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Read and Share Akbar aur Birbal Funny, Motivational Story in Hindi for Kids and Students
सच्चे झूठे का भेद
बादशाह और बीरबल में सिद्धान्त निरूपण हो रहा था, इसी के अंतरगत बादशाह ने बीरबल से सच्चे और झूठे का भेद पूछा। बीरबल ने उत्तर दिया- पृथ्वीनाथ! इन दोनों के मध्य उतना ही भेद है जितना कि ऑंख और कानों में है। बादशाह की समझ वहॉं तक न पहुँच सकी इस वास्ते बीरबल से फिर पूछा- क्यों, ऐसा काहे को होता है? बीरबल ने उत्तर दिया- पृथ्वीनाथ! सुनिये, जो बात ऑंखों देखी रहती है वह तो सच्ची और जो कान से सुनी जाती है वह झूठी। बादशाह बीरबल के युक्तिसंगत और तर्कपूर्ण उत्त से संतुष्ट हो गया।
चुप्पा सबसे भला
एक दिन बादशा को एक नई तरंग सूझी। उसने बीरबल को तुरंत आज्ञा दी- बीरबल! एक ऐसा मनुष्य ढ़ँढ़ ला जो सब सयानों का सरताज हो? बीरबल किसी बात से भला कब हताश होने वाला था, उसने झट उत्तर दिया- पृथ्वीनाथ! शीघ्रातिशीघ्र ढूँढ़कर हाजिर करूंगा। परंतु इस काम में दस हजार रूपयों की आवश्यकता है। बादशाह की आज्ञा से बीरबल की तत्काल दस हजार रूपयों की थैली दी गई। बीरबल रूपयों को लेकर अपने घर चला गया। थैली घर पर रख आप ”सौ सयाने का एक सयाना” की फिराक में शहर की गलियों को छानने लगा। मशल मशहूर- जिन खोजा तिन पाइयॉ गहरे पानी पैठ। दैवात उसे एक अहीर मिला। उसको दिहाती चतुर देख बीरबल ने उसे अपने पास बुलाकर उसके कान में समझाया- देखो यदि तुम मेरे कहने के अनुसार करोगे तो मैं तुझे एक सौ रूपया इनाम दूँगा।
ग्वाला भला काहे को इंकार करता, बिचारे ने इकट्ठी सौ रूपयों की गुल्ली आज तक नहीं देखी थी। उसको अपने अनुकूल समझकर बीरबल बोला- देखो मेरे साथ तुम्हें बादशाह के पास चलना होगा, यदि बादशाह तुमसे कुछ पूछें तो एकदम चुप रहजाना। वह बोला- बहुत अच्छा ऐसा ही करूंगा। बीरबल उस अहीर को अच्छे-अच्छे वस्त्रों से सुसज्जित कर शाही दरबार में ले गया और बादशाह के समक्ष खड़ाकर बोला- पृथ्वीनाथ! आपकी आज्ञानुसार सयाना मनुष्य हाजिर है, उसकी परीक्षा कर लें। बादशाह उसे और समीप खड़ा कराकर यों प्रश्न करना प्रारंभ किया- तुम कहॉं रहते हो? तुम्हारे माता-पिता तुमको किस नाम से पुकारते है? कौन सी बात विशेष् जानते हो? बादशाह ने बारी बारी से इसी प्रकार अनेकों प्रश्न किया, परंतु वह तो सोहबल्ले की तरह पहले से ही पढ़ाकर पक्का कर दिया था, उत्तर काहेको देता।
अब बीरबल को उसे सँभलने की बारी आई। वह बोला पृथ्वीनाथ! आपके पूछने का इस आदमी ने यह अर्थ निकाला है कि न जानें बादशाह यह सब बातें पूछकर पीछे क्या करें। क्योंकि ऐसी कहावत उसे पहले ही से याद है- ”राजा योगी अग्नि जल, इनकी उल्टी रीति। डरते रहियो भाइयों थोड़ी पालें प्रीति”। इस वजह से मौन धारण कर लिया है। आपने सुना होगा- चुप्पा सबे भला। बादशाह को बीरबल की शिक्षा से आनंद प्राप्त हुआ और अहीर को घर जाने की छुट्टी मिल गई।
सौवां अंश
एक दिन बादशाह दरबार के कामों से निपटकर संध्या समय आराम बाग में बीरबल से मनोरंजन की बातें कर रहा था। इसी बीच उसने भुलावा देकर पूछा- बीरबल! तुम अनेकों बार अपनी स्त्री के हाथ से हाथ मिलाया होगा, क्या बतला सकते हो, उसके हाथ में कितनी चूडि़यॉं है ? बीरबल ने उत्तर दिया- गरीबपरवर! इधर बहुत दिनों से मुझे अपनी बीबी के हाथ से हाथ मिलाने का सुअवसर नहीं मिला फिर भी मैं विश्वास के साथ कहने को तैयार हूँ कि आप जिस दाढ़ी पर अपना हाथ नित्य फेरते और उसे देखा करते है उसके सौवें हिस्से के बराबर मेरी स्त्री के हाथ में चूडि़यॉ हैं यदि आपको विश्वास न हो तो उन्हे गिनकर अपनी शंका समाधान कर लें।
अधिकतर प्रिय क्या है?
एक दिन बादशाह अपने दरबार में बैठा था और दो वर्षीया शाहजादा सलीम उसकी गोद में सानंद मग्न हो गया और आनन-फानन उसके मन में यह प्रश्न उपस्थित हुआ- जीवधारी को अधिकतर प्रिय क्या है? बादशाह को चुप देखकर सलीम उसका ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट कारने के अभिप्राय से तुतला कर कुछ बोला- उसकी तोतरी बातों ने बादशाह के आनंद को दबा न सका औश्र तत्क्षण समस्त दरबारियों की तरफ लक्ष करके पूछा- इस पृथ्वी पर के प्राणियों को अधिकतर प्रिय क्या है?
दरबारी सोच में पड़ गये, कोई कुछ कहता तो कोई कुछ। अंत में आपस में गोष्टी करने लगे, परंतु फिर भी किसी सिद्धांत पर अटल नहीं हुए। बीरबल की अनुपस्थिति में इन विचारों पर कभी-कभी ऐसी बिपत्ति आ जाया करती थी। यदि बीरबल प्रस्तुत होता तब तो उनका पौ बारह था। बादशाह भी बीरबल के रहते ऐसी-ऐसी बातें किसी दूसरे दरबारी से कभी न पूछता था। आज की सभा में बीरबल न था जिस कारण इनके ऊपर ऐसी आफत आई। कुछ देर सोच समझ लेने के बाद सर्वसम्मति मिलाकर एक बृद्ध दरबारी बोला-पृथ्वीनाथ! अधिकतर प्रिय लड़का होता है। दरबारियों ने आपस की गोष्टी से निश्चित किया था कि इस समय बादशाह लड़के को गोद में लिये हुए खिला रहा है, अतएव उसके प्रश्न का इशारा लड़के की तरफ ही है। बादशाह उस समय वृद्ध दरबारी का उत्तर स्वीकार कर लिया और सभा बरखास्त हुई।
बीरबल राजकीय कार्य से कही बाहर गया था दैवात दूसरे ही दिन आ पहुँचा। बादशाह को तो पहले की धुन बँधी हुई थी, बीरबल को सभा में बैठते ही वही प्रश्न उससे भी किया। वह बोला- गरीबपरवर! प्राणी को अपना जीव सबसे अधिक प्यारा होता है। इसकी तुलना और किसी से नहीं की जा सकती, चाहे वह अपना कितना ही सगा संबंधी क्यों न हो? तब बादशाह अपने दरबारियों को मान रखने के लिये बीरबल की बात काटकर कहा- तुम्हारा कहना गलत है, क्या लड़का प्राण प्यारा नही होता? तुमको यदि अपने कहने पर अटल विश्वास है तो उसे प्रमाणित कर दिखाओ, बीरबल बादशाह की आज्ञा शिरोधार्य करता हुआ बोला- पृथिवीनाथ! बाग का एक बड़ा हौज खाली करने की बागवान को आज्ञा दी जावे तब तक मैं बाजार से परीक्षा की चीजें लेकर लौट आता हूँ। आप सभासदों सहित बाग में उपस्थित रहें, वहीं पर मैं इस बात को प्रमाणित कर के दिखलाऊँगा।
बादशाह की आज्ञा पाकर वागवान ने प्राणपण से परिश्रम करके थोड़ी ही देर में सबसे बड़े हौज को खाली कर सूचना दी। बाग में बैठने के लिये बादशाह की तरफ से समुचित प्रबंध किया गया और वे दरबारियों के सहित बाग में दाखिल हुए। तब तक बीरबल भी एक बंदरिये को उसके बच्चे सहित लेकर बाग में आया। बीरबबल ने बंदरिया को बच्चे सहित हौज के मध्य भाग में बिठला कर ऊपर से पानी भरने की आज्ञा दी। हौज में पानी भरा जाने लगा। पानी क्रमश: हौज के ऊपर चढ़ आया। बंदरिया बराबर अपने बच्चे को ऊपर उठाती गई। यहॉं तक कि बच्चा उसकी पीठ पर बैठ गया और पानी का बढ़ना बराबर जारी रहा। जब पानी बढ़कर उसके गले तक पहुँचा तो वह खड़ी हो गई और अपने बच्चे को अपने हाथ पर रखकर ऊपर उठा लिया। सब लोग इस नजारे को बड़ी गौर से देख रहे थे। बादशाह बीरबल को चिताकर बोला- क्यों बीरबल! क्या देखते नहीं हो कि किस प्रकार बंदरिया अपने प्राणो पर खेलकर बच्चे की रक्षा कर रही है, क्या अब भी पुत्र को सर्वोपरि प्रिय मानने को तैयार नहीं हो? बीरबल ने उत्तर दिया- पृथिवीनाथ! थोड़ा और ठहर जाइये, अभी बंदरिया के प्राण पर नहीं आई है, थोड़ी देर मे आपही फैसला हो जाता है। अभी बीरबल और बादशाह में उपरोक्त बातें हो रही थी कि बंदरिये के मुख मे पानी भरना शुरू हुआ। पानी भरने के कारण उसका दम घुटने की नौबत आ गई, नाक में पानी भरने लगा, वह अधीर होकर बहने लगी। आखिरकार लाचार हो उसने बच्चे की ममता छोड़ दी और अपना प्राण बचाने के लिये एक नया उपाय निकाला। झट बच्चे को पानी में डुबाकर आप स्वयं उसके ऊपर खड़ी हो गई, इस प्रकार उसका मुँह पानी से ऊपर हो गया। बीरबल ने बादशाह को उसे दिखलाकर बागवान को पानी रोकने की आज्ञा दी। पानी आना तुरंत बंद हो गया और बदरिया बच्चे सहित सजीव बाहर निकाल ली गई।
बीरबल ने कहा- पृथ्वीनाथ! आपने प्रत्यक्ष देखा है कि जब तक प्राण बचने की आशा थी तब तक बंदरिया बच्चे का प्राण बचाने की बराबर यत्न करती रही, परंतु तब उसके ही प्राणों पर आफत आई तो वह बच्चे की जीवन-रक्षा भूल गई, बल्कि स्वय उसके जान की गाहक होकर अपना प्राण बचाया। बादशाह दरबारियों सहित बीरबल की बुद्धि की श्रेष्ठता स्वीकार कर ली।
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