न स्त्री हैं न पुरूष!
एक दिन बादशाह और उसके खोजे (नपुंसक सेवक) से आपस में कुछ बातें हो रही थी, इसी बीच बीरबल की बात आई। तब खोजे ने बीरबल की बड़ी दुर्निन्द की। यह बादशाह का मुँहलगा खोजा था इसलिये खुलेआम उसकी अवहेलना करना उचित न समझकर प्रमाणों द्वारा मुहतोड़ उत्तर देना शुरू किया। वह बोले- तुम स्वयं विचारकर देखो कि मेरे दरबार में बीरबल सा हाजिर जवाब एक आदमी भी नहीं है। खोजा बादशाह के मुख से बीरबल की प्रशंसा सुनकर मनही-मन भड़क उठा और बोला- हुजूर यदि आप बीरबल को हाजिर जवाब बतलाते हैं तो वह मेरे तीन सवालों का जवाब दे। यदि ठीक-ठीक उत्तर दे देगा तो मैं भी उसे श्रष्ठ मान लूँगा। बादशाह ने उससे सवाल पूछने को कहा। खोजा बोला- 1. आकाश में तारों की कितनी संख्या है। 2. दुनियॉं में स्त्री पुरूष अलग-अलग कितने हैं। 3. धरती अपना बीच कहॉं रखती है।
बादशाह खोजे को अपने पास बैठाकर बीरबल को बुलवाने के लिये सिपाही भेजा। जब वह आया तो उससे खोजे के तीनों सवालों का उत्तर मॉंगा। बीरबल चुपके बाजार से एक बड़ा मेढ़ा (नर भेड़) खरीद लाया और उसे बादशाह के सामने खड़ा कर बोला- खोजा साहब! इसके पीठ के बालों की गणना कर लेवें। इसके शरीर में जितने बाल हैं उतने ही आकाश में तारे भी हैं। फिर इधर-उधर गोड़ से पड़ताल कर एक जगह जमीन में खूटी गाड़ कर बोला- पृथ्वीनाथ! पृथ्वी का मध्य यही है, यदि खोजे को यकीन न हो तो स्वयं नाप लें, जब पहले और तीसरे सवालों के बाद दूसरे की बारी आई तो बीरबल हँसा पड़ा परंतु अपना असली भाव छिपाकर उत्तर दिया- गरीब परवर (जो ग़रीब की सहायता करे) स्त्री पुरूषों की संख्या तो इन खोजों के कारण बिगड़ गई है क्योंकि ये न तो स्त्रियों की संख्या में आते हैं और न पुरूषों के ही। यदि सब खोजे तान से मरवा दिये जायँ तो ठीक-ठीक गणना निकल सकती है।
खोजे (नपुंसक सेवक) का मुँह छोटा हो गया। उसके मुँह से एक बात भी न निकली। बादशाह ने बहुत कुछ उसे भला बुरा सुनाया। बिचारा लाज का मारा, दुम दबाकर जनानखाने में चला गया। बादशाह ने बीरबल को पारितोषिक देकर विदा किया।
शब्दों के मतलब:-
ख़ोजा, खोजे = नपुंसक सेवक।
गरीब परवर = जो ग़रीब की सहायता करे।
चार मूर्ख! – Akbar Birbal Funny Story in Hindi
एक दिन मनोरंजन के समय बादशाह के मन में यह बात आई- संसार में मूर्खो की संख्या तो अमित है, परंतु मैं ऐसे चार मूर्ख देखना चाहता हूँ जिनकी जोड़ के दूसरे न हो। उसने बीरबल से कहा- बीरबल! चार मूर्ख इस ढंग के तलाश करो कि जिनकी जोड़ के दूसरे न मिलें। वह बादशाह की आज्ञा मानकर नगर से बाहर निकला। ढूढ़ने वालों को क्या नहीं मिल सकता, केवल सच्ची लगन होनी चाहिये। कुछ दूर जाकर बीरबल को एक आदमी दिखलाई पड़ा जो थाली में पान का एक जोड़ा बीड़ा और मिठाई लिये हुये बड़े उत्साह से नगर की तरफ जल्दी-जल्दी भागा जा रहा था।
बीरबल ने उस आदमी से पूछा- क्यों साहब! यह सब सामान कहॉं लिये जा रहे हो, जो आपका पैर खुशिहाली के कारण जमीन पर नहीं पड़ता, आपके मर्म (भेद, रहस्य) की जानने की मुझे बड़ी इच्छा है अतएव थोड़ा कष्ट कर बतलाते जाइये। उस आमी ने पहले तो इस ख्याल से कुछ हीला हवाली किया कि कहीं उचित समय पर पहुँचने में देर न हो जाय। परंतु जब बीरबल ने उसे छेड़कर कई बार पूछा तो वह मटक कर बोला- यद्यपि मुझे विलम्ब हो रहा है परंतु आपके इतना आग्रह करने पा बतला देना भी जरूरी है। मेरी औरत ने एक दूसरा खसम कर लिया है उससे उसे लड़का पैदा हुआ है, आज बरही है। मैं उसीका बधावा लिये हुए न्यौते में जा रहा हूँ। बीरबल ने उसे अपना नाम बतला कर रोक लिया और बोला- तुझे मेरे साथ बादशाह के पास चलना पड़ेगा, जब मैं छुट्टी दूँगा तब जाना। वह बीरबल का नाम सुनकर डर गया और लाचार होकर उसके साथ हो लिया। वह उसको साथ में लेकर आगे बढ़ा, दैवयोग से रास्ते में एक घोड़ी सवार मिला। वह आप तो घोड़ी पर सवार था परंतु अपने सिर पर घास का बंडल ढो रहा था। बीरबल ने उससे पूछा- क्यों भाई! यह क्या मामला है, आप अपने सिर का बोझ घोड़ी पर लादकर क्यों नहीं ले जाते? उसने कहा- गरीब परवर! इसका कारण यह है कि मेरी घोड़ी गर्भिणी है ऐसी दशा में उसपर इतना बोझ नहीं लादा जा सकता, मुझे ले जा रही है यही क्या कम गनीमत है।
बीरबल इस घोड़ी सवार को भी अपने साथ ले लिया और दोनों को लिये दिये बादशाह के पास पहुँचा। तब बीरबल बोला- पृथ्वीनाथ! चारों मूर्ख आपके सामने उपस्थित हैं। बादशाह तो दो को ही देख रहा था अतएव बोला- तीसरा मूर्ख कहॉं है? बीरबल ने कहा- तीसरा नंबर हुजूर का है जो आपको ऐसे-ऐसे मूर्खो के देखने की इच्छा होती है। चौथा मूर्ख मैं हूँ जो उन्हें ढूढ़कर आपके पास लाजा हूँ। बादशाह को बीरबल के ऐसे उत्तर से बड़ी प्रसन्नता हुई और जब उन्हें उनकी मूर्खता का परिचय मिला तो खिलखिलाकर हँस पड़े।
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