मंगला गौरी सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है। यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान होता है। इस व्रत को करने से विवाहित स्त्रियों को सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। देवी गौरी का यह व्रत मंगला गौरी के नाम से विख्यात है। जिस प्रकार माता पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तप किया था, उसी प्रकार स्त्रियां इस व्रत को कर पति की लम्बी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करती है।
व्रत कथा:-
प्राचीन काल में एक नगर में धर्मपाल नाम का एक सेठ पत्नी के साथ सुखपूर्वक जीवनयापन कर रहा था। उसे धन-वैभव की कोई कमी न थी, किंतु उसे एक ही बात सताती थी, जो उसके दुख का कारण बनती थी कि उसके कोई संतान न थी जिसके लिए वह खूब पूजा-पाठ और दान-पुण्य किया करता था। उसके इन अच्छे कार्यो से प्रसन्न हो, भगवान की कृपा से उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन पुत्र की आयु अधिक नहीं थी। ज्योतिषियों के अनुसार उसका पुत्र सोलहवें वर्ष में सांप के डसने से मृत्यु का ग्रास बन जाएगा। अपने पुत्र की कम आयु जानकर उसके पिता को बहुत ठेस पहुंची, लेकिन भाग्य को कौन बदल सकता है, अत: उस सेठ ने सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया। कुछ समय बाद उसने पुत्र का विवाह एक योग्य संस्कारी कन्या से कर दिया। सौभाग्य से उस कन्या की माता सदैव मंगला गौरी के व्रत का पूजन किया करती थी, अत: इस व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या को अखंउ सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त था, जिसक परिणामस्वरूप सेठ के पुत्र को दीर्घायु प्राप्त हुई।
पूजन विधि:-
फल, फूलों की मालाएं, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लौंग, जीरा, धनिया, (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए), साड़ी सहित सोलह श्रृंगार की 16 वस्तुएं, 16 चूडियां इसके अतिरिक्त पांच प्रकार के सूखे मेवे 16 बार सात प्रकार के धान्य होने चाहिए। व्रत का आरंभ करने वाली महिलाओं को श्रावण माह के प्रथम मंगलवार के दिन इन व्रतों का संकल्प सहित प्रारम्भ करना चाहिए। श्रावण मास के प्रथम मंगलवार की सुबह, स्नान आदि के बाद, मंगला गौरी की मूर्ति या फोटो को लाल रंग के कपड़े से लिपेट कर, लकड़ी की चौकी पर रखा जाता है। इसके बाद गेहूं के आटे से दीया बनाया जाता है। इस दीये में 16-16 तार की चार बातियां कपड़े की बनाकर रखी जाती हैं। सबसे पहले श्रीगणेश का पूजन किया जाता है। पूजन में श्रीगणेश पर जल, रोली, मौली, चंदन, सिंदूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढ़ाते हैं। इसके बाद कलश पूजन किया जाता है। इसके बाद नौ ग्रहों व सोलह माताओं की पूजा की जाती है। मंगला गौरी प्रतिमा को जल, दूख, दही से स्नान करवाकर वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चंदन, सिंदूर, मेहंदी व काजल लगाते हैं। सोलह प्रकार के फूल-तत्ते माला आदि चढ़ाते हैं, फिर मेवे, सुपारी, लौंग, मेहंदी, चूडियां चढ़ाते हैं। अंत में मंगला गौर व्रत कथा सुनी जाती है। इसके बाद विवाहित महिला सास व ननद को सोलह लड्डू देती है। इसके बाद यही प्रसाद ब्राहाण को भी दिया जाता है। व्रत के दूसरे दिन देवी की प्रतिमा को विसर्जित करते हैं।
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