वसुधैव कुटुम्बकम – रश्मि किरण

वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ है जहां एक और पूरी वसुधा अर्थात हमारी पृथ्वी को एक परिवार के रूप में बांध देता है वही यह भावनात्मक रूप से मनुष्य को अपने विचारों और कार्यों के प्रभाव को विस्तृत करने की बात कहता है। वसुदेव कुटुंबकम् हमारे हिंदू धर्म जिसे सनातन धर्म भी कहते हैं का मूल मंत्र है। हमारे धर्म में हीं नहीं यह हमारे भारतवर्ष के संस्कार का द्योतक है। विश्व के स्तर पर हम भारतीयों की विचारधारा का यह मूल है। वसुदेव कुटुंबकम् महा उपनिषद व कई अन्य ग्रंथों में लिखा हुआ है। इसका शाब्दिक अर्थ है धरती ही परिवार है। संसद भवन के प्रवेश कक्ष में भी यह लिखा हुआ है। महोपनिषद् अध्याय ४ श्लोक ७१ में यह इस प्रकार उद्धरित है:-

“अयं बंधुरयं नेति गणना लघुचेतसाम्
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्”

अर्थात- यह मेरा बंधु है वह मेरा बंधु नहीं है ऐसा विचार या भेदभाव छोटी चेतना वाले व्यक्ति करते हैं। उदार चरित्र के व्यक्ति संपूर्ण विश्व को ही परिवार मानते हैं ।

‎इतिहास गवाह है कि भारत के महान विचारकों व सम्राटों ने पूरे विश्व के कल्याण के लिए हमेशा प्रयास किया है। उदाहरण के लिए चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान को युद्ध की बुराइयों से जब ज्ञान प्राप्त हुआ तब उन्होंने आत्म शांति के लिए युद्ध से घबराकर बौद्ध धर्म अपनाया । यह उन महान सम्राट हीं नहीं अपितु उन महान भारतीय संस्कार के स्तंभ का उदार व विस्तृत चरित्र हीं है जिसने वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को दर्शाया ओर बौद्ध धर्म का यह संदेश भारत में ही नहीं भारत के बाहर भी स्वयं अपने बच्चों को दूत के रूप में समर्पित कर प्रचार प्रसार किया। जबकि वहीं जितने भी विदेशी हमारे देश की ओर आए सब ने भारत को केवल लूटने का प्रयास किया अपना बाजार ही बस भारत को उन लोगों ने माना। इतना होते हुए भी हमारा इतिहास बताता है कि भारतीयों ने सदैव सभी देशों की संस्कृतियों का, भाषा का, धर्म का आदर किया और अपना हिस्सा सहज ही बना लिया।

‎वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को सुवासित करने के लिए हर व्यक्ति को स्वयं की आत्मा में वसुधैव कुटुंबकम का पुष्प विकसित करना होगा। एक व्यक्ति एक व्यक्ति से मिलकर परिवार बनाता है परिवार से समाज और समाज से देश बनता है। देश ही तो मिलकर विश्व बनाते हैं वहीं सभी मनुष्यों का निवास है। सभी मानव एक जैसे दो हाथों दो पैरों वाले जीव होकर भी एक परिवार की तरह नहीं रह पाते। आखिर हमारे विचारकों व ऋषि मुनियों ने अनादिकाल से क्यों इस वसुधैव कुटुंबकम् की धारणा को जनमानस के संस्कार में डालने की कोशिश की है। कारण है अलग-अलग भूखंडों पर अलग-अलग परिस्थितियों से मानव रंग-रूप, खान-पान, अलग वेश-भूषा और प्राकृतिक भिन्नता के कारण अलग-अलग से हो जाते हैं, इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के उत्थान के लिए भिन्नता में समानता स्थापित करने का प्रयास किया । यह विश्व शांति के लिए भी आवश्यक है। मनुष्य अपने भिन्नता के कारण हमेशा ही एक दूसरे से युद्ध करता आया है ।

‎आज भी वसुदेव कुटुंबकम् भारत की विदेश नीति की नींव है। इसके अनेकों उदाहरण हैं। ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नहीं। सबसे सही और सटीक उदाहरण हम अभी हाल की घटना को देखें। यमन में भारी हिंसा और बमबारी हो रही थी। उस तबाही के बीच यमन के उपद्र्वग्रस्त ईलाके मे फंसे लोगो को निकालने के लिये भारत के लोगों का उस देश में हाल के वर्षों मे अब तक का सम्भवत सबसे बड़ा वचाव अभियान ‘ऑपरेशन राहत’ संभव किया गया। ऐसे अनेकों उदाहरण भारत ने विश्व स्तर पर प्रर्दशित किया है।

हमारी इस धरती ने अपने ऊपर जो अंबर का चादर ओढ़ रखा है वह तो हर ओर से एक समान ही दिखता है। धरती पर से चांद और सूरज भी एक से दिखते हैं।

वसुदधैव कुटुंबकम् का आध्यात्मिक दृष्टिकोण अगर समझने की कोशिश करें तो यह बताता है कि अधिक से अधिक लोगों का आत्मीयता के बंधनों में बंधना।यह हर मानव को सुख-दुख को मिल-जुलकर बाँटना सिखाता है। यह ज्ञान देता है कि व्यक्ति को अपने अधिकार को गौण रखते हुए कर्तव्य का पालन करने पर ज्यादा आनंद मिलना चाहिए।

अगर अपनी भिन्नता से ऊपर उठें और उदार चरित्र बने, सारे धर्मों से बढ़कर मानवता को एक धर्म माने, घृणा आदि भेदभाव को भूलें तो वसुदेव कुटुंबकम् का सपना साकार हो सकता है।

– रश्मि किरण



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!