बीरबल अपनी चालाकी से बादशाह हो बारम्बार नीचा दिखाया करता जिससे वह बीरबल से हमेशा शरमिन्दा रहता था। एक दि बादशाह से बदला लेने का विचार किया। अच्छे-अच्छे बैज्ञानिकों और कारीगरों से सम्मति लेकर अपने रहने के कमरे में एक ताख इस ढंग का बनवाया कि जिसके जरिये बीरबल को धोखा दिया जा सके। उसमें कोई ऐसी वैज्ञानिक वस्तु लगा दी गई थी कि जिसपर हाथ रखते ही उससे चिपक जाता था। एक दिन बादशाह अपने कमरे में बैठा हुआ पुस्तकावलोकन कर रहा था, इसी समय बीरबल भी आ पहुँचा। बादशाह बीरबल को देखकर मन में बड़ा प्रसन्न हुआ, प्रगट में बोला- बीरबल! इंतजार कर रहा हूँ। सेव पहले से इसी अभिप्राय से रक्खा गया था, जिससे बीरबल का हाथ आसानी से उस वैज्ञानिक ताख में फंसाया जा सके। संदेह हो जाने पर बीरबल हाथ में आने वाला असामी नहीं था।
आज्ञा का पालन कर बीरबल सेव लेने के अभिप्राय से ताख पर अपना हाथ बढ़ाया। सेव पर पहुँचने से पहले ही उसका दाहिना हाथ उस ताख से चिपक गया। तग बीरबल ने अपना दूसारा हाथ पहले हाथ को छुड़ाने के अभिप्राय से लगाया। वह भी उसी में फंस गया, बीरबल बहुत घबराया और मारे लज्जा के उसका शिर नीचा हो गया। बादशाह ने विचार किया कि बीरबल अभी तक नहीं आया, ताख में फंस कर घबड़ाता होगा इसलिये उसे छुड़ाना चाहिये। वह टहलता हुआ उसके पास गया और बीरबल को ताख में फंसा देखकर बोला- क्या खूब! मेरी चीजें बराबर चोरी जाया करती थी परंतु मुझे चोर का पता नहीं चलता था, आज सौभाग्यवश चोर की गिरफ्तारी हो गई है। जावो बीरबल! तुम्हारा यह पहला कसूर समझकर माफी देता हूँ, लेकिन फिर कभी ऐसा काम न करना।
बीरबल इस घटना से बड़ा लज्जित हुआ और उसके मुखसे कोई जवाब न निकला तब बादशाह ने अपने राजगीरों को आज्ञा देकर उसका हाथ छुड़वा दिया। अब बीरबल को झिपाने के लिये बादशा को सच्चा मशाला मिल गया। वह बारबार उसका याद दिलाकर बीरबल को नीचा दिखाता और बिचारा बीरबल चुप रह जाता।
एक दिन बीरबल ज्यों ही दरबार में आया त्योंही बादशा ने उससे छेड़खानी की- क्यों बीरबल! वह ताक का सेव कहॉं है। बीरबल फिर भी कुछ उत्तर न दिया। बादशाह को इसमें बड़ा आनंद आता और वह नित्य किसी न किसी समय ताक वाला सेव कह कर बीरबल को लजवाता। बिचारा बीरबल चुप रह जाता। जब उसके नाकोंदम आ गया तो बादशाह के झिपाने के तरकीब सोचने लगा।
एक दिन बीरबल ने तीर्थ यात्रा का बहाना कर बादशाह से दो मास की छुट्टी ली। उसकी छुट्टी मंजूर हो गई। बीरबल घर पहुँचकर एक नया ढोंग रचकर अपना बेष परिवर्तन कर साधु का स्वरूप धारण किया। इस प्रकार खूब बनठन कर थोड़ी रात गये घर से बाहर निकला और रातोरात उस जंगल में जा पहुँचा जहॉं बादशाह शिकार खेलने जाया करता था। एक सघन झाड़ी के अंदर आराम से पड़ रहा। दैवात् संध्याकाल में बादशाह भी शिकार खेलने गया। एक हिरन चौकड़ी भरता हुआ उसके आगे आया, बादशाह ने अपना घोड़ा हिरन के पीछे डाल दिया, वह इतनी तेजी से भागा कि उसके सब साथी पिछड़ गये। अंत में हिरन भी एक घने जंगल में पहुँचकर ऑख से ओझल हो गया। कोई आगे-पीछे नहीं दिख पड़ता था। बादशाह बहुत घबड़ाया क्योंकि उसे जंगल से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मालूम था। दैवात् बादशाह को जोर से टट्टी लगी। वह घोड़े को एक पेड़ से बांध कर घनी झाडि़यों की तरफ गया और पाखाने फिरने लगा। एक भयानक भेषधारी राक्षस रूप, काला भुशुण्ड बाल बढ़ाये, बड़े-बड़े दॉंत आगे को निकाले विहंगम डील डौल का दिखलाई पड़ा। वह डाकता कूदता तथा उछलता हुआ दहाड़ने लगा। थोड़ी देर बाद वह बादशाह के समीप आ पहुँचा और अपनी तेज ऑंखों से घूरकर बोला- तू बड़ा प्रजापीड़न करता है, अतएव आ कर मेरा भक्ष बन।
उसका इतना कहना था कि बादशाह एकदम भयकातर हो गया और कॉंपता हुआ उस देव से बोला- हे देव! मैं आपके सामने प्रतिक्षा करता हूँ कि आज से फिर प्रजा को कभी न सताऊँगा, आप कृपा कर मुझे जीता-जागता छोड़ दीजिये।
तब उस देव से अधिक कुछ करते न बना और बादशाह से कहा- अब तेरे प्राण बचने का एक मात्र यही साधन है कि तू मेरे जूतों को अपने शिर पर रखकर एक फर्लांग मेरे साथ चले, अन्य कोई उपाय मेरे पास नहीं है यदि जान बचाना चाहता है तो आगे आ। मरता क्या न करता, बिचारा बादशाह उसकी लाल पीली ऑंखे देखकर थर-थर कॉंप रहा था। डर वश उसके प्रस्ताव को स्वीकार किया। बादशाह को जूता ढोने पर उद्यत देख विशालकाय दैत्य को दया आ गई और उसे बिना किसी पकार का दण्ड दिये ही छोड़ दिया। बादशाह नगर को चला गया।
बीरबल की छुट्टी पूरी हो चुकी थी अतएव अपनी ड्यूटी पर हाजिर होने का निश्चय कर वह अपने घर आया। जब बादशाह को विदित हुआ कि बीरबल तीर्थटन कर लौट आया है तो एक दूत उसे बुलाने को भेजा। बीरबल बादशाह के बुलावे पर तुरंत दरबार में हाजिर हुआ और अदब से सलाम कर अपनी जगह पर जा बैठा। बादशाह को अब भी पहली बात की ढक सवार थी। वह बोला- बीरबल ताक पर का सेव। बीरबल ने उत्तर दिया- जी हुजूर पाखाने वाला देव। बीरबल के इस उत्तर से बादशाह की ऑंखे खुल गई और वह अपने किये पर शरमिन्दा हुआ। उसी दिन से सवाल का जवाब पाकर फिर उसने बीरबल से सेव की बात कभी न छेड़ी।
कालांतर में उसे विदित हो गया कि जंगल वाला देव और कोई न था बल्कि वह बीरबल की ही करतूत थी। अतएव देव का भ्रम जो उसके हृदय में समा गया था वह क्रमश: जाता रहा और दिन सानंद बीतने लगे।
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