रोग का परिचय:- खाना खाने से पूर्व तथा खाना खाते ही विरक्ति भाव का उत्पन्न हो जाना ही अरूचि के नाम से जाना जाता है। यह कोई कठिन या जटिल रोग नहीं है। उचित चिकित्सा में रोगी को इससे शीघ्र ही छुटकारा प्राप्त हो जाता है।
अरूचि का घरेलू उपचार:- अजीर्ण / बदहाजमी के अंतर्गत लिखे योगों का उपयोग करें।
• तिक्त (कडुआ) रस वाले पदार्थ जैसे करेला अरूचिकार होते हुए भी अरूचि को नष्ट कर देते है। करेला अग्नि को दीप्त करने वाला तथा भोजन को पचाने वाला (पाचक) और अरूचि नाशक है। अत: इसकी तरकारी मन्दाग्नि पर तैयार करवायें और अधिक मिर्च मसाला और तेल न डलवायें तथा तलते समय वह अधिक जलकर कोयला न बन जाये। करेले की तरकारी को भोजन के साथ खाते रहने से अरूचि मंदाग्नि, अफरा, कब्ज इत्यादि उदर (पेट) विकार दूर हो जाते हैं।
• धनिया 60 ग्राम, काली मिर्च 250 ग्राम, नमक 25 ग्राम को मिलाकर सूक्ष्म चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। भोजनोपरान्त इसे 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से जठराग्नि तेज होती है। जिसका पाचन ठीक न होता हो, मैदे में आहार कम ठहरता हो, जल्दी ही शोच-क्रिया द्वारा निकल जाता हो। ऐसे रोगी को यह अमृत तुल्य योग है।
• भोजनोपरान्त 1 ग्राम काला नमक के चूर्ण को जल से सेवन करने से अपच नही होता है।
• अग्निवृद्धि हेतु अर्थात् अग्निमांद्य में प्याज को सिरके के साथ खायें।
• सौंफ 2 तोला को 1 सेर पानी में औटायें जब पानी चौथाई रह जाये तो उसे छान लें उसमें सेंधा नमक और काला नमक 2 ग्राम मिलाकर कुछ दिनों के सेवन करने से अफारा नष्ट हो जाता है।
• सौंफ 9 ग्राम, सौंठ 3 ग्राम, मिश्री 1 तोला, सभी को बारीक पीसकर 6-6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से बदहाज्मी शान्त हो जाती है।
• प्याज को कच्चा सलाद के रूप में खाने से अजीर्ण, अग्निमाद्य व पेट के कृमि दोष इत्यादि दूर हो जाते हैं।
• साफ की हुई अजवायन को 3 दिनों तक छाछ या मट्ठा में भिगोकर छाया में सुखा लें, फिर अजवायन के बराबर घी में सेकी हुई हरड़ एवं काला नमक डालकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से डकारें आना (वातिक अर्श- रक्तस्त्राव युक्त न हो), पेट फलना, पेशाब कम आना तथा टट्टी की कब्जियत में अत्यन्त लाभ होता है।
• नित्यप्रति प्रात: काल 6 ग्राम धनियां को उबालकर थोड़ी शक्कर व दूध मिलाकर चाय की भॉंति एक कप में छानकर पीने से जठराग्नि प्रदीप्त होकर पाचनशक्ति बढ़ ाती है तथा आमदोष का पाचन होकर शरीर में हल्कापन व स्फूर्ति आ जाती है।
• जीरा 100 ग्राम लेकर भली प्रकार कूड़ा-करकट साफ कर स्वच्छ कर लें। फिर इसमें 50 मि.ली. नीबू का रस, 3 ग्राम नमक चूर्ण तथा 6 ग्राम काली मिर्च मिलाकर डाल दें और कॉंच के बर्तन में ढककर धूप में रख दें। चौबीस घण्टे धूप में रखने के बाद एक चौड़े बर्तन में निकालकर छाया में शुष्क होने के लिए रख दें। शुष्क हो जाने पर सुरक्षित रूप से रख लें। यह औषधि अरूचि नाशक, भूख बढ़ाने वाली स्वादिष्ट तथा मन प्रसादक है। खाना खाने के बाद 1-2 ग्राम की मात्रा में लेकर मुख में रखकर धीरे-धीरे चबायें। आवश्यकता के समय मेहमानों को स्वागत रूवरूप प्लेट में रखी जा सकती है।
• जीरा 20 ग्राम लेकर 250 मि.ली. गोदुग्ध में भिगो दें। फिर 2 घंटे के बाद मंदाग्नि पर खीर की भांति गाढ़ा होने तक पकायें, इसमें 20 ग्राम मिश्री पीसकर मिला दें। यह एक मात्रा है। इसे शीतल होने पर प्रात: काल खिलायें किन्तु इसके सेवन के पश्चात् 1 घंटा तक जल पीने को निषेध कर दें। इसके प्रयोग से भूख बढ़ती है, प्रदर नाशक है। प्रदर एवं तज्जन्य हस्त, पाद नेत्रों की एवं वस्तिगत जलन नष्ट हो जाती है।
• अन्तर्जिहृा निकाले हुए लहसुन 1 तोला, जीरा 1 माशा, अदरक 1 माशा, काली मिर्च 1 माशा की चटनी नित्य प्रति भोजन के साथ प्रयोग करने से मंदाग्नि अम्लपित्त, आध्मान, कृमि, यकृत विकार, आन्त्र विकार इत्यादि नष्ट हो जाते हैं।
• पोदीना के रस में शक्कर मिलाकर पिलाने से तृषा, दाह, अजीर्ण, यकृत-विकार तथा कामला रोग नष्ट हो जाता है।
• गाय की बछिया का ताजा मूत्र ढाई तोला से 4 तोला तक नित्य प्रति खाली पेट पीने से जलोदर, उदरशूल, कामला, पाण्डु, यकृत वृद्धि, प्लीहा वृद्धि, अण्डवृद्धि, खाज, खुजली, कब्जियत, मंदाग्नि, अम्लपित्त इत्यादि नष्ट हो जाता है। बच्चों को इसकी मात्रा 1 से 2 तोला तक दें।
• नीबू का रस 20 तोला में 100 तोला शक्कर मिलाकर एक कॉंच के बर्तन (पात्र) में भरकर 15 दिनों तक धूप में रखें। जब नीबू रस व शक्कर घुल मिलकर एकजान हो जायें, तब उसे सुरक्षित रूप से रख लें। इसे 1 तोला की मात्रा में भोजन के साथ लें। इसके प्रयोग से मंदाग्नि, अरुचि, अजीर्ण कभी नहीं होता है।
• नौसादर (खानेवाला) 5 तोला, काला नमक 2 तोला, सफेद जीरा भुना हुआ 1 तोला, भुनी हुई हींग आधा तोला को कूट पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखें। इसे 3-3 माशा की मात्रा में जल के साथ प्रयोग करने से उदरशूल, अफारा व अपची में शीघ्र लाभ होता है।
• 100 पके कागजी नीबू लेकर उनके 4-4 टुकड़े करें। (ध्यान रखें कि टुकड़े बिल्कुल ही अलग-अलग न होकर नीबू में ही लगे रहना चाहिए।) फिर उनको स्टील के बर्तन में पकायें, आग धीमी रखें। जब सभी नीबू उबलकर कुछ-कुछ गल जायें तब उसमें निम्न मसाला भरकर कॉंच के पात्र में मुँह बन्द करके सुरक्षित रख लें। अजवायन 250 ग्राम, काला नमक, सेंधा नमक, जीरा 50-50 ग्राम, सौंठ 10 ग्राम, काली मिर्च 25 ग्राम, शक्कर 1500 ग्राम डालकर रख दें। फिर 15 दिनों के बाद प्रयोग करें। वैसे, यह नीबू का मीठा अचार जितना अधिक पुराना होगा, उतना ही अधिक प्रभावी होगा किन्तु बर्तन को प्रतिदिन हिलाते रहना चाहिए। इसके प्रयोग से कब्ज दूर होकर पेट साफ रहता है, वमन दूर होती है। यह दीपन व पाचक तथा अत्यन्त ही स्वादिष्ट है।
• सौंफ, भुना जीरा, सौंठ 10-10 ग्राम, भुना धनियां, मिश्री 20-20 ग्राम, नीबू का सत (टाटरी) 5 ग्राम, पिपरमेन्ट 2 ग्राम, सैंधा नमक 15 ग्राम- सभी औषधियों को कूट पीसकर चूर्ण बनायें, अन्त में टाटरी और पिपरमेन्ट मिलाकर घोट लें। यह चूर्ण अग्निवर्धक, अग्निदीपक, पाचक एवं स्वादिष्ट है।
• हरा पोदीना 15 पत्ते, तुलसी की हरी पत्तियां 15 को 400 ग्राम जल में डालकर आग पर उबाल लें। आधा जल रह जाने पर छान कर ठण्डा करके शीशी में भरकर रख लें। अपनी रुचि के अनुसार इसमें नमक मिला लें। इसे 30 मि.ली. की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से अरूचि, बदहज्मी, मितली पेट का भारीपन नष्ट होता है।
• धनिये का चूर्ण 3 माशा तथा इतना ही सौंठ का चूर्ण को 2 छटांक गरम पानी के साथ सेवन कराने से अजीर्ण में लाभ होता है।
• गरम पानी के साथ सौंठ का चूर्ण प्रयोग करने से अरूचि दूर होती है। भूख खुलकर लगने लगती है तथा भोजन पचने भी लगता है।
• सौंठ 5 रत्ती, अजवायन 3 रत्ती, छोटी इलायची 15 रत्ती लें। सभी को मिलाकर भोजनोपरान्त सेवन करने से अफारा, अजीर्ण अरुचि में लाभ होता है।
• लाल प्याज के रस को थोड़ा सा गरम करें। फिर थोड़ा सा नमक डालकर व नीबू निचोड़कर भोजन के साथ (सॉंस) चटनी की भॉंति प्रयोग करने से अजीर्ण, कब्ज इत्यादि नष्ट होते हैं।
• लहसुन की छिली कलियों को पीसकर और उसमें कागजी नीबू का रस और थोड़ा-सा नमक मिलाकर खाने से अजीर्ण व अरुचि नश्ट होती है।
नोट- स्वास्थ्य रक्षा हेतु निम्न लिखित संयोग विरूद्ध खान-पान पर विशेष ध्यान दें। (इन्हें साथ-साथ अथवा शीघ्र ही आगे-पीछे न खायें।)
संयोग विरूद्ध पदार्थ:- दूध और बेलफल, दूध और तुरई, दूध और टेंटी, दूध और नीबू, छाछ और केला, दूध और तेल, दूध और मांस, दूध और सूखा साग, दूध और मूली, दूध और मछली, दूध और बड़हल, दूध और नमक, दही और बड़हल, चावल और नारियल, दूध और जामुन, शहद और गरम पदार्थ, शहद और बड़हल, शहद और मूली, शराब और खीर, मछली और गुड़, बड़हल और केला, शहद और मछली, शहद और गरम जल, शहद और बरसात का जल तथा सम मात्रा में शहद और घी इत्यादि।
• सोंठ 3 ग्राम, काली मिर्च 15 ग्राम, सूखा पोदीना 15 ग्राम, अनारदाना 15 ग्राम, काला जीरा, सफेद जीरा, पिप्पली, छोटी इलायची के दाने, चित्रक, सभी 5-5 ग्राम तथा कमल गठ्टे की मींगी 10 ग्राम, अमचूर 5 ग्राम, सैंधा नमक 40 ग्राम, नीबू सत 8 ग्राम, पिपरमेन्ट 2 ग्राम, मिश्री 150 ग्राम लें। सभी औषधियों को अलग-अलग कूट पीसकर छानकर मिलाकर सुरक्षित रख लें। इसे 3 से 5 ग्राम की मात्रा में भोजन के पश्चात् प्रयोग कर लें। अत्यन्त स्वादिष्ट, मृदु चूर्ण है। इसके व्यवहार करने वाले का रोम-रोम पुलकित हो जायेगा। इसके सेवन से अरूचि (भूख न लगना) मन्दाग्नि, अजीर्ण, अफारा, अम्ल पित्त, व हाजमें की कमजोरी, खाना हजम न होना इत्यादि में अचूक लाभ प्राप्त होगा।
• देसी अजवायन 3 तोला तथा सौंठ डेढ़ माशा को रात्रि में सोते समय 3 पाव पानी में भिगो दें। प्रात: काल भली-भॉंति मथकर थोड़ा गरम कर लें। चुटकी भर नमक मिलाकर पिलाने से पाचनशक्ति की झीणता दूर हो जाती है।
• देसी अजवायन 1 किलो को (साफ करके) 4 किलो पानी में 12 घंटे के लिए भिगो दें। तत्पश्चात् भभके द्वारा अर्क खींच लें। मात्रा 1-1 छटांक दिन में 2 बार। इसके सेवन से जिगर-तिल्ली से संबंधित समस्त प्रकार के रोगों का कुछ ही दिनों में सफाया हो जाता है। आमाशय शक्तिशाली हो जाता है। इसके निरन्तर प्रयोग से रोगी बल्ष्ठि होकर मोटा-ताजा हो जाता है।
नोट- दूध पीने वाले बच्चों को अजीर्ण या अरुचि इत्यादि हो जाये तो सर्वप्रथम उसका पेट साफ करें। इस हेतु कैस्टर आयल का प्रयोग करें। यदि बच्चा कमजोर हो तो उसे रिफाइन्ड केस्टर आयल दें।
बच्चों के दूध में चीनी की मात्रा कम करें। यदि बच्चों को बगैर चीनी के दूध पीने की आदत डाली जाये तो सर्वोत्तम है। चीनी अजीर्ण में ठीक नहीं होती है। यदि बच्चे को दूध न पच रहा हो तो लाइम वाटर (चूने का पानी) मिलाकर पिलायें। बच्चों को अजीर्ण, अपच या मंदाग्नि इत्यादि हो तो- हींग, सोंठ, बड़ी, इलायची, भारंगी, नमक, अरन्ड की जड़ सभी औषधियॉं सम मात्रा में लेकर गरम जल में पीसकर दें। जौ के पानी में नीबू का रस और नमक डालकर देना भी लाभप्रद है। दलिया में नीबू और नमक मिलाकर देना भी अजीर्ण को नष्ट करता है। बड़ी हरड़, काला नमक और हींग (1-1 रत्ती) बारीक पीसकर गुनगुने जल से सेवन कराने से बच्चों के अजीर्ण का समूल नाश हो जाता है।
पेटेन्ट आयुर्वेदिक योग:-
गैसेक्स (हिमालय), लिव 52 (हिमालय), सुक्तिन (एलारसिन), ओजस (चरक), झन्डू झाइम (झन्डू), गैसान्तक वटी (गर्ग), अग्निबल्लभ क्षार (धन्वन्तरि कार्यालय), गैस क्लीन कैप. (अतुल फार्मा.), क्षुधाकारी वटी (वैद्यनाथ), विमलिव कैप. (धूत पापेश्वर), गैसान्तक कैप. (गर्ग), गैसोना कैप. (श्री ज्वाला), गैसलोन लिक्विड (गर्ग), लिव 52 सीरप व ड्राप्स (हिमालय), द्राक्षोविन पेय (धूत पापेश्वर), लिवरोल सीरप (वैद्यनाथ), अंगूरासव (झन्डू), रक्तोफास्फो माल्ट सीरप (झन्डू), टेफरौली टेबलेट (टी. टी. के.), इत्यादि का औषधि के साथ प्राप्त पत्रक के निर्देशानुसार आयु व बल का ध्यान रखते हुए मात्रा का निर्धारण कर व्यवहार करायें। कायम चूर्ण (सेठ ब्रादर्स भावनगर) (गुजरात) इसके सेवन से कब्ज और इससे उत्पन्न हुई तकलीफें जैसे एसिडिटी, सिर-दर्द, मुँह में छाले, शरीर में चुस्ती इत्यादि नष्ट हो जाती है। यह चूर्ण शरीर को शीतलता प्रदान कर मन को प्रफुल्लित रखता है तथा शरीर को बल प्रदान करता है। रात्रि को सोते समय सेवन करें।
स्रोत:-
डॉ. ओमप्रकाश सक्सैना ‘निडर’
(M.A., G.A.M.S.) युवा वैद्य आयुवैंदाचार्य जी की पुस्तक से!
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