दिल्ली नगर व्यापारों का केन्द्र था, इस लिये वहॉं बहुतेरे व्यापारी बसते थे। घी के दो व्यापरियों में कुछ अनबन हो गई। इसलिये उनमें का एक व्यापारी बादशाह के पास पहुँचकर बोला- पृथ्विीनाथ! अमुक व्यापारी मुझसे एक हजार रूपया कर्ज लेकर अब देने से हीला हवाली करता है। उसकी नीयत रूपये देने की नहीं है। बादशाह न्याय के लिये उसका अर्जीदावा बीरबल के पास भेज दिया। बीरबल उसे पढ़कर दूसरे व्यापारी का अभिशाप पढ़कर सुनाया। जब वह व्यापारी बोला- हुजूर को मालूम हो कि हम दोनों एक ही चीज के व्यापारी हैं इससे व्यापारिक प्रतिद्वन्दिता के कारण वह मुझसे बुरा मानता है और मेरे व्यापार में धक्का पहुँचाने की नीयत से आपके पास झूठा अर्जीदावा लेकर आया है, इसकी जॉंच कराने पर आपको स्वयं झूठ सच का पता चल जायगा, इस संबंध में मैं और कुछ कहना नहीं चाहता।
बीरबल ने उसकी बात मानकर उसको घर जाने की मुहलत दी। फिर पहले व्यापारी को बुलाकर बोला- इस मामले में आपको अभी खामोश रहना पड़ेगा, समय पाकर मैं इसका उचित न्याय करूँगा। अभी आप इस ढंग से रहें मानों कुछ हुआ ही नहीं है। वह बीरबल की बात मानने को लाचार था, चुप-चाप अपने घर चला गया।
व्यापारियों के झगड़े का न्याय करना बीरबल को याद रहता, सोचते-सोचते एक दिन उसे एक नई युक्ति सूझी। बाजार से चार घी से भरे कुप्पे मँगवाये गये, जिनमें कुछ अपना अलग-अलग निशान बनाकर दो खास कुप्पों में एक-एक मोहरे डाल दी। फिर दोनों व्यापारियों को गुलवाकर बोला- देखों यह चार घी के कुप्पे मेरे पास बहुत दिनों से पड़े हुए हैं, अब इनके नष्ट होने का भय है, तुम दोनों इसमें से एक-एक कुप्पा अपने साथ लेजाओ, बाकी दो कुप्पे मैं दूसरे व्यापारियों के साथ बेंच दूँगा। कुप्पों को बाजार में उचित दाम पर बेंचकर जो मिले उसमें से अपना नफा निकाल शेष मूल्य मेरे हवाले करना। वादी तो कुछ इतराज न किया, परंतु दूसरा व्यापारी(यानी प्रतिवादी) बोला- दीवानजी! इतने थोड़े घी के लिये चार व्यापारियों का क्या काम है, आप एक ही को चारों सुपुर्द कर दें। वह बेंचकर सबका मूल्य एकमुस्त अदा कर देगा।
बीरबल ने जवाब दिया- नहीं ऐसा नहीं हो सकता, हमारे लिये सभी समान हैं और हमें सबका ध्यान है। तुम एक एक कुप्पे अपने साथ ले जावों बाकी मैं दूसरों के हवाले करूँगा। बीरबल उन दोनों को दोनों गुप्त निशान वाले कुप्पे देकर बिदा किया। घी कुछ बिगड़ा हुआ था व्यापारियों ने सोचा कि बिना तपाये इसका ऐब दूर न होगा। इसलिये पहले व्यापारी ने कुप्पे को तपाना शुरू किया। जब घी पिघल गया तो उसे एक बड़े कराह में छोड़कर खराया। जब उसके मर्जी के मुताबिक घी एक दम तैयार हो गया और उससे सुगंन्धि आने लगी तो उसने फिर घी को उसी कुप्पे में भरना प्रारंभ किया। जब घी पेनी में पहुँचा तो किसी चीज के खड़कने की आवाज सुनाई पड़ी। उसे बाहर निकालकर देखा तो वह अकबरी मुहर थी। व्यापारी मन में सोचने लगा- यह मुहर बीरबल की है भूल से इस में आ पड़ी है। उसकी वस्तु उसीको देना मुनासिब है। व्यापारी मुहर को लेकर बीरबल के पास पहुँचा और उसकी मुहर उसे देकर अपने घर लौट आया। बीरबल मुहर पाकर सोचने लगा- यह प्यापारी सच्चा है। दूसरे व्यापारी के कुप्पे से भी उसी प्रकार मुहर निकली, परंतु उस लालची को सोना देखकर लोभ समा गया उसे अपने जेठे पुत्र को देकर बोला- इसको यत्न से अपने पास रखो, जरूरत पउ़ने पर मुझे लौटा देना।
इधर जो दो कुप्पे बिना असरफी के थे दूसरे दो व्यापारियों को देकर बीरबल बोला- इसे बेचकर चौथे दिन सबके साथ मूल्य लेकर हाजिर होना। इस प्रकार सत्रतत्र कुप्पों को बेचने और धन संग्रह करने में चारों व्यापारी जा लगे। जब रूपया जमा करने की निश्चत तिथि आई तो वे सब बिक्री के रूपये लेकर बीरबल के पास आये। बीरबल ने तीन व्यापारियों का द्रव्य सहेज लिया जब चौथे की (प्रतिवादी की) बारी आई तो उसका द्रव्य सहेजते हुये बोला- तुम्हारे कुप्पे में अन्य व्यापारियों से अधिक घी था यानी तीन में तो एक एक मन था, परंतु तुम्हारे कुप्पे में सवा मन था। बीरबल की यह बात सुनकर प्रतिवादी घबड़ा गया और बोला- हुजूर क्या कह रहे हैं, मेरे कुप्पे में भी एक ही मन था। गरमाते और तौलते समय उस जगह मेरे घर के और प्राणी भी मौजूद थे, आपको विश्वास न हो तो उनको बुलवाकर जॉंच कर लें, घी की वजन सबके सामने की गई थी।
बीरबल अपने एक सेवक के कान में कुछ समझाकर बोला- तू उसके लड़के से जाकर कहो कि तुम्हारा बाप कुप्पे से निकली असरफी को तुरंत मांग रहा है, तू उसे अभी लेकर मेरे साथ चल। वह कर्मचारी जाकर व्यापारी के लड़के से बोला- तेरा पिता बादशाह की सभा में बैठा है घी कु कुप्पे से निकली अशर्फी लेकर तुझे बुलाया है, लउ़का साथ हो लिया। अपने पुत्र को एकाएक दरबार में उपस्थित देख व्यापारी चिन्ताग्रस्त हुआ, परंतु विवश था, बीरबल के सामने उससे कुछ कह भी नहीं सकता था। बीरबल ने लड़के से पूछा- क्या तुम मुँहर लेकर आये हो? जी हॉं! कहता हुआ लड़का पिता के सामने ही मुहर को बीरबल के हवाले किया। बीरबल ने कहा- वाह, क्या खूब, यही तो एक ही मुँहर है और तुम्हारा पिता बतलाता था कि उस घी के कुप्पे से इसी तरह की चार मुँहरे निकली हैं।
लड़का बाप की तरु देखकर बोला- पिताजी! चार मोहरें कब निकली थी, आपने तो मुझको यही एक मुहर दिया था न। पिता इशारे से पुत्र को दबाते हुए बोला- भला यह तू क्या कहता है, कुप्पे से कब मुहर निकली थी? लड़का बिचारा भला अपने बाप की मंशा क्या जानता था, वह विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया- क्यों पिताजी! जब घी का कुप्पा तपाया जा रहा था तो उसमें से एक ही अशर्फी निकली थी न! बाप बोला- लोग अपने ही से हारते हैं, फिर गुस्सा मन में मारकर कहा- तू इतना बड़ा हुआ परंतु अभी तक तुझ में किसी बात की समझ न आई, भला तू मेरे व्यापार को कैसे कायम रखेगा? इसी तरह बाप बेटें में कुछ देर तक गपड़चौथ होती रही। तब बीरबल बोला- यह तुम्हारा घरेलू चरखा फिर चलता रहेगा अब साफ-साफ बयान करों कि तुम्हें मुद्दई का रूपया देना मंजूर है वा नहीं?
बीरबल की बात का मुद्दालेह ने कुछ उत्तर नहीं दिया। तब भीतर से चिढ़कर वह बोला- तू अब पट्टी पढ़ाकर मुझे धोखा नहीं दे सकता। जब एक मुहर के लिये ईमान छोड़ रहा है तो भला पॉच सौ की गठरी कब न दबाना चाहेगा। बीरबल तो इतना कह गया, परंतु व्यापारी को जूँ तक न रेंगी, इसकी धृष्टता देखकर बीरबल एक दम खिझला गया और एक सिपाही को तुरंत आज्ञा दी- इस झूठे को अभी सौ कोड़े लगावो। सिपाही कोड़ा लेकर मारने को हुआ ही था की व्यापारी का लड़का फिर बोल उठा- वाह पिताजी! अभी उस दिन तो आप स्वयं कह रहे थे कि इस महाजन का मुझे पॉच सौ का ऋण चुकाना है, परंतु चिंता की कोई बात नहीं है इस समय रूपये मेरे पास मौजूद हैं, किसी दिन चुका दूँगा। तब आप उन रूपयों को इसे क्यों नहीं दे देते? लड़के की सभ्यता देखकर बाप ने हार मानली और बीरबल के सामने उन रूपयों को चुका देना स्वीकार किया। किसी ने सत्य कहा है- मार के आगे भूत भागता है। न सौ कोड़ें की नौबत आती न रूपया बरामद होता।
बीरबल ने तत्क्षण मुद्दई के रूपयों को दिलवा दिया और प्रतिवादी को सजा देकर रूपया मारने के अपराध में जेल भेज दिया। मुद्दई अपना धन पाकर बड़ा हर्षित हुआ और बीरबल के न्याय की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगा। फिर बीरबल अन्य व्यापारियों को चिताकर बोला- यहॉं पर आप लोग अधिकतर व्यापारी ही उपस्थित हैं, सबको उचित है की ईमानदारी का सौदा करें, बेइमानी करने के पहले तो भला मालूम होता है, परंतु उसका परिणाम बुरा निकलता है। यह लड़का अभी तक बड़ा ईमानदार है, यदि इसको बुरों की सुहबत न होगी और बाप का असर न आयेगा, तो आगे चलकर इसका व्यापार तरक्की पर रहेगा। फिर लड़के को चिताकर उसे सदैव सच बोलने की शिक्षा देकर बिदा किया। अन्य तीनों व्यापारी भी बीरबल की आज्ञा पाकर घर लौट गये।
इन कहानियों को भी पढ़ें:-
पहले जन्म की वार्ता! – Akbar Birbal Ki Kahani in Hindi
नया कौतुक – अकबर बीरबल की बड़ी माजेदार कहानी!
Ghee Ka Viyapar Akbar Birbal Stories in Hindi with Moral