बिवाई / एड़ियों का फटना Cracked Heel (Chilblains) आयुर्वेदिक उपचार

Cracked Heels Biwai Fatna Ayurvedic Remedies in Hindi
Cracked Heels Biwai Fatna Ayurvedic Remedies in Hindi

दोस्‍तों, आप नीचे दिये गये आयुर्वेदिक उपचारों से अपने पैरों की एडि़यों के फटना (Cracked Heel), बिवाई फटने (Chilblains) का उपचार कर सकते है। यह आयुर्वेदिक उपचार एक बहुत पुरानी पुस्‍तक से लिये गये है, परंतु सब इंसानों के शरीर की बनावट भिन्‍न-भिन्‍न होती। आयुर्वेदिक उपचार के वैसे तो कोई दुष्‍प्रभाव नहीं होते है परंतु अगर अपको कोई परेशानी होती है तो आप उपचार को वही रोक सकते है।

रोग परिचय:– इस रोग को अंग्रेजी में हैन्‍डस या चैप्‍स ऑफ एक्‍सट्रेमिटीज आदि नामों से भी जाना जाता है। शीत ऋतु में सख्‍त सर्दी के कारण प्राय: हाथ-पाँव की चर्म फट जाती है और उसमें तीव्र दर्द होती है। कई बार तो चर्म इतनी अधिक फट जाती है कि बड़े-बड़े और गहरे चीरे पड़ जाते हैं। अत्‍यधिक शीत, सर्दी और बर्फ के प्रभाव से शरीर की त्‍वचागत रक्त-वाहिनियों में संकोच उत्पन्न हो जाता है जिसके फलस्‍वरूप रक्त की भीषण कमी हो जाती है और त्‍वचा सुन्न हो जाती है। इसका विशेष प्रभाव नाक तथा अँगुलियों पर पड़ता है। शीत (सर्दी) या बर्फ में अधिक देर रहने से अंगुलियां संज्ञाहीन हो जाती हैं। कभी ठण्‍डे और कभी गरम पानी से हाथ-पांव धोना, सर्दी में हाथ-पैर धोकर खुश्‍क न करना, ठण्‍डी वायु लगना इत्‍यादि इस रोग के कारण होते हैं।

बिवाई फटने का आयुर्वेदिक उपचार:- इसकी र्सोत्तम चिकित्‍सा ठण्‍ड से बचना है। पीडि़त स्‍थान पर सूखी (बगैर तैल आदि लगाये) मालिश करना लाभप्रद है। सूर्य स्‍नान भी लाभप्रद है। कृत्रिम अल्‍ट्रावायलेट किरणों का अधिक देर उपयोग करने से रक्त-वाहिनियों की क्रिया में विकृति होकर (अन्‍य कोई नया रोग उत्‍पन्न हो सकता है।

• मोम का रोगन लगाना, मक्खन की मालिश करना या सन्‍दरूस पीसकर अलसी के तैल में मिलाकर लगाना अथवा सफेद काश्‍गरी और मुर्दासंग 6 ग्राम को पीसकर 48 ग्राम वैसलीन में मिलाकर लगाना लाभप्रद है।

• विशुद्ध अरन्‍ड तेल में अरन्‍ड की गिरी को डालकर खरल में खूब घोटकर गाढ़ा-गाढ़ा लेप जैसा बनाकर छुरी से एक जैसा बिवाई की फटी दरारों में भरें। पूरा लाभ न होने तक प्रयोग जारी रखें। लाभप्रद है।

• राल, कत्था, काली मिर्च प्रत्‍येक 40 ग्राम लें। गाय का घी और चमेली का तेल (प्रत्‍येक 40 मि.ली.) लें। उन सभी को लोहे के खरल में घोटें गाढ़ा-गाढ़ा लेप सा बनाकर फटी दरारों में प्रयोग करें। लाभप्रद योग है।

• मक्‍खन 50 ग्राम, अरन्‍ड के बीच 40 ग्राम, पोस्‍त दाना 25 ग्राम तथा नीम के पत्तों का कपड़छन चूर्ण 10 ग्राम सभी को खरल में एकत्र कर घोटकर सभी को एकजान कर लें। तदुपरान्‍त किसी साफ स्‍वच्‍छ विसंक्रमित छुरी आदि की नोक से फटी दरारों में भरें। प्रयोग सुबह-शाम करें, अत्‍यधिक लाभप्रद योग है। दर्दनाशक भी है।

• मेंहदी के ताजे पत्ते, नीम के ताजे पत्ते, काकहिया के ताजे पत्ते, पत्‍थरचूर के ताजे पत्ते प्रत्‍येक समभाग लेकर पीसलें। फिर कल्क बनाकर अरन्‍ड के तैल में मिलाकर छुरी की नोंक से बिबाई की फटी तरारों में भरें। लाभदायक योग है।

• राल और घी 10-10 ग्राम, मोम 3 ग्राम लें। पहले घी को खूब गरम करें, फिर मोम मिला लें। जब दोनों मिल जायें तभी राल भी मिलालें। इस मरहम को रात को सोते समय पैरों को धोकर बिवाइयों में भरें। बिवाइयाँ (Chilblains) ठीक होकर पैर अत्‍यन्‍त सुन्‍दर हो जाते हैं।

• मोम 6 ग्राम की मात्रा में लेकर 40 ग्राम तिल के तैल में पकालें। इसमें 10 ग्राम पिसी हुई राल डालकर पुन: थोड़ी देर पकाकर उतारकर सुरक्षित रखलें। इस मरहम को बिवाइयों में लगायें। अत्‍यन्‍त ही लाभप्रद है।


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