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12 मार्च से 18 मार्च, 2017 तक दुनियाभर में विश्व ग्लूकोमा सप्ताह (बर्ल्ड ग्लूकोमा वीक) मनाया जाएंगा। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को ग्लूकोमा जिसे कालापानी, काला मोतिया या कांच बिंद के नाम से भी जानते हैं, के बारे में जागरूक कर अंधता से बचाना है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि व्यक्ति को रोग से जुड़ी जानकारी हो ताकि शुरुआती लक्षणों की पहचान कर समय पर इलाज किया जा सके।
ग्लूकोमा क्या है?
मोतियाबिंद के बाद लोगों में अंधेपन का सबसे बड़ा कारण ग्लूकोमा है। इसे ‘साइलेन्ट साइट स्नैचर’ (दृष्टि का गुपचुप चोर) भी कहते हैं। इसके लक्षणों की पहचान आसानी से नहीं हो पाती। आंख में सामान्यत: एक साफ तरल पदार्थ (एक्वेस ह्यूमर) बहता रहता है जो आंखों के लैन्स, आयरिस व कोर्निया को पोषण देता है। इसके बहाव का संचालन करने वाले नाजुक जाल या छोटी-छोटी शिराओं में खराबी आ जाए (ओपन एंगल ग्लूकोमा) या बिल्कुल बंद हो जाए (क्जोज्ड़ एंगल ग्लोकोमा), तो यह पदार्थ आंखों से बाहर नहीं निकल पाता और आंख का प्रेशर बढ़ जाता है। इससे आंख की नस यानी ऑप्टिक नर्व की कोशिकाएं धीरे-धीरे नष्ट होकर ग्लूकोमा का कारण बनती है।
कौन ज्यादा प्रभावित!
पैतालिस वर्ष से अधिक उम्र, आंख की नियमित जांच न कराने वाले, परिवार में यदि किसी को पहले से ग्लूकोमा हो चुका हो या मायोपिया (पास का दृष्टि दोष), डायबिटिज और ब्लड प्रेशर के रोगी।
जांचें जरूरी!
आंखों में कोई न कोई परेशानी जैसे दर्द या असहजता महसूस होने पर डॉक्टरी परामर्श लें। कालापानी की जांच के लिए सामान्य परीक्षण के अलावा आंखों के अंदर का दबाव जानने के लिए टोनोमेट्री, फंडोस्कोपी और नजर के क्षेत्र की जांच करते हैं।
ग्लूकोमा का प्रकार व इलाज!
इसमें आंख का प्रेशर धीरे-धीरे बढ़ता है और मरीज को अक्सर बीमारी के लक्षणों का एहसास नहीं होता है। इसके चलते आंखों को पहुंचे काफी नुकसान से गंभीर स्थिति में रोग का पता चलता है। इलाज के अभाव में मरीज अंधेपन का शिकार हो सकता है। इसके लिए एन्टीग्लूकोमा आई ड्रोप्स से रोग को नियंत्रित करते हैं ताकि सर्जरी की जरूरत को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। जो नजर इलाज शुरू करने से पहले चली गई हो, उसे वापस नहीं लाया जा सकता।
क्लोज्ड एंगल ग्लूकोमा!
इसमें आंख के एक्वेस ह्यूमर का प्रवाह अचानक रुकने से आंख का प्रेशर काफी बढ़ जाता है। जिससे मरीज को आंखों में दर्द, सिरदर्द, धुंधला, नजर आना, प्रकाश के स्त्रोतों के चारों ओर रंगीन गोल घेरा आदि लक्षण दिखाई देते हैं। इसका फौरन इलाज आवश्यक है। इलाज के तौर पर लेजर बीम के जरिए एक्वेस ह्यूमर के बहाव के लिए नया छेद बनाते हैं। इस तकनीक को लेजर पेरीफेल आईरिडोटॉमी कहते हैं। इसके बाद दवा देकर आंख के अंदर के दबाव को कम करते हैं। समय से इलाज होने पर इस प्रकार के ग्लूकोमा में कई मरीजों में लेजर के बाद अन्य किसी इलाज की जरूरत नहीं पड़ती।
एडवांस स्टेज!
बीमारी बढ़ने पर ट्रैबेक्यूलेक्टॉमी करते है। इस सर्जरी में आंख के अंदर ऐसा बहाव चैनल बनाया जाता है जिससे एक्वेस ह्यूमर तरल पदार्थ आंखों के अंदर से बहते हुए आंखों के ढीले ढक्कन (कंन्जंक्टिवा) के नीचे से बह जाता है। जटिल स्थिति में कई बार ग्लूकोमा वॉल्व प्रत्यारोपण किया जाता है।
डॉ. सुरेश कुमार पाण्डेय,
वरिष्ठ नेत्र सर्जन
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English Summery: Read Information About Glaucoma Eye Disease in Hindi, Know Glaucoma Types and Treatment in Hindi