बदहाजमी ( Indigestion / Dyspepsia ) के लिये शक्तिवर्धक चूर्ण:-
• अजवायन, इलायची, काली मिर्च, सौठ सभी को समान मात्रा में लेकर पीसकर सुरक्षित रख लें। आधा चम्मच सुबह-शाम दो बार पानी से सेवन करायें। यह चूर्ण दुर्बलता नाशक है। टॉनिक के तौर पर इस्तेमाल करायें।
• छोटी इलायची के बीच, सौठ, लोंग तथा जीरा सभी को सममात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। इसे 2 ग्राम की मात्रा में भोजनोपरान्त सेवन करने से भोजन शीघ्र पच जाता है।
• दो ग्राम पिसी कालीमिर्च फाँककर ऊपर से नीबू का रस मिश्रित गरम जल से शाम तथा रात्रि के समय पियें। केवल 10-12 दिनों तक लगातार पीने से पेट में गैस बनना बंद हो जाता है।
• दालचीनी आधा ग्राम तथा इतनी ही मात्रा में सौंठ व बड़ी इलायची (कुल डेढ़ ग्राम) को पीसकर भोजन से पूर्व सेवन करने से भूख बढ़ती है, मंदाग्नि नष्ट होती है तथा कब्ज मिटती है।
• धनिया 50 ग्राम, काली मिर्च तथा नमक 20-20 ग्राम को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। खाना खाने के बाद में 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करायें। इसके प्रयोग से जिस रोगी के आमाशय में आहार बहुत कम ठहरता है अर्थात् शीघ्र ही मल के रास्ते निकल जाता है। उसके लिए अल्प मूल्य में अमृत समान योग है।
• पेट में किसी भी तरह की गड़बड़ी हो, जैसे- अपचन, अग्निमांद्य, पेटदर्द, अथवा अफरा (पेट फूलना) आदि में प्याज का रस अदरक का व लहसुन का रस प्रत्येक 1-1 चम्मच लेकर तथा 3 चम्मच शहद मिलाकर भोजन से पूर्व सेवन करायें। सिरके के साथ प्याज पीसकर सेवन कराना भी लाभप्रद है। इसमें अदरक का रस तथा कुछ काला नमक डाल लिया जाये तो अधिक लाभप्रद योग बन जाता है।
विशेष नोट- यदि किसी रोगी के आमाशय में भोजन सड़ जाये और उसको निकालने की आवश्यकता हो तो 12-13 ग्राम नमक 1 गिलास गुनगुने पानी में मिलाकर पिलाने से कै (वमन/उल्टी) आ जाती है तथा मैदे का खराब भोजन बाहर निकल जाता है। यदि किसी विष का किसी रोगी ने सेवन किया हो या नशा किया हो तो 60 ग्राम नमक पानी में घोलकर पिलायें, इससे उल्टियां होकर विषैला अथवा नशीला पदार्थ बाहर निकल जायेगा।
• यदि किसी रोगी की छाती में जलन (गर्मी का असर) हो तो नमकीन शिकंजबीन पिलाये। यदि अजीर्ण से जलन हो तो 10 ग्राम नमक ताजा पानी में घोलकर ( डेढ़ दो गिलास पानी में ) पिला दें।, ताकि वमन होकर छाती अच्छी हो जाये। पुदीना घोंटकर नमक मिलाकर उसमें नीबू की 5 बूँदें निचोड़कर चटाना भी लाभकारी है।
• यकृत की गड़बड़ी और ऑंखों के सामने चकाचोंध जान पड़ने पर गरम पानी में नीबू मिलाकर पिलाना चाहिए।
• एक चुटकी पिसी हुई राई सब्जी में डालकर बनाकर खाने से खाना भली प्रकार हज्म हो जाता है तथा भूख खुलकर लगने लगती है। अर्थात मन्दाग्नि, अरूचि नष्ट हो जाती है।
• आमाशय को शक्तिशाली बनाने तथा मुँह के छालों से छुटकारा पाने हेतु केवल सौंफ के चूर्ण का प्रतिदिन सुबह शाम अथवा भोजनोपरान्त 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। इसके प्रयोग से नेत्रों (ऑंखों) की ज्योति भी बढ़ जाती है।
अमाशय में हवा जमा होकर पेट फूलने लगे तब यह लौंग का अर्क प्रयोग करें:- लौंग का चूर्ण डेढ़ ग्राम खौलते आधा लीटर पानी में जब पूरी तरह से भीग जाये तब छानकर प्रयोग में लें। नित्य प्रति इसे दिन में 3 बार 25-25 ग्राम की मात्रा में प्रयोग करायें।
अजीर्णनशक प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदीय योग:-
डायजेस्टीन टेबलेट (मार्तन्ड), मंदाग्नि टेबलेट (झन्डू), झन्डूजाइम टेबलेट (झन्डू), मंदाग्नि टेबलेट (झन्डू), शुक्तिन टेबलेट (अलारसिन), गारलिक पिल्स (चरक), ओजस टेबलेट (चरक), सर्टिना टेबलेट (चरक), पाजक वटी (बैद्यनाथ), हाजमोला (डाबर), अग्नि बललभ क्षार चूर्ण (धन्वन्तरि), गैसनोल (गर्ग), अग्निदीपक चूर्ण (भजनाश्रम), डाइजेस्टीन टेबलेट (राजवैद्य शीतल प्रसाद), गैसेक्स (हिमालय), आदि में से किसी का भी प्रयोग औषधि के साथ प्रापत पत्रक तथा आयु के अनुसार मात्रा का निर्धारण कर सेवन करें। शंखवटी (धन्वन्तरि फार्मेसी), अग्निमुख चूर्ण (धन्वन्तरि फार्मेसी) (बच्चों शिशुओं के लिए) यकृत भोजन पेय खट्टा व मीठा (धन्वन्तरि फार्मेसी) इत्यादि का सेवन अजीर्ण, उदरशूल, इत्यादि समस्त उदर रोगों में सेवन भी अति लाभकारी है।
स्रोत:-
डॉ. ओमप्रकाश सक्सैना ‘निडर’
(M.A., G.A.M.S.) युवा वैद्य आयुवैंदाचार्य जी की पुस्तक से।
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