दरबार के समय में बादशाह को गप्प लड़ाने का मौका नहीं मिलता था इस कारण जनाने महल में ही गप लड़ा लिया करता था और इसी समय में आपस की गोष्टी भी हो जाया करती थी। यह बात सब पर विदित थी जिस कारण बीरबल को जनाने महल में जाने की कोई मनाही नहीं थी। जब वार्तालाप करके बादशाह संतुष्ट हो जाता तो एक ऐसी नशीली चीज का सेवन कर लेता जिससे कुछ समय पश्चात उसका चेहरा बदल जाता और बातें भी और की तौर करने लगता था। बीरबल नित्य बादशाह की ऐसी दशा देखा करता, परंतु उसकी समझ में न आता कि दरअसल वह किस वस्तु को सेवन करता है। उस चीज के सेवन से बादशाह की स्मरणशक्ति बदल जाती। ऐसी दशा में बादशाह अनेक भूलें भी कर डालता था।
एक दिन बीरबल के मन में उस वस्तु की जानकारी प्राप्त करने की सूझी। वह बीमारी का बहाना कर कई दिनों तक दरबार में नहीं आया। बादशाह ने एक दो दिन तो यह समझ कर कि साधारण बीमारी होगी, उसकी कुछ खोज खबर न ली। परंतु जब सोचते-सोचते तीन-चार दिनों का अरसा बीता और वह नहीं आया तो उन्हें बीरबल को देखने की इच्छा हुई। वे अपने चंद सिपाहियों के साथ बीरबल के मकान पर गये। जब उसे बादशाह के आगमन की सूचना मिली तो झट दूसरे दरवाजे से होकर बाहर निकल गया और लोगों की ऑंख बचाकर सीचे दरबार में जा पहुँचा। गुप्त मार्ग से जनाने महल में पहुँचकर उस नशीली चीज की तलाश करने लगा। जब बाहर उसका सुराख न लगा तो वक्स को तालीके फिराक में पड़ा, दैवात ताली मिल गई, वह एक कोने में अच्छी तरह छिपाकर रखी हुई थी। बक्स का ताल खोलकर उसके अंदर की चीजों को देखा। एक तरु कोने में एक बोतल रखी हुई मिली, उसे चुपके से बाहर निकालकर अपनी शाल के अंदर छिपा लिया और तेजी से अपने घर की तरफ हो लिया।
बादशाह को उसके घर वालों से पूछने पर विदित हुआ- थोड़ी देर हुआ दरबार की तरफ गये है। यह सुनकर उसको कुछ चिन्ता सी हुई और बीरबल के जाने का कारण जानने के लिये व्याकुल हो उठा। मनमें सोचा- बिना किसी कारण अनिवार्य कारण के बीरबल ऐसी दशा में नहीं जा सकता था। वह अपने साथियों सहित लौटने लगा। अभी दो चार सीढ़ी ही उतरकर गया था कि सामने से बीरबल आता हुआ दिखाई पड़ा। बीरबल मनहीं मन सोचता हुआ आ रहा था कि बादशाह के पूछने पर क्या उत्तर दूँगा। इसी बीच बादशाह की दृष्टि उस पर पड़ी और वह वहीं रूक गया। पास पहुँचकर बादशाह ने पूछा- तुम इस समय महल की तरफ क्यों गये थे और तुम्हारे बगल में यक क्या चीज है। बीरबल ने कहा- कुछ तो नहीं। फिर भी बादशाह का शक हो ही रह था क्योंकि उसकी काख तले चदरे के भीतर से कोई चीज दिखाई पड़ रही थी। बादशाह ने दुबारा पूछा- बीरबल! झूठ क्यों बोल रहा है, तुम्हारी काख के भीतर कोई चीज अवश्य छिपी हुई है। बीरबल ने कहा- हॉं वह तोता है। बीरबल के ऐसे रूखे उत्तर से बादशाह को संतोष नहीं हुआ और क्रोधित होकर बोला- तुम्हें आज इतना मजाक क्यों सूझी है। बीरबल अविलम्ब बोला- पृथ्वीनाथ! अश्व है। बादशाह बड़ा हैरान हुआ और भौंह चढ़ाकर कहा- मैं देखता हूँ कि आज तुम्हारा दिमाग आसमान पर चढ़ता जा रहा है। बीरबल ने कहा- नहीं नहीं हाथी है। बादशाह ने कहा- क्या तुमने भांग तो नहीं खाई, ठीक-ठीक समझ कर उत्तर दो। बीरबल कब चुप रहने वाला था बोला- गधा है, गधा। बार-बार बीरबल के टालमटोल की बातें सुनकर बादशाह बहुत ही चिढ़ गया और पूछा- क्या आज तुमपर मृत्यु तो नहीं सवार हो गई है, कॉंख में की छिपी वस्तु का नाम ठीक-ठीक क्यों नहीं बतलाते हो? इस बार बीरबल ने साफ बतला दिया- हुजूर! शराब है! फिर अपनी बगल से बोतल निकालकर बादशाह के हवाले किया। बीरबल ऐसे धर्म परायण ब्राहृाण के पास शराब की बोतल देखकर बादशाह को आश्चर्य हुआ और उसका कोप कुछ शांत हो गया। वह बीरबल को अपने साथ जनाने महल में लिवा ले गया। वहॉं जाकर देखा तो उसके कमरे की सारी चीजें इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं, संदूक का ताला भी खुला हुआ है। बादशाह तुरंत ताड़ गया कि इसी को चुराने के लिये बीरबल अकेले में यहॉं आया था, परंतु फिर भी इतने ही से उसे शांति न मिली। उसने विचारा कि यह तो हुई यहॉं की बात, रास्ते में बीरबल अंटसंट क्यों बतलाता था? तब वह बोला- बीरबल! मालूम होता है आज तुम कुछ नशा खा गये हो, नहीं तो ऐसी ऊटपटांग बातें कभी न करते। तुम्हारी कॉंख तले शराब की बोतल मौजूद थी फिर भी तुमने उसे बैल, गधा आदि आदि कैसे बतलाया।
बीरबल को अपना राज बादशाह पर खोलने का मौका मिल गया और उसे इस ढंग से प्रगट करना प्रारम्भ किया- पृथ्वीनाथ! न तो मैं नशा खाये हूँ और न मेरी बुद्धि ही भ्रष्ट हुई है, मैंने जो कुछ भी कहा है वह मेरे कॉंख तले थी। अच्छा हुजूर सुनिये- पहले पहल मैंने आप से बतलाया था कि कुछ भी नहीं है, सो मद्यपान के प्रथम प्याले की बात थी, उस समय बात करनेवाला कुछ भी नहीं देखता। दूसरी बार मेरी जबान पर तोते का नाम आपने सुना होगा। इसका अभिप्राय यह था कि दूसरा प्याला पीलेने पर मनुष्य तोते के समान बकने लगता है। फिर मैंने घोड़े का नाम लिया था। उसके मानी यह था कि तीसरा प्याला पी चुकने पर मद्यपी घोड़े के समान हिनहिनाना प्रारंभ कर देता है। चौथी बार हाथी बतलाया था। सो इस कारण कि चौथे प्याले के सेवन के पश्चात मद्यपी मस्त हाथी की तरह झूमना प्रारंभ करता है। पॉंचवी बार गधा बना देता है। छठवें में मद्यपी नशे में गुप्त हो जाता है, यहॉं तक कि उसको अपने शरीर तक की भी सुधि बुध नहीं रहती। एक बोतल में केवल छ: प्याला शराब रहती है। प्रत्येक प्याला सेवन के पश्चात मनुष्य की पृथक-पृथक दशाऍं हो जाती है।
बादशाह बीरबल की इन बातों को बड़े ध्यान पूर्वक सुन रहा था कारण कि उसे इस बात का पहले ही से विश्वास था कि बीरबल जो कुछ भी कहे वा करेगा उसके अच्छे के लिये ही। बीरबल का अभिप्राय भी बादशाह का मद्य पान छुड़ाना ही था। उस की इस शुभ कांक्षा से बादशाह बड़ा हर्षित हुआ और उसे उचित पुरस्कार देकर बिदा किया।
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