दिल्ली शहर के एक मुहल्ले में दो पडोसिनें बहुत दिनों से आबाद थीं, परंतु दोनों का स्वभाव भेद से उनकी पटरी नहीं खाती थी। उसमें एक तो गुणवती और सरल स्वभाव की थी परंतु दूसरी खोटी और कर्कशा थी। उनके मनमुटाव का यही खास कारण था। न वह उसकी विभूति को सहन करती है न वह उसकी। यहॉं तक कि ककंशा हमेशा सरला की हँसी उड़ाया करती थी। जब वह किसी प्रकार भी सरला को न दबा सकी तो एक दिन उसने अपने लाड़ले पुत्र की हत्या कर चुपके से उस भलामनस के घर में छोड़ आई और आप स्वंय रोती बिलबिलाती हुई बादशाह के पास पहुँची।
जब बीरबल ने उसके बच्चे के कत्ल का हाल सुना तो वह उस भलीमानस औरत को बुलवाया, जिसपर की दुष्टाने अपने पुत्र के मारने का अभियोग लगाया था। बीरबल की आज्ञा पर वह तुरंत हाजिर हुई और अपने को इस प्रकार आकस्मिक बुलाये जाने का कारण पूछा। बीरबल ने उततर दिया-”क्या तूने इस औरत के बालक की हत्या ही है जैसा कि यह तेरे ऊपर अभिशाप लगा रही है? यदि नहीं, तो तेरे पास निदौष होने का क्या सबूत है, तुरंत बतला? वह बोली- महाशय जी! न जाने कौन इस बालक की हत्या कर लाश मेरे घर में डाल गया है। मुझे इसकी बिल्कुल जानकारी नहीं। आप इस पर भलीभॉंति विचार करें, मुझे अधिक बोलने का अभ्यास नहीं है।
बीरबल दोनों स्त्रियों को वहीं रोककर अपने एक सच्चे सेवक के कान में कुछ समझा कर उनके घर भेजा। वह उन स्त्रियों के चाल-चलन की जॉंच कराना चाहता था। नौकर आज्ञा पाते ही उस महाल में गया जहॉं ये रहती थी। वह उनके अड़ोस-पड़ोस के तमाम लोगों से उनके चाल-चलन के संबंध में पूछ-ताछ की। उनकी जबानी मालूम हुआ कि जिस स्त्री पर अभिशाप लगाया गया है वह निहायत भलीमानस है और अभिशाप लगाने वाली स्त्री निहायत दुष्टा और फरेबिन है।
नौकर जैसा सुनकर आया था उसका सारा कच्चा चिट्ठा बीरबल से कह सुनाया। सच झूठ की पहचान के लिये बीरबल ने एक तरकीब निकाली। वह पहली भलीमानस स्त्री को बुलाकर पूछा- यदि तूने सचमुच इस बालक का बध नहीं किया है तो अपना सारा वस्त्र उतार कर एक तरफ अलग खड़ी हो जा। वह बोली- मंत्रिवर! मैं चाहे कलकी जगह आज ही मार डाली जाऊँ, परंतु मुझसे यह नहीं होने वाला। मैं मरने से उतना नहीं डरती जितना निर्लज्जता से।
तब बीरबल ने दु:शीला यानी दुष्टा औरत को बुलाकर पूछा- यदि तू जानती है कि सचमुच इसने ही तेरे बालक का वध कराया है तो इस सभा के बीच अपना सारा वस्त्र अलग फेंककर एकदम नग्न खड़ी हो जा। वह तुरंत वस्त्र उतार कर फेंकने को उद्यत हुई। उसकी ऐसी निर्लज्जता देखकर बीरबल स्वयं शरमिंदा हुआ और उसे वस्त्र उतारने से रोका। उसको निश्चय हो गया कि इसीने बालक का वध किया है।
बीरबल ने सिपाहियों को उसे पीटने की आज्ञा दी। उसके दोनों हाथ-पॉंव बॉंध दिया गया और सिपाही मारने को उद्यत हुए। अब तो दुष्टा स्त्री का होश ठिकाने आ गया। और उसने तुरंत अपना कसूर स्वीकार कर लिया। बादशाह को उस मक्कार की काली करतूत पर बड़ा रंज हुआ इसलिये उसे कारागार भुगतने की सजा दी और उस विनम्र स्त्री को पुरस्कुार देकर विदा किया।
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