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नवजात शिशु भी डिजिटल मीडिया से प्रभावित होता है। नवजात शिशु के सामने डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल करते समय सावधान रहना जरूरी है। हाल में हुए नए शोध बताते है कि दो साल से छोटे बच्चे भी डिजिटल मीडिया को समझने लगते हैं। माता-पिता की देख-रेख में 18 महीने से ज्यादा बड़े बच्चे हर तरह के मीडिया को समझ सकते हैं। अब यह धारणा बदलती जा रही है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को हर तरह की स्क्रीन से दूर रखना चाहिए। द अमरीकन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का कहना है कि 18 से 24 माह की उम्र के बच्चों में डिजिटल मीडिया के प्रति समझ विकसित हो जाती है।
हो सकता है खतरनाक!
अगर बच्चे की देखभाल के लिए कोई व्यक्ति मौजूद है और स्क्रीन इस्तेमाल करने में सक्रिय रूप से शामिल है तो बच्चे भी डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल करने में सक्षम हो जाते हैं। कुछ अध्ययन संकेत करते हैं कि इस उम्र में नवजात एजुकेशनल वीडियो देखकर नए शब्द सीख सकते हैं। जब नवजात शिशु के साथ-साथ माता-पिता भी वीडियो देखता है तो वह ध्यान से गौर करता है कि स्क्रीन पर क्या चल रहा है। इस तरह नवजात नई चीजें सीखता है। लेकिन ध्यान रहे कि जरूरत से ज्यादा ऑनलाइन या डिजिटल मीडिया इस्तेमाल करना नवजात शिशु के लिए खतरनाक भी हो सकता है।
मोबाइल और देखरेख साथ-साथ करने से बचें!
नए सोध बताते हैं कि अगर माता-पिता दोनों ही नवजात शिशु पर ध्यान देने की बजाय मोबाइल फोन, टैबलेट या लैपटॉप में लगे रहते है तो इससे शिशु और माता-पिता के बीच में मजबूत कनेक्शन नहीं बन पाते हैं। इसलिए बच्चों को मोबाइल फोन या टीवी के भरोसे छोड़ना समझदारी नहीं है। यह सही है कि नवजात शिशु ऑनलाइन बातों को समझता है, पर सबसे ज्यादा जरूरी है कि आपसी कनेक्शन मजबूत किए जाएं। इसके लिए माता-पिता को बच्चें को संभालते समय टीवी या इंटरनेट इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
बच्चे के सोने के बाद टीवी देखें!
अगर मां टीवी देखते हुए या व्हाट्सएप पर चैटिंग करते हुए अपने नवजात शिशु को संभालती है तो इससे बच्चे पर गलत असर पड़ सकता है। माता-पिता और बच्चे बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए जरूरी है कि बच्चे के सामने स्क्रीन टाइम कम से कम रखा जाए। बच्चे के सो जाने के बाद ही टीवी देखें या चैटिंग करें।
व्यवहार संबंधित समस्या!
डॉक्टर्स का मानना है कि बच्चे के मानसिक विकास के लिए जरूरी है कि माता-पिता और बच्चे के बीच में फेशियल एक्सप्रेशन्स का आदान-प्रदान हो। इनमें आई कॉन्टैक्ट और नॉन-वर्बल कंयूनिकेशन भी शामिल है। अगर नवजात शिशु पर लगातार ध्यान नहीं दिया जाता है तो उसे व्यवहार संबंधित समस्या पैदा हो सकती है। आज की दुनिया में डिजिटल मीडिया को पूरी तरह से नजरअंदाज नही किया जा सकता है, पर आप इसको सीमित कर सकते हैं। इससे आपको नवजात शिशु की देखभाल करने का समय मिलेगा और उसका बेहतर विकास हो सकेगा।
बॉण्डिंग टाइम का सही इस्तेमाल!
स्क्रीन पर होने वाली हलचल और शोर से बच्चे को व्यवधान होता है। जब एक मां अपने बच्चे को दूध पिलाती है तो यह समय बॉण्डिंग टाइम होता है। इस समय का समझदारी से इस्तेमाल करना चाहिए। इस दौरान बच्चे को प्यार करना और उससे बात करना बहुत जरूरी होता है।
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