71) मान बड़ाई देखि कर, भक्ति करै संसार। जब देखैं कछु हीनता, अवगुन धरै गंवार।। अर्थ: दूसरों की देखादेखी कुछ लोग सम्मान पाने के लिये परमात्मा की भक्ति करने लगते हैं, पर जब वह…
21) हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास। सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।। अर्थ: यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की…
1) सत्संगति है सूप ज्यों, त्यागै फटकि असार । कहैं कबीर गुरु नाम ले, परसै नहीँ विकार ।। अर्थात :- सत्संग सूप के ही तुल्ये है, वह फटक कर असार का त्याग कर देता…
1) जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान । मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।। अर्थात:- सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य…