एक फकीर बड़ा तोते बाज था। वह तोता बाजार से खरीद कर लाता और उसे भली प्रकार शिक्षित कर अमीर उमरावों को देकर द्रव्य उपार्जन करता। एक दिन वह अपने नियम के अनुसार एक बहुत अच्छे तोते की खूबसूरती और इल्मियत से निहायत खुश हुआ और वह उसे एक सुविज्ञ सेवक को सुपुर्द कर उससे बोला – देखो इस तोते की आब हवा और दाना पानी पर बड़ी सावधानी रखना, इसकी प्रकृति में कुछ अंतर न पड़ने पावे। इसको जरा भी तकलीफ होते ही फौरन मुझे खबर देना। यदि कोई मेरे पास इसके मरने की खबर लायेगा तो तुरंत उसकी गर्दन काट दी जायेगी।
तोता मर गया, बिचारा सेवक बहुत डरा, उसे अपने जीवन रक्षा की कोई सूरत नहीं दिखलाई पड़ती थी। दोनों प्रकार से मृत्यु का सामना था। कहने पर गर्दन मारी जावेगी और यदि मरने का समाचार न देकर गुप्त रखूँ तो किसी दिन भेद खुलने पर और भी दुर्गति होगी। लाचार अपना कुछ वश न चलते देख बीरबल के पास गया और उससे सारा समाचार कहकर बहुत गिड़गिड़ाया और कष्ट से छुटकारा पाने की तरकीब पूछी। बीरबल बोला- डरो नहीं, मै तुमको अभयदान देता हूँ। इधर नौकर को विदा कर वह तुरत बादशा के पास आ पहुँचा औश्र बड़ी घबड़ाहट के साथ बोला – गरीब परवर! अपना तो…ता, अपना तो…ता। उसकी घबराहट देखकर बादशाह बोले- क्या वह मर गया ? बीरबल बात सँभालते हुए, उत्तर दिया- नहीं पृथ्वीनाथ! वह बड़ा बिरागी हो गया है, आज सुबह से ही अपना मुख ऊपर किये हुए है और कोई अंग नहीं हिलाता, उसकी चांच और ऑखें भी बंद हैं। बीरबल की ऊपर कही बातें सुनकर बादशाह ने कहा- तब क्यों नहीं कहते कि वह मर गया।
बीरबल ने उत्तर दिया- आप चाहे जो कुछ भी कहें परंतु मेरी समझ में तो यही आता है कि वह मौन होकर तपस्या कर रहा है, आप चलकर स्वयं देख लेवें तो बहुत अच्छा हो। बादशाह ने बीरबल की बात मान ली औश्र दोनों तोते के पास पहुँचे, तोते की दशा देखकर बादशाह ने बीरबल से पूछा- बीरबल! कहने को तो तुम बड़े चतुर बनते हो फिर भी तोते के मरे की तुम्हें खबर न मिली, यदि सही बात मुझसे पहले ही बतला दिये होते तो मुझको यहां तक आने की क्या जरूरत थी ?
बीरबल ने उत्तर दिया – पृथ्वीनाथ! मैं लाचार था, क्योंकि यदि पहले ही बतला दिये होता तो जान से हाथ धोना पड़ता।
उसकी इस चालाकी से बादशाह बहुत खुश हुआ और उसको अपनी पहली आज्ञा का स्मरण हो आया, उसने बीरबल की बड़ी प्रशंशा की और एक बड़ी रकम पुरूस्कार में देकर उसे विदा किया। बीरबल उसी क्षण उस रकम को तोते के रक्षक को दे दिया। इस प्रकार बिचारे सेवक की प्रणरक्षा हुई और उसे धन भी मिला।
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