मनुष्य जीवन में कुसंगति, कुकर्म, बुरे वातावरण, खान-पान आदि अनेक कारणों से कई तरह के दोष आ जाते हैं, जो देखने में छोटे लगते हैं पर वे ऐसे होते हैं, जो जीवन को अशांत, दुखी बनाने के साथ ही उन्नति मार्ग को रुख देते हैं।
ऐसे ही कुछ दोषों में से कुछ पर विचार करते हैं :-
१. स्वार्थ सोच :- जब मनुष्य के विचार सिर्फ उस तक सिमित हो जाते हैं, तो वह मनुष्य स्वार्थी सोच वाला (सिमित छोटी सोच वाला) स्वतः बन जाता हैं। उसके विचारो में गन्दगी आने लगती है। “किस काम से मुझे लाभ होगा”, “मेरी प्रॉपर्टी कैसे बढे”, “मेरा नाम कैसे सबसे ऊंचा हो”, ऐसी प्रकार के विचारो और कार्यो में वह लगा रहता हैं। “मेरे किस कार्य से किसको परेशानी होगी”, “किसको क्या असुविधा होगी”, किसके दिल को ठेस पहुंचेगी, इसका विचार करने की इच्छा स्वार्थी दिल में नहीं होती। ऐसा व्यवहार स्वतः ही उसके दुश्मन की संख्या बढ़ा देता है, जो उसकी उन्नति में बड़ी बाधा पहुंचते हैं।
२. लोग मुझे अच्छा समझे:- इस भावना वाले मनुषय में दंभ की प्रधानता होती हैं। वह अच्छा नहीं बनना चाहते, वह सिर्फ अच्छा दिखना चाहते हैं लोगो की नजर में। दुसरो को ठगने के चक्कर में वह खुद के साथ ही बेमानी कर बैठते है। ऐसे मनुष्य का प्रत्येक कार्य दंभ और चल कपट से भरा होगा। जो कार्य उसे पसंद नहीं वह कार्य भी सिर्फ लोगो को दिखाने के लिए करता हैं ताकि लोग उसकी बढ़ाई करे।
३. मै न करू तो सब चौपट हो जायेगा :- यह भी मनुष्य के अभिमान का एक रूप हैं। वह यह समझता हैं की बस, ‘ अमुक कार्य तो मेरे करने से ही होता है। मै छोड़ दूंगा तो सब ख़तम हो जायेगा। मेरे मरने के बाद तो चलेगा ही नहीं।’ ऐसी सोच दुसरो के प्रति छोटेपन (हीनता) की भावना प्रकट करते है। किसी पुरवा जनम के पुण्य से अथवा भगवत कृपा से किसी कार्य मै कुछ सफलता मिल जाती हैं तो इंसान समझ बैठता है की “यह SUCESS उसे अपनी ही मेहनत से मिली है, मै नहीं रहूँगा तो पता नहीं, क्या अनर्थ हो जायेगा। ” यह सोच कर अभिमान से भर जाता है और जहा मनुष्य मै अहंकार आया वही से उल्टी गिनती शुरू हो जाती है।
४. अपने को तो सिर्फ आराम से रहना है :- यह शब्द ऐसे मनुष्यो के है जो सिर्फ आराम पसंद होते हैं। पैसा चाहे हो न हो, आय का कोई स्त्रोत हो न हो पर रहना उसे पूरे आराम से है। स्वाद पसंद, फिजूल खर्ची, दिखावा शान शौकत का इसके लिए कर्ज तक लेने को तैयार। और कर्ज न मिले तो धनाभाव की स्थति मे बेईमानी, चोरी, रिश्वतखोरी के रास्ते पकड़ लेते है।
५. मेरा कोई क्या कर लेगा :- इस संसार मे सभी मनुष्य सम्मान चाहते है, जो इंसान ऐंठ मे रहता हैं, दुसरो को सम्मान नहीं देता, कहता है:- ‘ मुझे किसी से क्या लेना हैं, मे किसी की क्यों पैरवी करू, मेरा कोई क्या कर लेगा ?’ वह इस अभिमान के कारन बिना वजह ही लोगो को अपना बैरी बना लेता हैं। दुसरो की तोह बात ही क्या उसके अपने भी उस से पराये हो जाते है। वह अभिमान से इतना भर जाता है की किसी के सुख दुःख मे हिस्सा नहीं लेता, वह सिर्फ अपने मे व्यस्त। ऐसे व्यवहार के कारण वह एक समय बाद स्वयं को अकेला असहाय महसूस करता है। क्यों की दुनिया का दस्तूर हैं – “आप किसी के लिए कुछ करोगे तो कोई आप के लिए करेगा। “अगर आपके पास समय नहीं किसी के लिए तो कोई फ्री नहीं होगा आपके लिए। लेना देना यहाँ बराबर चलता है।
६. इस दुनिया मे कोई अच्छा नहीं :- दुसरो मे कमी देखते देखते इंसान की आदत हो जाती है की दुनिया अच्छी नहीं है। महापुरुष और भगवान मे भी वह दोष निकलने लगता है। उसका निश्चय हो जाता है कि दुनिया मे कोई भला नहीं इसलिए वह भी भला नहीं रह सकता। दिन रात दोष देखने और दुसरो का चिंतन करते करते वह भी बहार और अन्दर से दोषयुक्त बन जाता हैं।
इस प्रकार और भी बहुत से दोष है, जो आदत या स्वभाव से बने हुए है। ये सब छोटी छोटी आदतों से सावधान होकर इन्हे तुरंत त्याग देना चाहिए| इस दुनिया मे तरक्की के लिए और आध्यात्मिक उन्नति दोनों के लिए ही इस तरह के दोष घातक है।
(kalyan pustak se preit )