दूसरों से क्यों उम्मीद करूँ मैं
खुद से ही क्यों न शुरुआत करू मैं
खुद का ही क्यों न सम्मान करू मैं
जो मुझे नहीं सही लगता
क्यों किसी के कहने पर
उसका गुणगान करू मैं

मेरी भी खुद की भाषा है
मेरी भी छोटी सी आशा है
क्यों तुम पर ही विश्वास करू मैं
मेरी भी खुद की एक
अभिलाषा है

आज़ाद गगन में उड़ना चाहती हूँ
अपने दिल की कुछ कहना चाहती हूँ
कुछ अपने मन की मैं करना चाहती हूँ
हरी घास में लेटकर, मैं तारों को गिनना चाहती हूँ
बारिश की बूंदो को में बिना फ़िक्र के छूना हूँ

अपने मन की ख्वाइशों को में,
एक बार अपने जीवन में
खुल कर जीना चाहती हूँ
मैं फिर से बचपन की शरारत कर
खुल कर हसना चाहती हूँ

Renuka Kapoor Delhi

लेखिका:- रेणुका कपूर, दिल्ली
kapoorrenuka2018@gmail.com

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1 Comment

  1. So nice renuka , lovely ,
    Your valuable thoughts no dabout
    Remarkable
    Thanks.
    Manoj, jhansi

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