थोड़े लुटवाना है मुझे।

मैंने हिम्‍मत जुटाई और बोली देखो, मेरे पास पहले ही एक नौकर है। लो दस रूपया कोई काम कर लेना। प्रतिक्रिया में वो तमतमा उठा। नोट मेरे चेहरे पर उछाल कर बोला- भीख दो मेमसाब, सीख क्‍यूं देता है। वाकई सलाह देना आसान है पर स्‍वयं उस पर अमल करने की कल्‍पना से ही हम सिहर जाते हैं।



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