ज्वर या बुखार में शरीर का ताप बढ़ जाता है। थरमामीटर में 98.4 तक तो स्वाभाविक बुखार समझना चाहिए। मुंह में थरमामीटर लगाने पर यदि 99 अथवा उससे ऊपर हो तो बुखार समझना चाहिए। किसी रोग में ज्वर 104 अथवा 105 तक हो जाता है। इससे अधिक बुखार होना तो भयप्रद ही है। इसी प्रकार 96 डिग्री से नीचे ज्वर का जाना भी खतरनाक है। आजकर बुखार देखने की इस प्रणाली की जगह नई शतमलव (सैन्टीग्रेड) प्रणाली चल रहीं है। इस पुरानी प्रणाली को फैरनहाइट प्रणाली कहा जाता था। इसमें 32 डिग्री तक जमने का और 212 डिग्री पानी उबलने का माप था। सैन्टीग्रेड प्रणाली में जमा बिन्दू 0 शून्य और पानी उबलने का बिन्दू 100 होता है। इस प्रणाली में नार्मल बुखार शरीर का 37 डिग्री होता है। नये थरमामीटर सेन्टीग्रेड के ही आ रहे हैं।
असल में ज्वर स्वयमेव कोई रोग नहीं है, मगर बहुत से रोगों में ज्वर हो ही जाता है। हमारे शरीर में जो जीवनी-शक्ति है, वह जब शरीर में कोई बिगाड़ हो जाता है तो उसको दूर करने के लिए जो प्रयत्न करती है, ज्वर उस प्रयत्न का एक लक्षण-मात्र है। इसलिए ज्वार हो हमारे शरीर की प्रकृति का प्रयत्न समझकर ही उसकी चिकित्सा करनी होती है। तेज़ दवा देकर ज्वर को दबाना नहीं चाहिए, बल्कि ज्वर के मूल कारणों को दूर करने का यत्न करना चाहिए। शरीर के किसी अंग में प्रदाह अथवा सूजन होने या खून में किसी प्रकार का गंदा विषैला पदार्थ मिल जाने से प्राय: बुखार हो जाया करता है। ठंड लग जाने, भीग जाने, तेज धूप लगने अथवा बहुत थक जाने से भी ज्वर हो जाता है। ऐसे साधारण रोगों के ज्वर में निम्न दवाएं उपयोगी सिद्ध होती है:
एकोनाइट – ठंड लग जाने, जुकाम हो जाने, ओस में सोने या धूप लगने से ज्वर होता है, उसमें भी यह दवा खूब काम करती है। डर जाने से जो ज्वर होता है, उसमें भी यह दवा काफी उपयोगी सिद्ध होती है। इसका रोगी बेचैन होता है, सांस तेज़ चलती है, सिर फटा जाता है। रोगी का शरीर गर्म व सूखा रहता है और समझता है कि इस रोग से मैं अवश्य मर जाऊँगा। रात में रोग बढ़ता है, प्यास तेज़ होती है। दो-तीन घण्टे के अंतर से यह दवा देनी चाहिए। यदि रोगी को पसीना आ जाए तो यह दवा बंद कर देनी चाहिए। तरुण रोगीं में एकोनाइट 4X या 30 का प्रयोग करें।
बेलाडोना – तेज़ बुखार, प्यास, मुंह व होंठों का सूखना, सिर में तेज दर्द, नसों का फड़कना, आंखों का लाल होना, बहकना, रक्त प्रधान व मोटे-तोजे व्यक्ति में ज़्यादा फायदा करती है।
डल्कामारा – बरसात के कारण या पानी में भीग जाने से उत्पन्न ज्वर में यह दवा उत्यन्त उपयोगी है।
पल्साटीला – बहुत खाने-पीने से या बहुत नहाने से बुखार होना, प्यास न लगना।
इपिकाक – कै हो या जी मिचलाता हो तथा खांसी भी हो।
कैम्फर – जब सर्दी के कारण ज्वर शुरू होता है तो पहली अवस्था में जब बदन में दर्द हो और आंख-नाक से पानी गिरता हो, शरीर में झुरझुरी-सी आती हो तो कपूर के अर्क को एक बूंद चीनी या शुगर आफ मिल्क में डालकर एक-दो दफा खाने से आराम हो जाता है।
जेल्सीमियम – रोगी बुखार में आंखें मींचे पड़ा रहे, प्यास न हो या कम हो, कुछ गफलत-सी हो, बदन में दर्द हो, कमजोरी अधिक मालूम हो।
फैरमफास – सर्दी वाले या बिना सर्दी वाले ज्वर में। न तो एकोनाइट की तरह बेचैनी इसमें होती है और न जेल्सीमियम की तरह सुस्ती रहती है। इस दवा का 6 एक्स विचूर्ण गर्म पानी के साथ देने से बहुत-से ज्वर शुरू में ही ठीक हो जाते हैं। इसकी 5 टिकिया या 3-4 रत्ती चूर्ण आधा प्याला गर्म पानी में डालकर चाय की तरह तीन-चार घण्टे बाद पिला देना चाहिए।
ब्रायोनिया – सिर में, गर्दन में, हाथ-पैर व पीठ में दर्द, हिलने-डुलने से दर्द का बढ़ना, सांस लेने में कष्ट, सूखी खांसी, तेज़ प्यास, थोड़ी-थोड़ी देर में काफी पानी पीना, मुंह का स्वाद कड़वा या लेसदार, कब्ज, जीभ पीली या मैली होने पर।
रसटाक्स – बेहद बेचैनी, रोगी जल्दी-जल्दी करवट बदलता हो, भीग जाने व ठण्ड लग जाने से ज्वर, बदन में दर्द, कमर व पीठ में खास तौर से अधिक दर्द, जीभ मैली मगर अगला भाग लाल, जोड़ों में दर्द।
आर्सैनिक – जल्दी-जल्दी प्यास लगना, मरग थोड़ा-थोडा पानी पीना, आधी रात के बाद रोग का बढ़ना, बैचैनी और घबराहट होना, जलन, दस्त आना, बेहद कमजोरी। यह दवा प्राय: शुरू में प्रयोग नहीं होती।
Bukhar Fever Homeopathic Medicine in Hindi, Fever Ki Best Homeopathic Dawa Remedies in Hindi, Treatment for Fever in Hindi