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डोमनलाल एक चार साल का बालक है। वह रोज अपने साथियों को खेलते कूटते देखता तथा उसका मन भी साथियों के साथ खेलने कुदने को करता था किन्तु अपने सांस फूलने की तकलीफ के कारण वह खेलकूद नहीं पाता। इस कारण उसकी माता विमला और पिता सखाराम सदैव ही इस बात को लेकर चिंतित रहते और कई बार उसे समझाते भी रहते।
और एक दिन ऐसा भी आया जब डोमनलाल हाथ पैर दर्द और बुखार की समस्या लेकर बीमार पड़ गया। डोमन के माता-पिता उसे लेकर पास के गांव के अस्पतला में लेकर गये। जहॉं डाक्टर ने जांच करने के बाद डोमन के शरीर में खून की कमी होना बताया और तुरंत खून चढ़ाने की सलाह दी और साथ ही खून जांच कराने की सलाह भी दी। खून की रिर्पोट आने पर उसमें सिकलसेल एनिमिया पाया गया।
खून की कमी की समस्या एक डोमनलाल की ही नहीं, यह समस्या पूरे भारत में एक बहुत बड़ी समस्या है। शरीर में खून की कमी के कारण बौद्धिक एवं शारीरिक विकास रुक जाता है।
छत्तीसगढ़ में खून की कमी के साथ एक विशेष प्रकार की खून की कमी होती है, जिसे सिकलसेल एनीमिया कहा जाता है।
सिकलसेल क्या है?
हमारे शरीर में खून बचपन में लीवर और ताप तिल्ली में बनता है, उसके बाद अस्थि मज्जा में बनता है। खून में लाल रक्त कण और श्वेत रक्त कण और अनुचक्रिका होता है लेकिन जो व्यक्ति सिकलसेल एनीमिया ग्रसित होते हैं उनके लाल रक्त कण के आकार में फर्क आ जाता है। इस बीमारी में रोगी के लाल रक्त कण ऑक्सीजन की कमी के कारण हंसिये के आकार में दिखाई देते हैं। सिकल अर्थात् हंसिये के आकार होना, उसे ही सिकलसेल एनीमिया कहा जाता है।
आकार में फर्क होने पर क्या होता है?
हमारे शरीर में लाल रक्त कण ऑक्सीजन को फेफड़ों से दूसरे हिस्सों में ले जाते हैं। जिससे ऑक्सीजन शरीर के सभी कोषों में पहुंचकर हमें ताकत प्रदान करते हैं। लेकिन लाल रक्त कण के आकार में फर्क होने के कारण उनकी ऑक्सीजन ले जाने की क्ष्ामता कम होती है और लाल रक्त कण जल्दी-जल्दी टूटने लगता है। और शरीर के दूसरे हिस्सों में भी आक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे शरीर में खून की कमी हो जाती है। सिकलसेल से पीडि़त व्यक्ति हमेशा सुस्त व कमजोर दिखाई पड़ता है।
सिकलसेल ग्रस्त व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं:-
1. सिकलसेल वाहक
2. सिकलसेल एनीमिया
इसमें सिकलसेल वाहक व्यक्ति को आमतौर पर किसी प्रकार की समस्या नहीं होती इन्हें किसी इलाज की भी आवश्यकता नहीं होती और ये सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं, लेकिन उनके बच्चों में सिकल की बीमारी होती है। किन्तु इसके विपरीत सिकलसेल एनीमिया ग्रस्त व्यक्ति हमेशा ही तकलीफ में रहता है।
सिकलसेल वाहक और सिकलसेल एनीमिया रोगी:-
हमारे शरीर में रक्त को लाल रंग देने वाला तत्व हिमोग्लोबीन होता है। सामान्य व्यक्ति के हिमोग्लोबन में दो जीन्स ए.ए. होते हैं, लेकिन सिकलसेल वाहक व्यक्ति में ए.एस. जीन्स अर्थात् एक ए. और एक एस. जीन्स पाया जाता है। किन्तु सिकलसेल एनीमिया व्यक्ति में दोनो जीन्स एस.एस. रहता है। दोनों जीन्स एक माता और एक पिता से संतान में आता है। यदि माता-पिता दोनों में से एक भी सिकलसेल वाहक हो तो उनका बच्चा भी 25% सिकलसेल वाहक बन सकता है।
यदि माता-पिता सिकलसेल वाहक होगें तो उनका बच्चा भी वाहक/ सिकलसेल एनीमिया ग्रस्त/ स्वाभाविक हो सकता है।
यह स्थिति आप नीचे दर्शाये गये चित्र से पूर्णतय समझ पायेंगे:-
चित्र में मां-पिता के हिमोग्लोबीन में जीन्स की स्थिति को दर्शाया गया है और उनके बच्चों की स्थिति को दर्शाया गया है, और उनके बच्चों की स्थिति को भी दर्शाया गया है।
स्वाभाविक बच्चा – AA
सिकलसेल वाहक – AS
सिकलसेल एनीमिया – SS
सिकलसेल एनीमिया के लक्षण:-
1. सिकलसेल वाहक- इन व्यक्तियों में कुछ भी समस्या नहीं होती, कभी-कभी पेशाब में खून जा सकता है।
2. सिकलसेल एनीमिया – इन व्यक्तियों में अक्सर निम्न लक्षण देखे जा सकते हैं।
1) खून की कमी होना।
2) सुस्त रहना, कमजोर होना, सांस में तकलीफ होना।
3) जोड़ों में दर्द एवं सूजन होना।
4) तिल्ली का बढ़ जाना।
5) उम्र के अनुसार शारीरिक वृद्धि कम होना या रूक जाना।
6) बार-बार गर्भपात होना।
7) पीलिया होना।
8) लीवर का बढ़ जाना।
9) बार-बार पेट दर्द होना।
10) पैर में घाव होना।
सिकल की जांच:-
सिकलसेल रोग की जांच खून के जांच से की जाती है। जो स्लाइड और सेलीबिलीटी जांच द्वारा की जाती है, किन्तु हिमोग्लोबीन इलेक्ट्रोफेरोसिस जांच द्वारा ही सिकलसेल वाहक या सिकलसेल एनीमिया रोगी में फर्क किया जा सकता है।
सिकल क्राइसिस क्या है?
सिकल क्राइसिस सिकलसेल एनीमिया पीडि़त व्यक्ति के लिए बहुत दर्दनाक स्थिति होती है। इस समय सिकलसेल पीडि़त व्यक्ति की कोई भी समस्या जैसे: जोड़ों में दर्द, छाती में दर्द बहुत अधिक बढ़ जाता है। जिसके कारण बीमार व्यक्ति के लिए कुछ भी कर पाना संभव नहीं हो पाता।
सिकलसेल क्राइसिस होने के कारण:-
लाल रक्त कणों की चिपचिपाहट बढ़ जाती है, जिसके कारणवश खून की विभिन्न नालियों में कणिकायें चिपक जाती है और ऑक्सीन सभी अंगों तक पहुँच नहीं पाती जिससे दर्द, कोषों में क्षति, जोड़ों में सूचन, कभी-कभी स्ट्रोक व अंधापन भी हो सकता है।
क्या-क्या क्षति कर सकता है?
1. स्ट्रोक (दिमाग या दिल में क्षति)
2. अचानक छाती में दर्द
3. बुखार, श्वांस में समस्या
4. शरीर के अंगों में खराबी आना
5. अन्धा होना
सिकलसेल ग्रस्त व्यक्ति में संक्रमण रोकने के लिए क्या करना चाहिये?
सिकलसेल पीडि़त व्यक्ति बहुत जल्दी संक्रमण ग्रस्त होता है। तीन माह से ही पेनिसिलीन इंजेक्शन चिकित्सक की सलाह से पांच वर्ष तक लगवाना चाहिये। निमोनिया एवं इनफ्लूएन्जा के लिए टीका लगवाना चाहिये।
सिकल क्राइसिस रोकने के लिए-
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- अधिक से अधिक पानी पीना चाहिये, लगभग 1.5 लीटर अर्थात् 6 से 8 गिलास पानी रोज पीना चाहिये।
- हल्का व्यायाम करना चाहिये।
- धूम्रपान नहीं करना चाहिये।
- संतुलित एवं पौष्टिक आहार लें।
- अधिक गर्मी एवं अधिक ठंड में नहीं रहना चाहिये।
- अधिक ऊंचाई में नहीं चढ़ना चाहिये।
- मानसिक तनाव से दूर रहें।
सिकल का इलाज:-
1. सिकल वाहक में समस्या न के बराबर ही होती है, इसलिये इलाज की जरूरत नहीं पड़ती।
2. सिकलसेल बीमारग्रस्त अपने चिकित्सक की सलाह से ही फोलिक एसिड या हाईड्रोक्सीयूरिया जैसी दवाओं का सेवन करें।
3. बीच-बीच में हीमोग्लोबीन की जांच कराते रहें।
4. अस्थिमज्जा प्रतिस्थापन भी करवाया जा सकता है किन्तु यह चिकित्सा बहुत महंगी है।
सिकलसेल एक अनुवांशिक बीमारी है, ये माता-पिता से संतान में आता है किन्तु इसकी कोई भी दवा ऐसी नहीं है जो इसे जड़ से समाप्त कर सके। नीम हकीम के चक्कर में न आयें।
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