जानें कारण जिनसे बच्चें खो रहे है अपना बचपन!!

!! खोता बिखरता हुआ बचपन !!

बचपन की परिभाषा एक नजर में वह पल जहा सिर्फ प्यार और प्यार भरा स्पर्श सब अपनों से मिलता है, पुरे परिवार वाले बचपन में बिना किसी स्वार्थ के सिर्फ प्यार करते हैं, बच्चे की मासूम हरकतें, उनका तुतला के बोलना, धीरे धीरे गिर के उठना, खिल के हँसना, इन सब में भगवान की एक जलक देखने को मिलती है, और पेरेंट्स उन पलों के लिए सब कुछ कुर्बान कर देते है। बचपन का दिया प्यार ही बुढ़ापे में केयरिंग बन कर वापस पेरेंट्स को मिलता है।

पर आज कल बच्चों का बचपन पहले जैसा Loving और केयरिंग, भावनाओं से भरा हुआ नहीं रहा। आज कल कुछ बच्चे अपना बचपन मज़बूरी में खो देतें हें। तो कुछ बच्चे पेरेंट्स के दिखावे के बोझ के आगे दब कर अपनी मासूमियत खो देते है, कुछ बच्चे अपने माता-पिता के गलत निर्णय के आगे अपना बचपन अकेले में गुजर देते है…

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जानें कुछ ऐसे ही कारण जिनसे बच्चे खो रहे है अपना बचपन:-

1. बढ़ता आधुनिकीकरण, जिसके चलते पेरेंट्स हर वक़्त मोबाइल, टीवी और अन्य साधनो में व्यस्त रहते हैं, और बच्चा बचपन में भी सिर्फ सोना उठना, दूध पीने के अलावा 2-4 खिलोने के साथ पूरा बचपन निकल देता हैं। आजकल तो बच्चा ज्यादा रोये तो मोबाइल तक देके पेरेंट्स अपने काम पर लग जाते है। क्या यह एक मासूम बचपन है???

2. ज्यादा मॉडर्न कल्चर के नाम पर लड़कियाँ अपनी शादी से पहले अगर कोई गलती कर बैठे तो आने वाली संतान अपना बचपन अनाथालय या किसी सड़क पर खो देती है।

3. आज कल पेरेंट्स लड़का-लड़की में भेद नहीं करते, बेटी को भी पढ़ा-लिखा के अपने पैरो पर खड़ी करते हैं, ताकि वह वित्तिय दबाव में न रहे, जो बेटियाँ समझदार होती है वह अपनी पेरेंटिंग (बच्चे का पालन) और अच्छे से करती है, वही कुछ लडकियाँ शादी के बाद अपनी सोच नहीं बदलने के कारण बच्चे को भी अपने करियर और Freedom में बोझ मानने लगती है। अगर पति भी ज्यादा कुछ कहे तो छोड़ने की धमकी मिलती है। और ऐसे पेरेंट्स का बच्चा क्या खूबसूरत बचपन देखेगा??

4. आज कल ज्यादा भ्रूण हत्या के कारण लड़कियां कम और लड़के ज्यादा है, सो लड़के-लड़कियों से शादी उनकी शर्तो को मान कर करते है। सो ज्यादातर परिवार में लड़कियां अपनी मन मर्जी से रहती है, पति अपने तक तो सब निभा लेता है पर जब उनके बच्चे होते है तो उनका बचपन Normal नहीं हमेशा तार्किक वातावरण देख के ही बड़ा होता है। मम्मी कुछ और बोलेगी, पाप कुछ और। चूकि शादी करना समाज के सामने जरुरी था सो कर ली अब पति-पत्नी के विचारो की भिन्नता बच्चें के कोमल दिमाग के लिए बोझ बनती जा रही है।

5. ज्यादा बढ़ता लव मैरिज का चलन कही तो Healthy परिवार बनाता है और कही बिना सोचे समझे शादी के रिश्ते आगे बच्चा करना है या नहीं यह भी एक सवाल बना देता है। ऐसे में यदि लड़के ने सिर्फ लड़की की हर शर्त को मानने के लिए हाँ कही है और अपनी तरफ से उसे कुछ नहीं कहा तो उसका आने वाला बच्चा कभी उसका प्यार पूरा नहीं पा सकता और वह अपने पिता की इच्छाये उस बच्चे के साथ पूरी नहीं कर पायेगा। बच्चे का बचपन दोनों के प्यार के बजाय सिर्फ माँ के हिसाब से चलेगा।

6. जिन पेरेंट्स के इकलौती बेटिया होती है उनमे से कुछ शादी के बाद भी अपने पेरेंट्स की सेवा के आगे अपने ससुराल और अपने बच्चो का बचपन पर विचार तक नहीं करती, और छोटा बच्चा है तो अपने साथ मायके ही ले जाती है, जहा वह अकेला रह जाता है और पिता उस से महीने – 2 महीने में मिलने आ जाता है, कुछ गिफ्ट्स और प्यार लेके, 2-3 दिन पिता के साथ बच्चा एक अलग माहौल महसूस करता है खुश होता है, और अगले ही पल वापस अकेला। वह पत्नी भूल जाती है की वह एक बेटी के साथ पत्नी और माँ भी है, क्या बचपन वापस आएगा क्या??और वही कुछ समझदार लड़कियां मायके और ससुराल दोनों को निभाते हुए बच्चे को पिता से दूर नहीं करती, चाहे खुद थोड़ी तकलीफ ज्यादा देख लेती है और पेरेंट्स को भी अपने साथ या अपने ही शहर में साथ रख के बच्चे को Healthy बचपन देती है।

बच्चे को माता-पिता दोनों का प्यार चाहिए होता है, वह बोल नहीं पाते तो क्या उनकी हँसी खिलखिलाहट दोनों के साथ होती है, दोनों के प्यार के बिना बच्चे अधूरे से लगते है, और पुरे परिवार का प्यार बच्चे को मिलता है तो वह और Lucky (भाग्यशाली) बनते है।

आज के बच्चे कल का भविष्य है और आपके परिवार का चिराग है,
उसे अच्छा प्यार और अपनों के साथ की खुराक दो, वह आप सबको बुढ़ापे में रौशनी देंगे।


Writer Shweta Jhanwar Bhilwara

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