आज की समस्याएं और टेंशन इन्सान का टशन ही है। आज व्यक्ति अपने में बदलाव लाने से डरता है, इसका परिणाम की वह हमेशा समस्यायों में ही उलझ रहता है। जब भी कही एक साथ सब बातें करने बैठेंगे सबकी अपनी अपनी समस्याएं सामने आने लगती है, कोई अपने घर से परेशान, कोई ऑफिस से, कोई बिज़नस में हानि से, कोई अपने बच्चो से तो कोई अपनी लाइफ से थके हुए नजर आते है। जीना सब चाहते है, पर अपनी लाइफ स्टाइल समय के साथ बदलना नहीं चाहते और परिणाम असंतुस्ट जीवन।
व्यक्ति पढ़ लिख गया, आद्यात्मिक शिक्षा भी ली है थोड़ी, धार्मिक ग्रन्थ भी पढ़े है, पर उनका Follow नहीं करना चाहते। क्यों की उनका अपना टशन है न! ” हम जैसे है वैसे ही है, कोई हमे अपनाये तो ठीक नहीं तो ठीक “ यह सोच आदमी को किसी का नहीं होने देती, खुद अपने आप का भी नहीं। सही है अपना एक एट्टिट्यूट (attitude) होना चाहिए, पर वह समय के साथ परिवर्तन शील होना चाहिए।
कहते है ना – “परिवर्तन ही संसार का नियम है”, “बदलाव ही प्रगति है”
हम आगे सब बढ़ना चाहते है अपने आप को बदले बिना, जो कभी संभव नहीं है। एक बच्चे का बचपना युवा होने तक रहे तो लोग उसे मानसिक बीमार बोलते है, इसी तरह व्यक्ति की समस्यायें भी मानसिक बीमारी ही है, व्यक्ति ने उम्र के साथ जिम्मेदारियां तो बढ़ा ली लेकिन उन्हें निभाने के लिए खुद में बदलाव को स्वीकार नहीं किया, इसलिए वह परेशान है। कोई भी पूछे तो कहेगा – “क्या करे यार टेंशन ही बहुत है, क्या करे समझ नहीं आता” और वह सामने वाला सलाह देगा तो आदमी जो आलसी है और खुद को बदलने से डरता है कहेगा – “तुझे क्या पता यार तू मेरी जगह आएगा तो पता चलेगा”
अब हर आदमी की अपनी अपनी स्थति है अपनी समस्या है, अगर हम एक दूसरे को अच्छी सलाह दे रहे है तो उसे मानने में कौनसा कोई छोटा बड़ा हो जायेगा। पर वह आदमी कि अकड़ कहो या जिद्दी या टशन, उसे बदलना अच्छा नहीं लगता और दिन भर टेंशन में रहना उनकी आदत बन गयी है।
अब कहिये ऐसे व्यक्ति कभी अपनी समस्या का समाधान पा सकते है क्या?
नहीं, कभी नही!
जो व्यक्ति कहते है की “तुम मेरी जगह होते तो पता चलता” , उन लोगो को एक बार सोचना चाहिए कि जब बीमार होते है तो डॉक्टर के पास जाते है, वह मरीज नहीं है तो वह आपका इलाज कैसे कर पाता है? उसे आपका दर्द कैसे पता चलता है?
व्यक्ति कहता है उन्होंने पढ़ाई कि है, किताबो में सब लिखा है, इसलिए डॉक्टर सब जानता है, ठीक वैसे ही हम भी सब जानते है – किताबो से, दूसरे लोगो कि लाइफ को देख के समझते है लेकिन उन अच्छी बातों को अपने जीवन में उतारने से डरते है, या जानबूझ कर खुद को बदलना नहीं चाहते।
अगर डॉ. ने जो कहा वैसा हम नहीं करें तो कभी ठीक नहीं हो सकते, डॉ. बोलता है उस के हिसाब से दवा नहीं ले तो बीमारी नहीं निकलती, और जैसा कहे वैसा कर के देखे तो बीमारी छू।
वही स्थति हमारी मानसिक समस्यायों के साथ है, उनका समाधान अपनों से मिल कर, अपने किसी निकटतम मित्र से बात करके, बुक्स पढ़के और उनकी बताई सलाह को कुछ दिन फॉलो करके देख सकते है, अगर हमे पॉजिटिव हल निकल जाता है तो अच्छा है नहीं तो खुद को टेंशन में रखने के बजाय वक़्त के अनुसार खुद को बदलते चलो।
ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान नहीं हो, “खुद बदलो जग बदलेगा ”
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