कबीर दास के दोहे अर्थ सहित हिंदी में 41 से 50 तक।

Bada Hua To Kya Hua Kabir Das Ke Dohe Arth Sahit in Hindi
Bada Hua To Kya Hua Kabir Das Ke Dohe Arth Sahit in Hindi

41) बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
अर्थ: खजूर का पेड़ न तो राही को छाया देता है, और न ही उसका फल आसानी से पाया जा सकता है। इसी तरह, उस शक्ति का कोई महत्व नहीं है, जो दूसरों के काम नहीं आ सकती।

42) भगती बिगाड़ी कामिया, इन्द्री करे सवादी |
हीरा खोया हाथ थाई, जनम गवाया बाड़ी ||
अर्थ: इच्छाओं और आकाँक्षाओं में डूबे लोगों ने भक्ति को बिगाड़ कर केवल इन्द्रियों की संतुष्टि को लक्ष्य मान लिया है। इन लोगों ने इस मनुष्य जीवन का दुरूपयोग किया है, जैसे कोई हीरा खो दे।

43) बूँद पड़ी जो समुंदर में, जानत है सब कोय ।
समुंदर समाना बूँद में, बूझै बिरला कोय ॥
अर्थ: एक बूँद का सागर में समाना – यह समझना आसान है, लेकिन सागर का बूँद में समाना – इसकी कल्पना करना बहुत कठिन है। इसी तरह, सिर्फ भक्त भगवान् में लीन नहीं होते, कभी-कभी भगवान् भी भक्त में समा सकते हैं।

44) चली जो पुतली लौन की, थाह सिंधु का लेन ।
आपहू गली पानी भई, उलटी काहे को बैन ॥
अर्थ: जब नमक सागर की गहराई मापने गया, तो खुद ही उस खारे पानी मे मिल गया। इस उदाहरण से कबीर भगवान् की विशालता को दर्शाते हैं। जब कोई सच्ची आस्था से भगवान् खोजता है, तो वह खुद ही उसमे समा जाता है।

45) चिड़िया चोंच भरि ले गई, घट्यो न नदी को नीर ।
दान दिये धन ना घटे, कहि गये दास कबीर ॥
अर्थ : जिस तरह चिड़िया के चोंच भर पानी ले जाने से नदी के जल में कोई कमी नहीं आती, उसी तरह जरूरतमंद को दान देने से किसी के धन में कोई कमी नहीं आती।

46) चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए ।
वैद बेचारा क्या करे, कहा तक दवा लगाए ॥
अर्थ : चिंता एक ऐसी चोर है जो सेहत चुरा लेती है। चिंता और व्याकुलता से पीड़ित व्यक्ति का कोई इलाज नहीं कर सकता।

47) दया भाव ह्रदय नहीं, ज्ञान थके बेहद |
ते नर नरक ही जायेंगे, सुनी सुनी साखी शब्द ||
अर्थ : कुछ लोगों में न दया होती है और न हमदर्दी, मगर वे दूसरों को उपदेश देने में माहिर होते हैं। ऐसे व्यक्ति, और उनका निरर्थक ज्ञान नर्क को प्राप्त होता है।

Dukh Main Sumran Sab Kare Kabir Das Ke Dohe Arth Sahit in Hindi
Dukh Main Sumran Sab Kare Kabir Das Ke Dohe Arth Sahit in Hindi

48) दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय ॥
अर्थ : दुःख में परमात्मा को सभी याद करते हैं, परन्तु सुख में कोई नहीं। यदि सुख में भी परमात्मा को याद रखते, तो दुःख होता ही नहीं।

49) गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
अर्थ: यदि गुरु और ईश्वर, दोनों साथ में खड़े हों, तो किसे पहले प्रणाम करना चाहिए? कबीर कहते हैं, गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर है, क्योंकि गुरु की शिक्षा के कारण ही भगवान् के दर्शन होते हैं।

50) ज्ञानी मूल गँवाईया, आप भये करता ।
ताते संसारी भला, जो सदा रहे डरता ॥
अर्थ : जो विद्वान अहंकार में पड़कर खुद को ही सर्वोच्च मानता है, वह कहीं का नहीं रहता। उससे तो वह संसारी आदमी बेहतर है, जिसके मन में भगवान् का दर तो है।

⇐ पढ़ें कबीर दास के दोहे अर्थ सहित हिंदी में 31 से 40 तक।

पढ़ें कबीर दास के दोहे अर्थ सहित हिंदी में 51 से 70 तक। ⇒



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