ज़िंदा था जब मैं, तो किसी ने हाल न पूछा
गम लिए रात भर, जगता रहा मैं
क्या है ये मलाल न पूछा
आँख भर आंसू लिए , हँसता रहा मैं
कोन सा लगा है ये इलज़ाम न पूछा
दोस्तों की महफ़िल साजता था मैं भी
गमो को भुलाके, गाता था मैं भी
आज जो यूँ तनहा हुआ हूँ, मैं लोगो
किसी ने भी आकर, एक सवाल न पूछा
तोहफों का शौक था मुझको
तोहफे मुझे आज दिए जा रहे हो
ये मुझ पर सफ़ेद रंग की चादर ओढे जा रहे हो
अब भी तो, अपनी तुम अपनी ही पसंद किये जा रहे हो
जिन्दा था जब मैं पसंद हैं रंग लाल न पूछा
समझ गया हूँ मैं अब दुनियादारी
जाने के बाद, हर मानस भला है
ज़िंदा था जब मैं
कैसे हो तुम, इंसान न पूछा
मेरे जाने के बाद, मेरे लिए महफ़िल सजा कर
मुझे ही याद किये जा रहे हो
क्यों चले गए तुम, ज़ोर से बस यही कहे जा रहे हो
मुझे देख कर अब हंसी आ रही है
ज़िंदा था जब मैं
एक फूल ले आते,
कभी तो मेरे लिए, सिर्फ तुम आते
पर तुमने कैसा हूँ मैं
ये कभी सवाल न पूछा
लेखिका:- रेणुका कपूर, दिल्ली
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