31) रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि ।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि ।।
अर्थ: जो व्यक्ति किसी से कुछ मांगने के लिए जाता है वो तो मरे हुए हैं ही परन्तु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुंह से कुछ भी नहीं निकलता है।
32) रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय ।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय ।।
अर्थ: कुछ दिन रहने वाली विपदा अच्छी होती है। क्योंकि इसी दौरान यह पता चलता है कि दुनिया में कौन हमारा हित या अनहित सोचता है।
33) बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।।
अर्थ: बड़े होने का यह मतलब नहीं है कि उससे किसी का भला हो। जैसे खजूर का पेड़ तो बहुत बड़ा होता है परन्तु उसका फल इतना दूर होता है कि तोड़ना मुश्किल का काम है।
34) रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय ।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय ।।
अर्थ: अपने दुख को अपने मन में ही रखनी चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दुख को कोई बांटता है।
35) रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर ।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर ।।
अर्थ: जब बुरे दिन आए हों तो चुप ही बैठना चाहिए, क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती।
36) बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय ।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय ।।
अर्थ: अपने मन से अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दूसरों को खुशी हो और खुद भी खुश हों।
37) मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय ।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय ।।
अर्थ: मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं परन्तु यदि एक बार वे फट जाएं तो करोड़ों उपाय कर लो वे फिर वापस अपने सहज रूप में नहीं आते।
38) रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत ।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत ।।
अर्थ: कम दिमाग के व्यक्तियों से ना तो प्रीती और ना ही दुश्मनी अच्छी होती है। जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों को विपरीत नहीं माना जाता है।
39) रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय ।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय ।।
अर्थ : प्रेम के धागे को कभी तोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि यह यदि एक बार टूट जाता है तो फिर दुबारा नहीं जुड़ता है और यदि जुड़ता भी है तो गांठ तो पड़ ही जाती है।
40) रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून ।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून ।।
अर्थ: इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।
41) वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग ।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग ।।
अर्थ: वे पुरुष धन्य हैं जो दूसरों का उपकार करते हैं। उनपे रंग उसी तरह उकर आता है जैसे कि मेंहदी बांटने वाले को अलग से रंग लगाने की जरूरत नहीं होती।
⇐ रहीम दास जी के दोहे अर्थ सहित हिंदी में 21 से 30 तक।
Read Rahim Das Ji Ke Dohe Arth Sahit in Hindi 31 to 41, रहीम दास जी के दोहे अर्थ सहित हिंदी में 31 से 41 तक।