हेलो दोस्तों,
मैं आज एक खास विषय में चर्चा कर रही हूँ, जो की आजकल न्यूज़ चेंनल में छाया हुआ है, जी हाँ मैं डेप्रेशन के बारे में बात कर रही हूँ, क्या है डेप्रेशन ?
डेप्रेशन का नाम सुनते ही लोगो के मन में एक ही ख्याल आता है की ये एक दिमागी बीमारी है और ये तो पागल है, ये साइकेट्रिस्ट के पास जाता है। अरे क्या ये पागल होता जा रहा है? यही सोच हैं फिर चाहे वह लोग पड़े-लिखे हो या अनपढ़ सोच यही हैं, लोगो की पर हमे ये सोच बदलनी होगी।
मेरा ये मानना है की डेप्रेशन सिर्फ एक आम बात है जैसे हमे पेट ख़राब होने, चोट लगने, बुखार इत्यादि होने पर डॉक्टर की आवयश्कता होती है उसी तरह बस डेप्रेशन होने पर हमारे दिमाग में थोड़ा सा प्रेशर फील होता है और उस व्यक्ति को डॉक्टर की जरुरत होती हैं बिलकुल उसी तरह जैसे किसी आम बीमारी होने पर होती है पर फिर भी लोग डेप्रेशन को पागलपन मान लेते हैं जबकि ये तो बड़ी बिमारियों जैसे कैंसर, एड्स से तो बहोत छोटी है इसमें व्यक्ति को मेडिसिन की नहीं, प्यार और साथ की जरुरत होती है उसे ये साथ उसके परिवार, दोस्तों, पड़ोसियों यहाँ तक की उसके पालतू जानवर जिसे वह अपने घर का मेमबर की तरह मानता हो वह भी उससे इस प्रॉब्लम से ठीक कर सकते है और जब ये सब उस व्यक्ति के पास होकर भी उससे दूर होते हैं तो उससे डॉक्टर की जरुरत होती हैं और ये डॉक्टर साइकेट्रिस्ट होता हैं ये कुछ नहीं करते बस उस व्यक्ति की बातों को ध्यान से सुनते हैं और निष्कर्ष निकालते है की व्यक्ति ज्यादा क्या फील कर रहा है, बस और अपनी दिल की बातों को कह कर वह व्यक्ति बिलकुल नार्मल हो जाता है बस यही इतना सा ही इलाज हैं इस प्रॉब्लम का और लोग शर्म के कारण ये बात लोगो से छुपाते है की वह किसी साइकेट्रिस्ट से मिल रहे है, एक डर होता कही ये मुझे पागल न समझ ले, पर अब हमे अपनी सोच बदलनी होगी।
और ये स्वीकार करने में क्यों शर्म और कैसी शर्म की हाँ मुझे डेप्रेशन हैं और मैं साइकेट्रिस्ट से इलाज करा रहा हूँ या रही हूँ जैसे कोई भी आम बीमारी का डॉक्टर से इलाज कराया जाता है उसी तरह तो इसमें कैसी शर्म और क्यों?
मुझे आज भी याद है और शायद मैं इस बारे में लिख भी इसलिए रही हूँ क्योकि मैं जानती हूँ की मेरे आस पास भी ऐसे ही लोग है जो की सच में एक साइकेट्रिस्ट से मिलने तक की बात को कहते हैं की ये बात सबके सामने मत बोलना और धीरे बोलो लोग क्या सोचेंगे!
जी हाँ घर पर कुछ मेहमान आये थे, सभी आपस में बाते कर रहे थे बच्चो के बारे में, मेरी एक बेटी है वह Kathak (कथक) सीखती है और अभी 5 साल की है तो मैंने उससे कहा की कथक करके दिखाओ पर उसने नहीं किया और वह शरारते करने लगी, इस पर मैंने उससे कहा बेटा अगर आप कथक करके दिखाओगे तो में आपको चॉक्लेट दूंगी और फिर उसने करके दिखा दिया, मैंने अपने मेहमानो के सामने सिर्फ इतना ही बोला की मेरी एक मित्र जो की चाइल्ड साइकेट्रिस्ट हैं उसने मुझे बताया की बच्चो डांटने की बजाये बस उन्हें प्यार से समझाओ और मैं इससे आगे कुछ कहती की मैंने देखा की वह मेरे कान में आकर बोली की साइकेट्रिस्ट ने बताया ऐसे ज़ोर से और बाहर और किसी के सामने नहीं बोलना लोग गलत समझते हैं उस समय तो मैं चुप रही और उनकी बात में हामी भर ली पर ये बात में बहोत समय तक सोचती रही की उन्होंने सिर्फ साइकेट्रिस्ट ही क्यों सुना वह तो मेरी बहोत अच्छी दोस्त है और बस हम कभी ऐसी ही बच्चो के बारे में कुछ बाते शेयर कर लेते हैं वह साइकेट्रिस्ट है इसलिए मेरी मित्र नहीं हैं वह मेरी मित्र है बस फिर इतना छुपाने वाली बात क्यों हैं ये मेरे अपने जब इस बात को की मेरी एक साइकेट्रिस्ट दोस्त है को कुछ अलग नज़र से देखते है तो फिर हम लोगो से तो क्या उम्मीद करेंगे।
इसलिए दोस्तों हमे दुसरो से उम्मीद क्यों रखे, क्यों न हम खुद से कुछ अच्छी और सकरात्मक उम्मीद रखे क्योकि जो हम खुद के लिए अच्छा कर सकते है वह कोई दूसरा नहीं इसलिए किन्ही दुसरो के कहने पर ये न सोचे की हम कुछ कम है नहीं हममें भी उतनी या उससे जायदा काबिलियत है, खुद को दुसरो के कहने पर नहीं आंके आप अनमोल हैं और आपका जीवन आपके अपनों के लिए बहोत खास है अपनी एहमियत को पहचाने “आप बहोत ख़ास है बहोत”
और हाँ मैं तो आज से इस बात को कहती हूँ की हाँ मुझे डेप्रेशन है और मैं साइकेट्रिस्ट से बात करती हूँ जैसे आप अपनी किसी बीमारी के लिए अपने डॉक्टर से बात करते है फिर आप चाहे ये समझे की वह मेरी दोस्त है इसलिए बात करती हूँ या ये की वह साइकेट्रिस्ट है इसलिए, आप की सोच पर निर्भर करता है
क्या आप सहमत है?
धन्यवाद!
लेखिका:- रेणुका कपूर, दिल्ली
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Best Motivational Article in Hindi on Depression by Renuka Kapoor, Delhi डेप्रेशन होना कोई पागलपन नहीं – लेखिका:- रेणुका कपूर, दिल्ली
Congratulations Renuka, aapne bahut achcha experience share kiya