41) बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर । पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥ अर्थ: खजूर का पेड़ न तो राही को छाया देता है, और न ही उसका फल आसानी से पाया जा सकता है। इसी तरह, उस शक्ति का कोई महत्व नहीं है, जो दूसरों के काम नहीं […]
31) दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥ अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो […]
21) हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास। सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।। अर्थ: यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं। सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता […]
11) अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।। अर्थ: न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है। 12) निंदक […]
1) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।। अर्थ : जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। 2) पोथी पढ़ि पढ़ि जग […]
1) सत्संगति है सूप ज्यों, त्यागै फटकि असार । कहैं कबीर गुरु नाम ले, परसै नहीँ विकार ।। अर्थात :- सत्संग सूप के ही तुल्ये है, वह फटक कर असार का त्याग कर देता है। तुम भी गुरु ज्ञान लो, बुराइयों छुओ तक नहीं। 2) मैं मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ । जो घर […]
1) कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय । सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय ।। अर्थात:- कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए। सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा। 2) झूठे सुख को सुख कहे, मानत […]
1) जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान । मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।। अर्थात:- सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का (उसे ढकने वाले खोल का)। 2) कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई । […]