यह तो किसी से छिपा नहीं है कि बीरबल अकबर का मुँह लगा दीवान था। वह उसको हर प्रकार से मात किये रहता था। एक दिन बादशाह गुस्से में था। बीरबल उसके मनोगत भावों को ताड़ न सका और बातों-बातों में उसकी हँसी उड़ाने लगा। बादशाह को उसकी हँसी से मार्मिक वेदना हो रही थी। वह बोला- बीरबल तुम्हारा मिजाज बहुत बढ़ गया है इसलिये बराबर बेअदबी किया करते हो, अब तुम्हें ऐसा मौका नहीं दिया जायगा। भविष्य में यदि फिर कोई ऐसा काम करोगे तो स्मरण रहे कठिन दण्ड के भागी होगे। बीरबल ने अपनी बात रखने के लिये फिर कोई हँसी की बात निकाली, परंतु बादशाह ने उसे बीच में ही क्रुध्द होकर दबा दिया। अब बीरबल को बादशाह का क्रुद्ध होना प्रगट हो गया और वह चुप्पी साध गया। बादशाह बीरबल की बेअदबी से चिढ़ गया था जिस कारण ऑंखे लाल-लाल कर बोला- अब तुम फिर मेरे दरबार में कभी न आना, अभी दरबार से बाहर निकल जाओ।
बीरबल उत्तर देना उचित न समझकर चुपके से वहॉं से सटक सीताराम हो गया। यह सोचकर मन में ढाढ़स किया कि यह तो बादशाहों की गति ही है, जब काल आलेगा तो झक मारेंगे और बुलावेंगे। ऐसी-ऐसी बहुतेरी कल्पनाऍं करता हुआ घर पहुँचा और अपने घर वालों को सावधान कर महीनों गुम रहा। न उसकी बुलाहट हुई न फिर गया ही। इधर बादशाह ने एक दूसरा नया दीवान नियुक्त कर लिया। जब बीरबल को बादशाह का रूख बदलते न दिखलाई पड़ा तो वह चुपचाप वायु परिवर्तन करने के लिये नगर से बाहर किसी दूसरे शहर को चला गया। उसका जाना किसी को मालूम नहीं था। अपना समूचा परिवार दिल्ली में ही छोड़ गया। येनकेन प्रकारेण कई महीना बीत गया, पर न बीरबल को दरबार का समाचार मिला और न बादशाह को बीरबल का ही।
नया दीवान बीरबल के टक्कर का नहीं था, इसलिये बादशाह का दिन उस पर भलीभॉंति जमता न था। वह गुप्तरूप से एक दूसरे दीवान की खोज में था। कितनों की गुप्त छिपे रूप से परीक्षाऍं ली, परंतु कोई उत्तीर्ण नहीं हुआ। तब लाचार होकर उसे विज्ञापनबाजी करने की धुन सवार हुई, उसने शहर-शहर और दिहात-दिहात में यह घोषणा करवा दी कि जो कोई मेरे प्रश्नों का उचित उत्तर देगा वह नया दीवान बनाया जायगा, उत्तर न दे सकने पर उस पर कुछ विचार न किया जायगा।
दरबारी लोग दीवान पद के लिये लालायित हो रहे थे, परंतु परीक्षोत्तीर्ण होना कठिन समझ, उपहास के भय से खामोश रह गये। बादशाह ने अपनी घोषणा में एक मास की की निश्चित तिथि निर्धारित की थी। समय अब करीब आ पहुँचा और सभा का आयोजन किया गया। यह सभा दीवान के चुनाव की थी अतएव इसमें आम जनता को जाने का हुक्म नहीं था, केवल दरबार के लोग और कुछ वे लो सम्मिलित किये गये जो दीवान पद के प्रलोभन से उम्मीदवार बन आये थे। उन उम्मेदवारों में एक आदमी ऐसा आया था जो देखने में बड़ा प्रतिभाशाली जान पड़ता था, उसकी दोनों ऑंखे बड़ी-बड़ी और चमकीली थी, सिर पर सफेद पगड़ी बॉंधे हुए था, दाढ़ी छाती तक लटक रही थी। उसके कुछ केस काले ओर कुछ सफेद थे। जिससे देखने में अधेड़ जान पड़ता था।
बादशाह की आज्ञा से एक परीक्षक बोला- आज की समभा में जो मनुष्य उत्तीर्ण होगा वह दीवान पद पर नियुक्त किया जायेगा। यदि उत्तर देने में भूल होगी तो दुबारा उसकी सुनवाई न होगी। पहला प्रश्न यों है 1. इस भौगोलिक सागर में मोती की सीपियों की गणना क्या है ? मैं ऊपर लिख चुका हूँ कि दीवान पद प्राप्त करने के लिये पाँच उम्मेदवार आये थे सो उनमें चार तो इस प्रश्न को सुनते ही विचार सागर में निमग्न हो गये, परंतु पॉंचवा व्यक्ति जो कि साफा बॉंधकर आया हुआ था और जिसकी दाढ़ी छाती तक लटक रही थी, उत्तर देने के लिये बड़ा उत्सुक जान पड़ा। बारी-बारी सब से उत्तर मॉंगा गया। किसीने कहा- लाख, किसी ने करोड़ और किसी ने अरब तक की संख्या बतलाई, परंतु साफे वाला मनुष्य सबके अंत में बोला- संपूर्ण मनुष्यों की ऑंखें की जितनी गणना है उतनी ही सीपियों की भी है। उसका उत्तर सुनकर चारों तरफ से वाह-वाह की ध्वनि आने लगी। बादशाह भी मन में प्रसन्न हुआ।
नियमानुसार चारो उम्मेदवार नाकामयाब हो गये एक साफे वाला ही बचा रहा। प्रश्नकर्त्ता ने दूसरा प्रश्न किया- इस शरीर का पहला सुख क्या है ? तब साफे वाले ने कहा- हेल्थ इज दी रूट आफ हैपीनेस शरीर के लिये स्वस्थ रहना पहला सुख है। तब दूसरे प्रश्नकर्त्ता बोले- यद्यपि संसार में अनेकों प्रकार के शस्त्र विद्यमान है, परंतु उनमें प्रधान शस्त्र क्या है? उत्तरदाता ने कहा- बुद्धि। तब डोडरमल नामी तीसरे प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न हुआ- यदि बालू के कण और चीनी किसी प्रकार एक में मिश्रित हो जायँ तो पानी डालकर अलग करने के अतिरिक्त दूसरा उपाय क्या है? उत्तरदाता ने कहा- दोनों मिश्रित वस्तुओं को जमीन पर फैला दें कुछ समय में चींटियां चीनी उठा ले जायँगी और बालू के कण जहॉं के तहॉं पड़े रह जायंगे। पॉंचवा प्रश्न नव्वाब खानखाना का हुआ- क्या आप समुद्र का जल पान कर सकेंगे? उसने उत्तर दिया- हॉं, मैं भली भॉंति पान कर सकता हूँ। नवाब ने पूछा- क्योंकर? तब वह बोला- पान करना तो आसान बात है, परंतु पहले आपको उसमें गिरने वाली नदियों को रोकना पड़ेगा। नवाब भी मात हो गया। जगन्नाथ प्रसाद का छठवॉं सवाल इस प्रकार हुआ- मनुष्य चिता में जलाये बिना और कैसे भस्म किया जा सकता है? उसने उत्तर दिया- चिंता की ज्वाला में। फिर सॉंतवॉं प्रश्न टोडरमल का हुआ- सबसे हेठा व्यवसाय क्या है? उम्मेदवार ने बतलाया- भिक्षाटन करना, इसी प्रकार के और और सवालों का उत्तर देने की प्रतीक्षा में वह मनुष्य निर्द्वन्द बैठा रहा, परंतु प्रश्नों का बौछार एक दम बंद हो गया, उसके हाजिर जवाबी से सभा के लोग मात हो गये।
सब को चुप देखकर उम्मेदवार बादशाह की सम्मति लेकर एक प्रश्न अपनी तरफ से किया। बादशाह ने दरबारियों को उत्तर देने के लिये उत्तेजित किया। उसका प्रश्न इस प्रकार था- किवाड़ बंद करते समय उसमें चुरमुर-चुरमुर शब्द किसा कारण होता है। यानी उसका भावार्थ क्या है? सब लोग अवाक हो गये। उसकी शंका का समाधान करने में एक दरबारी भी समर्थ न हुआ। बादशाह उसकी बुद्धि की बड़ी प्रशंसा की और मन ही मन बोला- बहुत दिनों के बाद आज मुझे बीरबल सा निपुण दीवान मिला है। उसके मन से बीरबल के अभाव की चिंता घट गई और दीवान के योग्य पोशाक पहना कर उसे बीरबल के स्थान पर नियुक्त करने का विचार प्रकट किया। तब उम्मेदवार बोला- गरीबपरवर! मैं दीवान बनने की योग्यता नहीं रखता, कारण की जिस कार्य को बीरबल सा बुद्धिसम्राट निभात था वह मैं कैसे निभा सकूँगा? बादशाह ने कहा- मैं बीरबल को निकाल दिया है जिस कारण वह चिढ़कर यहॉं से कहीं बाहर चला गया है। मैंने उसको बहुतेरा ढुढ़वाया पर उसका कहीं पता नहीं चलता, तब लाचार होकर दूसरा दीवान नियुक्त करने पर आमादा हुआ हूँ। जो मैं जानता कि बीरबल अमुक स्थान में है तो मैं यत्नपूर्वक उसे बुलवा लेता।
नये दीवान ने उत्तर दिया- पृथ्वीनाथ आपका प्रताप पृथ्वी के कोने-कोने में फैला हुआ है, यदि आप तनमय होकर उसका खेज कराते तो वह कभी का प्रगट हो गया होता। बादशाह ने कहा- नहीं ऐसी बात नहीं है, मैंने उसके लिये बहुतेरा प्रयास किया, परंतु उसको ढूढ़ नहीं पाया। हॉं अब एक युक्ति बाकी है, यदि काम में लाई जाय तो संभव है कि उसका पता चल जाय। उम्मेदवार ने कहा- पृथ्वीनाथ! यदि वह किसी समय स्वयं आपसे आ मिले तो फिर क्या करेंगे, उसे रक्खेंगे या कोरा लौटा देंगे?
बादशाह बोला- हॉं, मैं उसके लिये बड़ा उत्सुक हो रहा हूँ। तब नये दीवान ने कहा- गरीबपरवर मैं उसका पता जानता हूँ। बादशाह बोला- यदि तुम उसको मिला दोगे तो मैं तुमसे बहुत प्रसन्न होऊँगा। नये दीवान को जब भली-भॉंति विदित हो गया कि बादशाह को बीरबल प्राप्ति की बड़ी उत्सुकता है तो अपना साफा ऊपर को खिसकाते हुए अपनी ढकी ऑंखों को बाहर निकाला! और पाजामा और जामा दोनों उतार कर अलग रख दिया। नकली दाढ़ी उतार फेंकी। तब वह खासा बीरबल हो गया। बहुत दिनों के बिछ़ड़े बीरबल को प्राप्त कर दरबारी गदगद हो गये बादशाह का तो क्या कहना, वह मारे आनंद के विहृल हो गया। सब तरफ से वाह वाही के शब्द आने लगे।
बादशाह के पूछने पर बीरबल ने अपने गुप्त बास का इतिहास इस प्रकार वर्णन शुरू किया- पृथिवीनाथ! आपके पास से जाने के पश्चात मैं एक मास तक घर पा बाल बच्चों के साथ बिताया और सब से बाराबर मिलता जुलता रहा, बाद को शहर छोड़कर बाहर चला गया और गुप्त रूप से रहने लगा। मैं रात्रि में नगर रक्षा के निमित्त भेष बदलकर गस्त लगाया करता था, इतने दिनों के अंतर्गत मैंने कितने चोरों को पकड़-पकड़ कर उनसे चोरी छुड़ाई है। जब मैंने जान लिया कि अब मुझे कोई दरबारी नहीं पहचान सकेगा तो गुप्त रीति से दरबार में आता और परोक्ष्ा में यहॉं की निगरानी कर घर लौट जाता। इस प्रकार गुप्तवास का दिन काटता हुआ आपके सामने प्रगट रूप से उपस्थित हुआ हूँ।
बादशाह बीरबल की इस तत्परता से पड़ा प्रसन्न हुआ और उसको नवीन वस्त्र प्रदान कर फिर से दीवान पद पर नियुक्त किया। यह समाचार नगर में चारों तरफ बिजली के समान फैल गया। प्रजा के लोग बीरबल के पुन: मिलने से बड़ प्रसन्न हुए और सब तरफ से बादशाह को बधाई के समाचार आने लगे।
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