अकबर बादशाह को ठट्ठेबाजी (मसख़रा) का बड़ा शौक था और दैवयोग से बीरबल भी बड़ा ठट्ठेबाज (मसख़रा) था। एक दिन बादशाह और बीरबल में ठट्ठेबाजी हो रही थी बादशाह ने कहा- बीरबल बहुत दिन हुआ कोई नया कौतुक तुमने मुझे नहीं दिखलाया अतएव अब कोई ऐसा नवीन कौतुक दिखलावो जैसा फिर कभी देखने में न आवे। बीरबल हँसते हुये बादशाह की आज्ञा शिरोधार्य की और बोला- हुजूर इसमें कोई कठिनता की बात नहीं है परंतु उसकी तैयारी करने में दो लाख रूपये खर्च करने पड़ेंगे। बीरबल को तत्काल दो लाख रूपये दिये गये। वह उन रूपयों को लेकर घर गया। दूसरे दिन स्नान ध्यान से निवृत्त होकर एक लाख तो ब्राहृाणों को दान किया गया बाही एक लाख रूपये अपने काममें खर्च किया। जब रूपया लिये बहुत दिन हो गये तो एक दिन बीरबल के जी में आया कि जो बादशाह को किसी दिन कौतुक की बात याद आयेगी तो वह तत्काल तकाजा कर बैठेगा इसलिये इसको गुप-चुप इसी समय कर दिखाना चाहिये।
वह बीमारी का बहाना कर दरबार जाना बंद कर दिया, धीरे-धीरे बीरबल के बीमारी की बात बादशाह के कानों तक पहुँची। वह घबड़ाकर इलाज के लिये बड़े-बड़े हकीम और वैद्यों को उसके पास भेजा, पर उसकी बीमारी घटने के बजाय दिनोंदिन बढ़ती ही गई। यह समाचार सुन बादशाह एक दिन स्वयं बीरबल से मिलने गया। बादशाह हो देखकर बीरबल रोने लगा और बोला-पृथ्वीनाथ! अब मेरी जिंदगी का अंतिम दिन है, इस बीमारी से मैं बच नहीं सकता। बीरबल के असाधारण बीमारी से बादशाह को बड़ा खेद हुआ और वर बीरबल को तसल्ली देता हुआ बोला- बीरबल! तुम जानते ही हो कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ, तुम्हारे बिना मेरा एक क्षण भी सुखपूर्वक नहीं बीत सकता। खुदा करे ऐसा न हो, नहीं तो तुम्हारी मौत से बढ़कर मेरी मौत होगी।
बीरबल ने उत्तर दिया- गरीबपरवर! विधि के विधान में कोई उलट फेर नहीं कर सकता। समय आने पर किसी की चाहे कितनी ही प्यारी वस्तु क्यों न हो हाथ से निकल जाती है। आप से यह मेरी अंतिम प्रार्थना है कि मेरे पीछे कृपाकर मेरे कुटुम्ब का पालन करते रहियेगा। आपके अतिरिक्त कोई उनको सहारा देनेवाला नहीं है। आह! मेरा जी बहुत घबड़ा रहा है। इस प्रकार ढ़ोंग रचकर बीरबल अपने आप को ऐसा बनाया मानों कोई सचमुच असाधारण बीमार हो। बादशाह बोला- तुम किसी प्रकार की चिंता न करो, मैं तुम्हारे बाल बच्चों का अच्छी तरह पालन करता रहूँगा। इसके बाद बादशाह वहां से बिदा हो अपने महल को चला गया। इधर जब रात्रि आई तो बीरबल के घर से रोने की आवाज आने लगी। बीरबल के मृत्यु का समाचार लोगों के कानों कान पहुँचा। क्रमश: खबर पाकर बीरबल के जाति विरादरी के लोग एकत्रित हुये। सर्वसम्मति से उरद का एक पुतला बनाकर उसके साथ्ज्ञ कुछ रिस्ते के लोग स्मशान पहुँचे और उसे चितापर विधिवत रखकर उसमें आग लगा दी। इधर बीरबल तहखाने की एक कोठरी में छिपा रहा और अपने घर के लोगों से सख्त मनाही कर दी की उसके छिपने का हाल किसी पर विदित न हो। जब बीरबल के मृत्यु का समाचार बादशाह के पास पहुँचा, तो वह अपने प्यारे दीवान की मृत्यु पर शोक करने लगा, परंतु अन्य मुसलमान अमीर उपराव बीरबल की मृत्यु से बड़े प्रसन्न हुए और इस खुशी में फकीरों को मिठाई खिलाई। हिन्दु प्रजा अनाथ सी होकर चारों तरफ शेक मनाने लगी। लोगों ने कई दिनों तक अपना-अपना कार्य बंद रखा। हर तरफ से बीरबल की मृत्यु का समाचार आने लगा। बादशाह ने बीरबल के बालकों को उसकी क्रिया करने के लिये काफी सहायता दी।
कुछ दिनों तक अकबर बिना दीवान के ही सभासदों की सहायता से राजकीय कार्यों को निपटाता रहा, परंतु जब प्रजावर्ग और बादशाह दोनों को क्रमश: बीरबल विस्मर्ण हो गया तो सभासदों की सम्मति से एक मुसलमान को अपना दीवान बनाया। नये दीवान की अंधाधुन्धी से प्रजा वर्ग में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और चारों तरु त्राहि-त्राहि की ध्वनि सुन पड़ने लगी। अपनी मृत्यु के एक वर्ष पश्चात बीरबल अपने कार्य साधन के लिये तत्पर हुआ और अपने पुत्र को एक लाख रूपया देकर बोला- तुम यहॉं से दो मील दूर किसी पहाड़ी पर एक बड़ा भव्य महल तैयार कराओ। महल ऐसा हो कि उसकी लपट (चमक) कई मीलों तक पहुँचे। यह काम बड़े गुप्त रूप से करना है, अतएव महल का पूर्णतय निर्माण एक ही रात में होना चाहिये।
बीरबल का पुत्र बड़ा समझदार था। पिताके आदेश पर पहले महल में लगने वाली वस्तुओं को बड़ी सावधानी से संग्रह किया। जब उसे भली भांति संतोष हो गया कि अब समान के अभाव में महल बनने का कोई काम न रूकेगा, तो वह गुप्त रीति से बहुत से कारीगरों को नियुक्त कर एक रात में हल्ला बोल दिया और कारीगरों को भली-भॉंति ताकीद करदी कि महल बनने का काम बड़ी गुप्त रीति से किया जाय और महल एक ही रात में बनकर तैयार हो। महल रातो-रात बनकर तैयार हो गया। करीगरों ने भली-भांति दस्तकारी दिखाई। लकड़ी पर इस सफाई से रोगन किया कि कोई भी देखकर नहीं कह सकता था कि वह लकड़ी का बना है। स्थान-स्थान पर शीशों को ऐसी खूबी से जड़ दिया कि उसकी चमक कोसों तक फैलती थी।
तब बीरबल खूब साफ सुथरे वस्त्रों से सुसज्जित होकर उस नये महल में आबाद हुआ। सबेरा होते ही वह बड़े ठाट बाट से सजकर नगर में पहुँचा। एक वर्ष का विश्राम पाकर बीरबल खूब तगड़ा हो गया था। अच्छी सेवा होने से उसके शरीर के अंग प्रत्यंग खिल गये थे। नगर में जाते समय उसे देखकर किसी को बीरबल होने का भ्रम न हुआ। इस प्रकार देखता भालता राजदरबार में जा पहुँचा। एक प्रतिष्ठ आगन्तुक को देखकर सभासदगण एकटक उसी को तरफ देखने लगे, सभा का काम बंद हो गया, परंतु किसी ने उसको छेडा नहीं। अंत में कूछ देर बाद बादशाह ने पूछा- आप कौन है! कहॉं से आये हैं, और यहॉं आने का क्या प्रयोजन है! बादशाह के ऐसे अपरिचितों से प्रश्नों को सुनकर बीरबल बोला-गरीबपरवर! मैं आपका पुराना दीवान बीरबल हूँ। बादशाह भौंचक सा हो गया और रूखाई से बोला- अय! बीरबल तू तो मर गया था न, फिर सजीव कैसे लौटा। बीरबल ने उत्तर दिया- हुजूर! मैं मर तो गया था परंतु जब स्वर्ग लोक को गया तो इंद्र मुझ पर प्रसन्न होकर मुझे अपना मंत्री बना लिया, तबसे मेरा दिन बड़ा सुखपूर्वक बीतता है, मेरी सेवा के लिये अप्सरायें नियुक्त हुई हैं। सर्वदा खाने को उत्तमोत्तम पदार्थ और पान करने के लिये अमृत प्रस्तुत रहता है।
बीरबल की ऐसी बातें सुन बादशाह ने पूछा- तो ऐसे आनंद उपभोग को छोड़कर तुम्हारा यहॉं आना कैसे हुआ? बीरबल ने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया- पृथ्वीनाथ! आप हमारे पुराने अन्न दाता हैं, यह स्मरण कर इंद्र से मुहलत लेकर आपसे मिलने आया हूँ, आपके किये हुए उपकार मेरे हृदय-पट पर अंकित हैं इसीलिये आपके निमित्त स्वर्गलोग से एक उत्तम महल और एक परी साथ लाया हूँ। उपरोक्त दोनों चीजें यहां से थोड़ी दूर एक पहाड़ी पर छोड़ आया हूँ, यदि आप वहॉं तक चलने का कष्ट करें तो मैं उन्हें आपको दिखला दूँ।
बीरबल की बातें बादशाह को सच्ची जान पड़ी। उसने मन में अनुमान किया- जब बीरबल मर गया था तो बिना प्रयोजन के हुये लौटकर कैसे आया, और आया भी तो परी और महल इसके हाथ कैसे लगा। नि:संदेह बीरबल सत्य कहता है। उन चीजों की परीक्षा के लिये नये दीवान और कुछ अन्य प्रतिष्ठित लोगों को उसके साथ भेजा। बीरबल सबे साथ-साथ चलकर उस पहाड़ी के समीप जा पहुँचा और उन लोगों को दूर से अंगुली का इशारा करके बोला- देखो वह सातवें खंड पर बैठी हुई परी हम लोगों की तरु ध्यानपूर्वक देख रही है। अधिक आदमियों को एक साथ अपने तरु आते देखकर उसे ताज्जुब हो रहा है, उसका चंद्रमुख कैसा चमक रहा है! उसकी बिखरी लटें क्या ही काली नागिन के समान लपलपा रही हैं। आदि आदि कई प्रकार के चकमें देकर बड़ी मुलायमी से पूछा- क्यों, वे सब बातें अब तक आप लोगों को दिखलाई पड़ी वा नहीं, यदि न दीख पड़ती हो तो अभी मौका है उन्हें भली भॉंति देखलें, ये सब बातें आप लोगों को बादशाह से कहनी पड़ेंगी। फिर किसी प्रकार हीला हवाली करने से काम न चलेगा।
बीरबल के साथ एक से एक सुप्रतिष्ठित नागरिक और दरबारी भेजे गये थे, वे ऐसे कौतूहल भरी बातों को सुन मन में कहने लगे- हो न हो यह बीरबल प्रेत होकर आया हो! क्योंकि सिवा महल के इसकी बतलाई एक बात भी हमें नहीं दीख पड़ती। बीरबल के बारंबार पूछने पर उन लोगों ने एक स्वर में कहा- अफसोस हमें सिवा महल के और कुछ भी नहीं दीख पड़ता। तब बीबरबल बोला-आप लोग क्षमा करेंगे, मैं पहले आप लोगों से एक बात कहना भूल गया था, वह यह कि इस लोक के मनुष्य अधिकतर पाप कर्म में रत हैं, दूसरे बहुत से लोग बणशंकर भी हो गये हैं इसलिये इन दोनों श्रेणी के मनुष्यों के अतिरिक्त बाकी लोगों को ही ये स्वर्गीय चीजें दीख पडेंगी। एब बार फिर से देखकर आप लोग सत्यासत्य का निर्णया कर लें। बीरबल फिर पहले की तरह सबको दिखलाना शुरू किया। इस बार लोग बड़ीसतर्कता से देख रहे थे, पर कुछ हो तब तो दिखलाई पड़े, सिवा महल के उनकी दृष्टि में और कुछ भी न आया। परंतु वर्णशंकर बनने के भय से सब लोगों ने परी का दिखलाई पड़ना स्वीकार किया और एक साथ ही बोल उठे- वाह वाह! क्या कहना!! जो परी का नाम सुना था सो आज प्रत्यक्ष देखने में आई, ऐसा वारांगणा आज तक मृत्युलोक में किसी को दृष्टिगत न हुई होगी।
बीरबल बोला- आप लोग भली-भॉंति पुन: पुन: देख लीजिये क्योंकि यह बात बादशाह के सामने कहनी पड़ेगी। दरबारियों ने कहा- निसंदेह हम सब इस बात को बादशाह के सामने भी इसी प्रकार ज्यों की त्यों कहदेंगे। पहले तो बीरबल इन लोगों की मूर्खता पर मन में बड़ी देर तक हर्ष मनाता रहा, परंतु उनको अपने माफिक समझ कर शांत रहा। इन्हें यह सब देखते सुनते बहुत देर हो गई। उधर बादशाह भी इनकी प्रतीक्षा करते करते घबड़ा रहा था, इसी बीच बीरबल सबको साथ लिये हुये जा पहुँचा। इनको देखते ही बादशाह प्रफुल्लित हो गया और हर्ष के सहित नये दीवान तथा अन्य बड़े-बड़े कर्मचारियों से वहॉं का समाचार पूछा। वे बीरबल के कथन की पुष्टि करते हुए महल और परी का होना स्वीकार किये, बल्कि कुछ और बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किये। नया दीवान बोला- हुजूर लाहौल बिला कूवत! ऐसी परी क्या आज तक किसी को नसीब हुई होगी। नाहक यहॉं की स्त्रियॉं अपनी खूबसूरती का डींग हॉंकती हैं। महल की सोभा और चमक तो सूर्य के तेज को भी मात करने वाली है।
दीवन के मुख से वहॉं की प्रशंसा सुन बादशाह और भी भुलावे में पड़गया और उसका हृदय काबू के बाहर होने लगा। तव तुरंत बीरबल से बोला- बीरबल! उसको यहां लिवालावे। बीरबल बादशाह की बात काटते हुए बोला- पृथ्वीनाथ! वह स्वर्ग की परी है, पैदल चलकर यहॉं नहीं आ सकती, हाँ यदि आप स्वयं चलकर उसे लिवा लावें तो भले ही आपके प्रेम में पड़कर शायद चली आवे। वह तो दीवान के मुख से परी की प्रसंशा सुनकर मोहित हो चुका था, इनकार कब करता। तत्काल सवारी तैयार करने की आज्ञा दी और आप भी कपड़े लत्ते से लैस हो गया। थोड़ी देर बाद सवारी तैयार होकर आन पहुँची, सभा के लोग पहले ही से सुसज्जित थे, सब लोग नगर से बाहर निकले। जिस समय बादशाह की सवारी इस ठाट बाट से निकली देखते ही बनती थी, अगर कोई अपरिचित मनुष्य उस समय के समाज को देखता तो उसकी और उसके वैभाव की भूरि-भूरि प्रशंसा करता।
मध्याहृ में बादशाह पहाड़ी के समीप जा पहुँचा, धूप बड़ी तेज पड़ रही थी। धूप की लपट महल के शीशों पर पड़ने से उसका प्रतिबिम्ब बहुत दूर तक पहुँचता था, जिससे महल की शोभा दिन दूनी रात चौगुनी हो रही थी। दृष्टि पड़ते ही ऑखें चौंधिया जाती थी। बादशाह ऐसे अपूर्व महल को देख सारे महलों की उत्तमता भूल गया और बीरबल के आग्रह से अपनी मण्डली सहित पहाड़ी पर चढ़ने लगा। थोड़ी देर चलकर महल के नीचे जा पहुँचा और महल की सुन्दरता देखने लगा।
बीरबल बोला- गरीबपरवर! ऊपर दृष्टि फैलाकर देखिये वह सातवें खण्ड की खिड़की पर बैइी हुई परी हम लोगों की तरफ देख रही है, उसकी दासी पीछे से पान बीड़ा थमा रही है। यह दासी क्या है मानो सुंदरता की सीमा है। वाह परी का क्या कहना! जिस की दासी ऐसी है उसके मालिकिन की प्रशंसा करना तो मानो सूर्य को दीपक दिखाना है। बरंबार ऊँगली का संकेत कर उसे दिखलाने लगा फिर भी कुछ न देख पड़ने पर बादशाह ताज्जुब से बाला- आप न जाने क्या देख रहे हैं, मुझे तो कुछ भी दिखलाई नहीं पड़ता। बीरबल बोला- यदि आपको मेरे कहने पर विश्वास नहीं पड़ता तो आप अपने दीवान और अन्य मुसाहिबों से पूछ लीजिये। वे लोग तो पहले ही से बीरबल के पंजे में पड़ चुके थे, एक स्वर से परी को दीख पड़ना स्वीकार किया और बादशाह को उसके न दिखाई पड़ने पर आश्चर्य प्रकट करने लगे। बादशाह विचार सागर में लहरें मार रहा था, उसका मन नितांत चंचल हो रहा था। इसी बीच बीरबल ने कहा- पृथ्वीनाथ! मैं पहले आपसे एक बात कहना भूल गया था, वह यह कि स्वर्गीय वस्तुऍं यहॉं के निवासियों को बड़ी कठिनता से दीख पड़ती हैं कारण कि आजकल अधिकतर लोग वर्णशंकर हो गये हैं और वर्णशकरों को स्वर्गीय वस्तुऍं स्वप्न में भी नहीं दृष्टिगत होती, प्रत्यक्ष की तो बात ही निराली है। आप को खूब दृष्टि गड़ाकर ध्यानपूर्वक देखना चाहिये। देखिये दुइज का चॉंद थोड़े अर्से के लिये अवश्य उदय होता है। परंतु सीाी देखने वाले उसको नहीं देख पाते हॉं जो जन्मजा कुलीन और कर्म से पवित्र होते हैं वे उसे तुरंत देख लेते हैं।
बीरबल की इन बातों से बादशाह और घबड़ाया और मनमें कल्पना करने लगा- सबको तो वह स्वर्ग की परी और उसकी दासी प्रत्यक्ष दिखलाई पड़ती है और मुझे नहीं, इसका क्या कारण है? हो न हो, मैं ही वर्णशंकर होऊँ। अब तक मैं अपने वर्णशंकर नहीं समझता था, परंतु आज इस स्वर्ग की परी के सामने परीक्षा होने पर मुझे अपना बर्णशंकर होना निश्चित हो गया। मेरे ऐसे पतित जीवन को कोटिश: धिक्कर है। अब मुझे भेद को छिपाना आवश्यक है नहीं तो प्रजावर्ग में मेरी बड़ी अपकीर्ति फैलेगी, मुँहपर तो सब वाह-वाह करेंगे पीछे वर्णशंकर समझकर मेरी हँसी उड़ावेगे। इतने में बीरबल फिर अंगुली का संकेत करता हुआ बोला- देखिये-देखिये पृथ्वीनाथ! वह चंद्रानना बैठी है और उसकी दासी बगल में खड़ी है। बादशाह ने लाचार होकर उसकी बात मानली और बोला- हॉं हॉं अबकी बार वह मुझे प्रत्यक्ष दीख पड़ी। वह खिड़की में खड़ी होकर इधर को ही देख रही है।
बादशाह को परी का देख पड़ना स्वीकार करने पर बीरबल सब सभासद और नये मंत्री के सहित महल के चौधे खण्ड पर गया। वहॉं पर पहले से मुलायम कोंच और मखमल की तकिया सुसज्जित रखी जा चुकी थी, बीरबल बादशाह हो कोंच पर बैठाकर उनसे गपाष्टक मारने लगा, पर यह बात बादशाह को पसंद नहीं आती थी, उसका मन तो परी के देखने में लगा था। वह तत्क्षण बादशाह के मनकी बात ताड़ गया, जल्दी में फूल और इत्र तथा गुलाबजल से सबका स्वागतकर बोला- गरीबपरवर! आप और आपके साथी मृत्यु लोक के वस्त्रभूषाणों को धारण किये हुए हैं, और ये सब नश्वर हैं, मैं सबको स्वर्गीय वस्त्र देता हूँ कृपया उसे धारण कर इसलोक और परलोक दोनों का सुख अनुभव करें। ये कपड़ें मैं पहले ही से अपने साथ लेता आया हूँ और ये कभी नष्ट होने वाले भी नहीं हैं। भला बीरबल के चकमें से कौन निकल सकता था, बादशाह के स्वीकार करते ही सब लोग अपने कपड़े ऊतार-ऊतार कर अलग धर दिये और बीरबल के दिये कपड़ों को धारण करने पर उद्यत हुए। बीरबल कुछ सोच विचार कर बादशाह को तो असली वस्त्र पहनाया परंतु दीवान आदिकों को इतना ही कहकर रह गया कि इन स्वर्गीय कपड़ों को पहन लीजिये।
नये दीवान ने अपनी ऑखों के सामने कोई वस्त्र न देखकर मन में सोचा- ऐसे कपड़े पहनने का अर्थ तो अपने को नग्न करना है, परंतु बीरबल की बात नामंजूर कर वर्णशकर कौन बने, इस बेइज्जती से तो नग्न होकर रहना ही अच्छा है। उसके बदन पर केवल पजामा शेष था उसे भी उतार कर अलग फेंक दिया और ऐसा ढोंग बनाया मानों लोगों के देखने में स्वर्गीय कपड़े ही पहन रहा है। फिर कपड़े पहने हुओं के समान ऐंड़कर अपनी जगह पर नंग धड़ंग जा बैठा। उसके बदन पर यदि एक लगोट न रह गया होता तो गुप्तेन्द्रियॉं भी प्रगट दिखालाई पड़ने लगती। दीवन का ऐसा भेष देखकर लोगों को हँसी आने लगी, परंतु समय हँसने के विपरीत था इसलिये लोगों ने उसे प्रगट नहीं होने दिया। हँसकर वर्णशंकर बनना किसी को मंजूर नहीं था- भाई तू भी चुप, मैं भी चुप।
नये दीवान के नग्न हो जाने पर बीरबल ने बारी-बारी सबको नग्न कर दिया। क्या कहना था दरबार का दरबार नगोटिया हो गया, बादशाह मन ही मन आन की तान सोचता रहा अंत में उसकी हृदय तंत्री बोली- भाई स्वर्गीय चरित्र बड़े ही अद्भुत हैं। तब बादशाह ने बीरबल से पूछा- क्यों साहब अब तक लोग स्वर्गीय पोशाक पहन चुके वा नहीं? बीरबल ने उत्तर दिया- जी हॉं, अब सब लोग एक दम कपड़े लत्ते से लैस हैं, परंतु एकाएक वहॉं (परी के पास) सबको न लिवा चलकर पहले मैं उसकी अनुमति ले लना उत्तम समझता हूँ, आप लोग यहीं ठहरे मैं उसकी स्वीकृति लेकर तत्काल लौट आता हूँ, बीरबल बगल के एक कमरे में भीतर से सिटकुना बंद कर छिप रहा, कुछ समय बिताकर बाहर निकला और बादशाह से प्रार्थना कर बोला- गरीबपरवर! परी की ऐसी अनुमति है कि यह दिन का समय है, इस वक्त सब लोग वापस जावे रात्रि में मुझसे मिल सकते हैं। उसने एक बात और भी कही है- अपने मालिक से बोलना कि मुझे इस पहाड़ी की आबहवा बड़ी सुहावनी और निरोग जान पड़ती है इसलिये कुछ दिनों तक मेरा यहीं रहने का विचार है। मैं पहले से बादशाह की हो चुकी हूँ तदर्थ किसी न किसी दिन उनसे अवश्य मिलूँगी। इस समय बादशाह के साथ और बहुत से लोग आये हुए हैं, मैं उनके सामने नहीं मिल सकती। स्वर्गीय परी का ऐसा संदेशा सुनकर बीरबल फिर बोला- पृथ्विनाथ! मुझे भी मुनासिब यही जान पड़ता है। हम लोग उसकी मरजी के अनुसार चलें, नहीं तो यदि हमारे ब्योहारों से ऊबकर कहीं वह रूष्ट हो गई तो फिर बना बनाया काम बिगड़ जायेगा। इस समय लौट ही चलना बुद्धिमानी है।
कोई उपाय कार्यान्वित होते न देख बादशाह लाचार होकर मनगढ़त परी की आज्ञा का पालन करता हुआ नगर की तरफ चला। आगे-आगे बीरबल उसके पीछे बादशाह और सबके पीछे कतार से अन्य लोग चल रहे थे। बीरबल और बादशाह तो कपड़े पहने हुये थे लेकिन पीछे वाले सब नग्न शरीर केवल एक लगोटी पहने हुये थे। बादशाह विमुख लौटने के कारण बड़ा दुखी था, लेकिन चूँकि परी ने रात को उससे मिलने का वादा किया था। इससे भीतर-भीतर कुछ धैर्य भी बँधा हुआ था। इस प्रकार सबको लिये हुए बीरबल नगर में पहुँचा। शहर के रईसों को यों नंगधड़ंग घूमते देख नागरिकों को हँसी आने लगी। यह दल लिये हुये बीरबल जिस गली से होकर जाता वहॉं के लोग इनको देखकर हँस पडते। जब इनसे रहा न गया तो नागरिकों को डाटकर बोले- तुम लोग बड़े मूर्ख हो जो हमको देखकर हँस रहे हो, तुम्हें मालूम नहीं कि बीरबल हम को स्वर्गीय आनंद लुटा रहा है। हमारे इन पवित्र वस्त्रों को मृत्युलोक निवासी देख नहीं सकते इसी लिए तुम मुझे नग्न देख रहे हो।
नगर निवासी निरे भोंदू नहीं थे, उनमें भी एक से एक धुरंधर विद्ववान थे। आपस में बोले- हो न हो! यह सब बीरबल के ही बहकावे में आ गये हों। तुम लोग जानते हो कि बीरबल को मरे आज कई बर्षो का समय बीत गया है, फिर बीरबल कहॉं से आ पहुँचा। यह बात सबको स्मरण होगा कि एक समय बादशाह ने बीरबल से एक अजीब तमाशा दिखलाने को कहा था। जिस कारण इतने दिनों तक गुप्त रहकर आज बादशाह हो अजीब तमाशा दिखलाता हुआ आ रहा है। सब नागरिकों ने इस बात को स्वीकार किया और सब बीरबल की बुद्धिमानी पर और जोर जोर से हँसने लगे। नागरिकों के ऐसे हास्य और भाषण को सुनकर नग्न अमीरों के कान खड़े हो गये, परंतु फिर भी वे बीरबल की सारी बातें सच्ची मानकर नगर वासियों की उपेक्षा करते हुये महल की तरफ चले। बीरबल अपने दल के सहित सारे नगर में घूमता फिरता शाही दरबार में जा पहुँचा। सब लोग जगह बा जगह खड़े हो गये, परंतु बीरबल बादशाह को सबसे अलग ले गया और तब एकांत में अपना दोनों हाथ जोडकर बोला- पृथ्वीनाथ! यदि मेरे अपराधों की माफी मिले तो में कुछ निवेदन करूँ। बादशाह ने कहा- अच्छा करो, तुम्हें माफी दी जायगी। तब बीरबल बोला- हुजूर को स्मर्ण होगा कि एक समय वर्ष के भीतर मुझे एक अजीब तमाशा दिखलाने को श्रीमान् ने हुक्म दिया था और यह भी बचन दिया था कि उस अजीब तमाशा को दिखलाने में मुझको की गई गुस्ताखियॉं भी माफ कर दी जायँगी। उसी के मुताबिक हुजूर को यह नया तमाशा दिखलाया गया है, कभी आपको इस प्रकार की नग्न सभा देखने में न आई होगी और न फिर भविष्य में देख सकेंगे यही इसका अंत है, पृथ्वीनाथ! कही मरा हुआ आदमी भी लौट कर आ सकता है? भला स्वर्ग की परी यहॉं क्यों आवेगी ?
बादशाह लाचार था वह बीरबल के कथनानुसार उसको पहले से माफी दे रखी थी, अतएव सभासदों से बोला- दीवानजी! आज से लगभग एक वर्ष पहले मैंने अपने दीवन बीरबल को एक अजीब तमाशा दिखलाने की आज्ञा दी थी और उसमें होने वाले सभी अपराधों के लिये उसको माफी भी दी गई थी। सो आज बीरबल ने वही अजीब तमाशा हमको दिखलाया है। आशा करता हॅू आप लोग उसपर रूष्ट न होंगे। यह जो कुछ भी हुआ सब मेरी आज्ञा के कारण हुआ है। इस बात का मुझे भी दु:ख है कि उसने आपलोगों की बड़ी हँसी कराई है। मैं ऐसा नहीं चाहता था। मैं तो केवल अजीब तमाशा ही देखने की लालसा रखता था। आपलोग इस बात को एकदम भूल जायें और बीबरल से पहले सा ही प्रेम रखें।
बादशाह की आज्ञा सुनकर समस्त हिन्दू दरबारी धन्य-धन्य कहने लगे, परंतु मुसलमान दरबारियों का मुँह लटक गया और मनही मन बीरबल की धृष्टता पर गालियों का बौछार उड़ाने लगे। बीरबल उनके वस्त्रों का गट्ठर पहले ही दरबार में भेज चुका था इसलिये उसको खुलवा कर सबके हवाले किया। सब लोग असली वस्त्र धारण कर अपनी-अपनी जगहों पर जा बिराजे और सभाका दूसरा कार्यारम्भ हुआ।
शब्दों के अर्थ:-
वर्णसंकर – जब नर एक जाति की और मादा दूसई जाति की होती है तो उनसे उत्पन्न संतान को वर्णसङ्कर कहते हैँ।
ठट्ठेबाजी – मसख़रा
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