एक दिन की घटना है कि बादशाह और बेगम दोनों भोजनोपरान्त बाग में झूला झलते हुए सानन्द गपशप लड़ा रहे थे अचानक बेगम की उर्ध्ववायु खुली, जिससे बादशाह बहुत चिढ़ गया और बेगम को तुरंत महल से बाहर जाने की आज्ञा दी। बेगम शहर से बाहर एक बाग में कैदी की सूरत में नजरबंद कर दी गई। बादशाह को वही धुन सवार थी। दूसरे दिन जब सबेरे दरबार लगा तो बादशाह ने सभासदों से पूछा- क्या कभी तुमलोगों को भी अधोवायु निकलती है ? अधोवायु निकलने के कारण बेगम का दण्डित होना सबपर विदित था इस कारण एक स्वर से सभी ने इंकार कर दिया, और उस दिन का दरबार समाप्त हुआ।
जिस दिन की यह बात थी उस दिन बीरबल किसी सरकारी काम से बाहर गया था। इसलिये जब कई दिन पश्चात वह लौटा तो बादशाह ने वही प्रश्न बीरबल से भी किया। भला बीरबल कब चूकने वाला था, वह झट बोला-पृथ्वीनाथ! जिस तरह से अन्य लोगों को अघेवायु होती है उसी तरह मुझे भी होती है। बीरबल के इस उत्तर से बादशाह बहुत नाराज हुआ और उससे बोला- वाह खूब अच्छे रहे! इस सभा में ऐसा एक भी आदमी नहीं है जिसे अघोवायु सरती हो, फिर तुम्हें कैसे सरने लगी ? जब यही बात है तो तुम दरबार से बाहर चले जाओ और जब तक मैं तुम्हें आने की आज्ञा न दूँ कदापि न आना।
बीरबल हाजिर जवाब था उसे उत्तर प्रत्युत्तर करने में हिचकिचाहट नहीं होती थी। परंतु मौका देखकर काम करना बुद्धिमानी का काम है। बादशाह को अपने ऊपर बहुत नाराज देख वहॉं से वह तत्काल बाहर चला गया। बेगम को नजरबंद हुए जब बहुत दिन हो गए तो एक दिन वह अपने नजरबंदी के कष्टों से ऊबकर बीरबल को बुलवाया और उससे बोली- बीरबल! आपकी मदद के बिना मेरा उद्धार नहीं हो सकता कोई तरकीब निकालकर मुझे इस निविड़ कैद से मुक्त करों। मेरा जीवन असंभव हो रहा है। बीरबल ने कहा- दूसरे की वकालत वही कर सकता है जो निर्दोष हो मैं तो खुद ही तुम्हारे दोष में शामिल हूँ, तुम्हारी मदद कैसे कर सकता हूँ?
बेगम बीरबल को भली भांति जानती थी अतएव उसकी बात बीच में काट कर बोली- बीरबल! तुमको मैं भलीभॉंति जानती हूँ, मेरा दृढ़ विश्वास है कि चाहे बादशाह तुमसे भले ही नाखुश हों, परंतु उनको मना लेना तुम्हारे बायें हाथ का खेल है! बेगम की इस युक्तिसंगत बात को सुनकर बीरबल खुश होकर उसके कार्यसाधन के निमित्त दश हजार रूपये की मॉंग पेश की। उसे तत्क्षण दश हजार की थैली समर्पण की गई।
बीरबल घर पहुँचकर एक सुनार को बुलवाया वह अपने काम का बड़ा पक्का था। बीरबल उसको रूपये की एक थैली देकर बोला- सेठजी मुझे मोती मंडित सुवर्ण का एक जव की बाली दर्कार है, इसलिये आप उत्तम उत्तम मोतियों को बाजार से संग्रह कर उन्हें सोने में इस प्रकार जड़ो कि देखने में हूबहू जव की बाली ही जान पड़े। सुनार कुछ कालोपरान्त एक उत्कृष्ट बाली बना लाया। बीरबल उसे देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे कुछ द्रव्य इनाम में देकर विदा किया। आप उस बाली को लेकर बादशाह के महल की तरफ चला। दरबार में पहुँचते-पहुँचते आधा दिन ढल गया।
पहरेदारों से अपने आने का संदेशा बादशाह के पास यह भेजा कि- पृथ्वीनाथ! मैं एक बड़े आवश्यक कार्यवश आपसे मिलने आया हूँ यदि आज्ञा हो तो अंदर आऊँ। बादशाह ने आज्ञा देकर बीरबल को दरबार में बुलवा लिया। बीरबल बादशाह के पास पहुँचकर नियम अनुसार सलाम कर बगल में बैठ गया और मोती उसके हाथ में देकर बोला- गरीबपरवर! यह मोती का बीज एक बाहरी व्यापारी लेकर आया था जिससे मैंने बड़ी कठिनता से प्राप्त किया है। इसमें एक खास खसियत यह है कि यदि कोई पाक साफ आदमी इसको अच्छी जमीन में बोयेगा तो इसी के समान और बहुत सी मोतियॉं पैदा होंगी। मैंने देखा कि यह काम सिवा आपके दूसरा कोई न कर सकेगा अतएव आपकी सेवा में लेकर उपस्थित हुआ हूँ। कृपया इसको किसी अच्छी जमीन पर बो दीजिये, आपको आगे चलकर इससे बड़ा लाभ होगा। बादशाह उसकी बात मानकर तुरत आज्ञा दिया- बीरबल! इसके योग्य जमीन ढूँढ़कर सूचना दो। परवाने में यह भी लिखा था कि जिस जमीन को बीरबल इस कार्य के लिये पसंद करेगा वह चाहे बड़ी आलीशान मकानों से ही क्यों न सुशोभित की गई हो, तुरंत साफ करा दी जायगी।
बीरबल की खूब बन आई उसने अपने पुराने बैरियों के मकानातों को आर्डर देकर तोड़वा दिया। कितने लोगों ने तो बीरबल के आतंक से बचने के लिये बड़ी-बड़ी रकमों की घूसें दी। पहले वह नाक भौं सिकोड़ कर लोगों को टरकाता, परंतु जब न मानते और बहुत मिन्नत करते तो किसी से कम और किसी से ज्यादा लेकर उनका मकान छोड़ देता। जब बीरबल की खासी रकम मिल गई तो बड़े-बड़े महलों को गिरवाना बंद कर दिया बाद में गरीबों की झोपडि़यों का चौगुनी कीमत देकर कुछ झोपडि़यॉं गिरवा कर एक खासी चौरस जमीन बना ली और उसे खूब जोतवाकर उसमें उत्तम प्रकार की खाद डलवा दी। पंक्ति से आवपाशी कराकर उसको भली-भॉंति सिचवाकर खेत को दुरूस्त करवा लिया। जब बीज बोने के काबिल खेत तैयार हुआ तब बीरबल ने एक दूत द्वारा बादशाह के पास खबर भेजी- पृथ्वीनाथ! आपका खेत तैयार हो गया है अब आप सभा सदों के सहित पधार कर खेत का मुलाहिजा फर्मावे।
बीरबल उस मोती के बीज को लेकर सभा के सन्मुख आया और उसे बादशाह को दिखाकर बोला- हुजूर! इस बीज को बोने वाला खूब पाक साफ मनुष्य होना चाहिये, जिससे दुर्गन्धि आती होगी उसके बोने से बीज से हरगिज मोती नहीं उगेगी। इसलिये जिसके शरीर से कभी वायु न सरती हो वहीं इसको बोये। आपके दरबार में तो ऐसों की कमी भी नहीं है। किसी एक को आज्ञा दीजिये कि जो इस काम को प्रसन्नता पूर्वक करे।
बादशाह ने एक एक कर अपने सभी उपस्थित सभासदों से पूछा परंतु कोई बीच बोने के लिये तैयार न हुआ। लगभग हजारों की संख्या में लोग उपस्थित थे पर सभी ने न कर दिया। कारण कि यदि कोई यह कहकर कि मुझे हवा नहीं सरती, मोती बोने का साहस करता और कही बाद में मोती न उगती तो उसकी गर्दन मारी जाती।
तब बादशाह ने बीरबल को बीज बोने के लिये कहा, बीरबल बोला- पृथ्वीनाथ! यह तो मैं आपसे पहले ही कह चुका हूँ कि मुझको वायु सरती है, आपके सामने बहुतेरे लोगों ने इस बात की साक्षी दी है कि उनको वायु नहीं सरती तो बड़े अफसोस की बात है कि बीच बोने के लिये कौई तैयार क्यों नहीं होता। श्रीमान को भी वायु नहीं सरती अतएव अब इस काम को स्वयं आपही करें तो कितना उत्तम होगा। बादशाह बीरबल के प्रस्ताव को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि मुझे भी तो वायु सरती है। इस संसार में ऐसा एक भी मनुष्य न निकलेगा जिसे वायु न सरती हो। तब बीरबल ने मौका देखकर कहा- पृथ्वीनाथ! तब यही बात है तो बेगम और मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया था जिसके लिये हम दंडित किये गये। बीरबल की इस युक्ति से बादशाह का गुस्सा शांत हो गया और बेगम की महल में बुलवाने की आज्ञा दी। बीरबल भी दीवन पद पर नियुक्ति किया गया।
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