एकान्तवास की व्याख्या
बीरबल का नियम था कि दरबार से फुरसत पाकर वह अपना कुछ समय एकान्तवास में बिताया करता था। एक दिन जब कि वह दरबार से खाली होकर अपने घर लौट रहा था तो मार्ग में उसे एक आदमी मिला।
वह बीरबल से पूछा- महाशय जी! क्या आप कृपा कर मुझे बीरबल के घर का पता बतला सकते हैं?
बीरबल ने कहा- क्यों नहीं बतला सकता। तब वह उसको अपने घर का पता ठिकाना बतला कर वहॉं से चलता हुआ। वह मनुष्य पूछता-पूछता बीरबल के घर जा पहुँचा और उसके घरवालों से बीरबल से मिलने का अनुरोध किया। वे बोले- ताऊजी अभी बाहर गये हैं, ठहर जाओ थोड़ी देर में मुलाकात हो जायेगाी। वह आदमी बीरबल के द्वार पर बैठकर उसके आने की प्रतीक्षा करने लगा।
थोड़ी देर बाद बीरबल लौटकर आया, वह उसे पहचान कर आश्चर्य्यचकित होकर पूछा- दीवन जी! रास्ते में आपसे मेरी मुलाकत हुई थी, परंतु वहॉं पर आपने मुझे अपना परिचय क्यों नहीं दिया।
बीरबल ने कहा- आपका कहना अक्षरस: सत्य है, परंतु अपने मुझसे बीरबल के घर का पता पूछा था। इसलिये मैंने अपने घर का पता बतला दिया, यदि मेरा परिचय पूछे होते तो मैं आपको अपना परिचय देता।
उस आदमी ने कहा- लोगों के मुखसे मैंने ऐसा सुना है कि आप नित्यप्रति अपना थोड़ा समय एकान्त बास में बिताते हैं, सो उसका क्या कारण है?
बोरबल बोला- आपको समझना चाहिये था कि एकान्तबास से बड़ा लाभ होता है। अव्वल तो एकान्त बास में विचारों की सूझ भलीभॉंति होती है, दोयम एकान्त मनन करने का सर्वोतकृष्ट साधन है। यदि आप कहीं अलग बैठकर विचार करेंगे तो आपको अपनी परिस्थिति और की और ही देख पड़ेगी। वह मनुष्य बीरबल के उत्तर से संतुष्ट होर अपने घर लौट गया।
बीरबल की कुरूपता
बीरबल का रंग सॉंवला था। एक दिन दरबार के समय लोगों में मनुष्य की सुंदरता और कुरूपता पर बहस छिड़ी। बहुतेरे लोग बीरबल का स्मरण कर उसकी कुरूपता पर हँस पडे़। उस समय बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं था।, जब कुछ कालोपरान्त लौटकर आया तो दरबारी लोग उसे देखकर जोर-जोर से हँसने लगे। बीरबल चाहता था कि उनके इस आकस्मिक हँसी का कारण पूछे, परंतु कुद सोच-विचार कर चुप रह गया। इधर-उधर की बातें होने लगी। कुछ देर बाद बीरबल को अवसर मिला तो बादशाह से बोला- पृथ्वीनाथ! आज आप लोग बड़े हँसमुख क्यों दीख पड़ते हैं?
बादशाह ने हँसते हुए उत्तर दिया- लोगों के हँसने का कारण तुम्हारी कुरूपता है, वे कहते है- हम लोग गोरे और बीरबल काला कैसे हुआ?
बीरबल बोला- अफसोस कि अभी तक आपको इसका कारण ही नहीं ज्ञात हुआ। बादशाह ने कहा- भला भाई बिना बतलाए यह लोगों को कैसे मालूम हो? आप यदि जानकारी रखते हो तो बला कर सबका भ्रम निवारण करें।
बीरबल ने उत्तर दिया- पृथ्वीनाथ! जिस समय ईश्वर ने सृष्टि की रचना प्रारम्भ की सर्वप्रथम वृक्ष और बैलों की रचना की। पर इतना ही करके वह संतुष्ट नहीं हुआ, तब पशु और पक्षियों की बारी आई। इतना करके कुछ समय तक आनंद उपभेग करता रहा, फिर उससे भी उत्तम जीवों की रचना करने का विचार कर मनुष्यों की रचना की। जब वह अति आनन्दित होकर पहले उसे रूप, दूसरे धन, तीसरे बुद्धि और चौथे बल प्रदान किया।
चारों चीजों की जुदी-जुदी रखकर सब मनुष्यों को फर्माया कि इन चारों में जिसे जो पसंद हो अपनी इच्छानुसार ले लेवे। इस कार्य के लिये कुछ समय भी निर्धारित कर दिया था। मैं बुद्धि लेने में रह गया जब दूसरी चीज लेने गया तो समय बीत चुका था इसलिये कोरा लौटना पड़ा। मैं बुद्धि लेकर रह गया। आप लोग भी धन, रूप, बल के लालच में पउ़कर बुद्धि लेना भूल गये। इसी कारण मैं कुरूप हुआ। बीरबल के उत्तर से बादशाह और दरबारियों का मन टूट गया और फिर वे कभी बीरबल की हँसी न उड़ाई।
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