आधी दूर धूप आधी दूर छाया
एक दिन का हाल है कि बादशाह बीरबल पर खफा होकर उसको अपने नगर से बाहर निकाल दिया। बीरबल हरहालत में खुश रहने वाला था। वह नगर से बाहर किसी ग्राम में जा बसा। इस प्रकार बास करते-करते कई महीने ब्यतीत हो गये न बादशाह ने उसे बुलवाया और न वह स्वयं आया। समय-समय पर बादशाह बीरबल को याद कर बड़ी चिंता करता, परंतु उसका कहीं पता ठिकाना न मिलने के कारण लाचार था। जब किसी प्रकार बीरबल का पता न चला तो ढूंढ़ने के लिये बहुतेरे कर्मचारियों को गॉंवों में भेजा, फिर भी बीरबल का अनुसंधान न हो सका। तब बादशाह उसको ढूँढ़ने की एक नई तरकीब निकाली। नगर-नगर में ढिढोरा फिरवा दिया कि जो सख्स- ”आधी दूर धूप और आधी दूर छाया” में होकर मेरे पास आवेगा उसे एक हजार रूपये पारितोषिक दिये जायेंगे।
बहुतों ने पारितोषिक पाने की चेष्ठा की, परंतु किसी के दिमाग में ”आधी दूर धप आधी दूर छाया” में होकर आने की युक्ति न सूझी। यह बात क्रमश: फैलते-फैलते बीरबल के कान में पहुँची। वह अपने पड़ोस के एक बढ़ई को बुलाकर बोला- तुम एक चारपाई अपने मस्तक पर रखकर बादशाह के पास जाओ और कहो कि मैं- आधी दूर धूप आधी दूर छाया में होकर आपके पास आया हूँ अतएव मुझे पारितोषिक मिलनी चाहिये।
बढ़ई बीरबल को पहचानता था इसलिये उसकी बात मानकर चारपाई सिरपर लेकर बादशाह के पास जा पहुँचा और एक हजार का पुरूस्कार पाने का उजुरदार हुआ। बादशाह इस बात को बढ़ई के समझ से बाहर की समझ कर बोला- ”सचसच बतलाना होगा, कि तुम्हें यह सलाह किसने दी हैं” बढ़ई बोला- पृथिवीनाथ! एक ब्राहृाण कुछ दिनों से हमारे ग्राम में आ बसा है, उसे लोग बीरबल के नाम से पुकारते हैं, उसकी सम्मति से मैंने यह कार्य किया है। बादशाह किसान से बीरबल का नाम सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसको एक हजार रूपये देकर बिदा किया। उसके साथ अपने दो कर्मचारियों को बीरबल को लाने के लिये परवाने के साथ भेजा। इतने यत्न के पश्चात बीरबल फिर बादशाह के हाथ लगा।
अधर महल – Akbar Birbal Story in Hindi
एक दिन दरबार के काम काजों से निश्चित होकर बादशाह बीरबल के साथ गप्पें मार रहा था। गप्प शप के मानी मनोरंजन के हैं। उसी दिन उसको एक अधर महल बनवाने की इच्छा जागृत हुई। इस अभिप्राय से प्रेरित होकर बोला- बीरबल! क्या तुम मेरे लिये एक अधर महल बनवा सकते हो? बनवा देना तुम्हारा काम है और रूपया खर्चना मेरा। बीरबल ने सोच विचार कर उत्तर दिया- पृथिवीनाथ थोड़ा ठहर कर महल बनवाने का कार्यारम्भ करूँगा। इस कार्य के लिये कुछ मुख्य सामनों के संग्रह में समय की आवश्यकता है। बादशाह इस पर राजी हो गया।
फिर बीरबल ने एक दूसरी बात छेड़कर बादशाह का मन दूसरे कामों में उलझा दिया, सायंकाल अवकाश पाकर घर लौट गया। दूसरे दिन बहेलियों को रूपये देकर जंगल से तोतों को पकड़ लाने की आज्ञा दी। हुक्म की देरी थी बहेलिये उसी दिन सैकड़ों तोते पकड़ लाये। बीरबल ने कुछ तोतों को चुनकर खरीद लिया और उनके पढ़ाने का भार अपनी बुद्धिमती कन्या को सौंप आप दरबार का आवश्यक कार्य करने लगा। लड़की ने बुद्धिमानी से पिता के आदेशानुसार तोतों को पढ़ाकर पक्का कर दिया। जब बीरबल ने उनकी परीक्षा ली तो वे उसके मरजी के माफिक निकले। फिर क्या था बीरबल तोतों को लिये हुए दरबार में हाजिर हुआ। उन को दीवान खाने में बंद कर आप बादशाह के पास गया। तोते पिंजड़ों से बाहर निकाल कर छोड़ दिये गये थे। सब तरफ से किवाड़ बंद था। तोते भीतर ही भीतर अपनी शिक्षा के अनुसार अलग-अलग राग अलाप रहे थे।
बादशाह हो सलामकर बीरबल बोला- पृथ्वीनाथ! आपकी मरजी के मुताबिक अधर महल में काम लगवा दिया है, इस समय उसमें बहुतेरे पेशराज और मिस्त्री काम कर रहे हैं, आप चलकर मुवाइना कर लें। बादशाह महल देखने की इच्छा से बीरबल के साथ हो लिया। जब बीरबल दीवान खाने के पास पहुँचा तो उसका किवाड़ खोलवा दिया। तोते बाहर निकल कर आकश में उड़ते हुये बोलने लगे- ईटा लाओ, चूना लावो, किवाड़ लाओ, चौखट तैयार करो, दीवार चुनो। इस प्रकार आकाश में तोतों ने खूब शेर गुल मचाया। तब बादशाह ने बीरबल से पूछा- क्यों बीरबल! ये तोते क्या कह रहे है? बीरबल अदब के साथ उत्तर दिया- हुजूर आपका अधर महल तैयार हो रहा है, उसमें पेशराज और बढ़ई लोग लगे हुये हैं। सब सामान एकत्रित हो जाने पर महल बनना शुरू होगा। बीरबल की इस बुद्धिमानी पर बादशाह हर्षित हुआ और उसको बहुत सा धन देकर बिदा किया।
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