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सिरदर्द स्वयं में कोई रोग नहीं होता है बल्कि यह किन्हीं दूसरे रोगों के कारण हुआ करता है।
• आमाशय और अंतडि़याँ कमजोर हो जाने, भोजन न पचने, आमाशय और अंतडि़याँ फूल जाने या पेट के तंन्त्रिका-तंत्र बोझ पड़ने से भोजनोपरान्त सिर भारी हो जाता है और सिर में दर्द होने लगता है। रोग के प्रारम्भ में यह कभी-कभार होता है किन्तु इसी (पाचन रोगों की) चिकित्सा न करने पर खाने के बाद प्रतिदिन ही सिरदर्द का कष्ट होने लग जाता है।
उपचार- इस प्रकार के उत्पन्न सिरदर्द का उचित उपचार पाचन अंगों को शक्तिशाली बनाना ही है। पीडि़त रोगी तले हुए भोज्य पदार्थ-पूरियाँ, परांठे, डबलरोटी तथा मैदे से बने भोज्य पदार्थों का सेवन तुरंत त्यागें। शीघ्र पचने वाले भोजन एवं फल इत्यादि ही खायें।
• हिंग्वष्टक चूर्ण या लवण भास्कर चूर्ण 2-3 ग्राम तथा प्रबास भस्म 60 मि.ग्रा., लौह भस्म 30 मि.ग्रा. ऐसी एक मात्रा प्रतिदिन खाते रहना लाभप्रद है।
नजला, जुकाम से उत्पन्न सिर दर्द:-
काफी समय तक नजला जुकाम के बने रहने से मस्तिष्क और तंत्रिका कमजोर हो जाने के कारण सिर-दर्द रहने लगता है। इस प्रकार के सिरदर्द में नाक की झिल्ल्ी में शोथ होकर नाक बहने लगती है, छीकें आती है, आँखे लाल हो जाती है सिर और माथे में दर्द होता है। रोगी सुस्त रहता है।
उपचार:- • रोग के प्रारम्भ में कूपर 250 मि.ग्रा. अफीम 62 मि.ग्रा. गरम चाय के साथ सेवन करना लाभप्रद है।
• कपूर को 4-5 गुने अल्कोहल में घोलकर 2-3 बूँद चीनी या बताशे में डालकर सेवन करना भी लाभप्रद है।
• गेहूँ की भूसी 12 ग्राम को आधा लीटर पानी में 15-20 मिनट तक उबाल, छानकर, मीठा डालकर पीना भी लाभप्रद है।
• फिटकरी 12 ग्राम को आक (मदार) के दूध में खरल करके ( महीन पीसना) सुखा लें। फिर उसे धतूरा के ताजे पत्तों के रस में खरल करके टिकिया बनाकर 2 किलो उपलों के मध्य में रखकर आग लगादें। ठण्डा हो जाने पर टिकिया को पीस व छानकर सुरक्षित रखलें। इसे 125 से 250 मि.ग्रा. तक दूध की मलाई में खाते रहने से पुराने से पुराना नजला और इससे उत्पन्न सिरदर्द नष्ट हो जाता है।
• महा लक्ष्मी विलास रस भी नजला, जुकाम, दिमागी और तंत्रिका की कमजोरी से उत्पन्न पुराने सिरदर्द की अत्यन्त ही सफल शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है। इसे 1-1 गोली मधु में मिलाकर सबह-शाम दिन में 2 बार सेवन करें।
पुराने उपदंश (Syphilis) के कारण सिरदर्द:-
इसके विषैले प्रभाव रक्त में चले जाने पर रोगी के रात्रि के समय तड़पा देने वाला दर्द होता है। यह दर्द इतना भयंकर होता है कि रोगी को लगता है कि जैसे हड्डी कुचली जा रही है।
उपचार:- व्याधिहरण रसायन 125 से 250 मि.ग्रा. तक खरल में सूक्ष्म पीसकर मुनक्का में रखकर सुबह-शाम दिन में 2 बार निगलना लाभप्रद है।
• स्वर्णक्षीरी की जड़ की छाल सुखाकर 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तथा नीम के पत्तों का कपड़छचूर्ण 500 से 100 मि.ग्रा. को एकत्र मिलाकर ताजे जल से सुबह-शाम दें।
• रीठा के छिलकों की भस्म 125 से 250 मि.ग्रा. तक जल से दिन में 2-3 बार तक सेवन करें।
• फिटकरी की भस्म 125 मि.ग्रा., पीली कटैय्या की जड़ की छाल की भस्म 135 मि.ग्रा.- ऐसी एक मात्रा 6 से 12 घंटे के अंतर पर जल से दें।
• भोजन के बाद महामन्जिष्ठारिष्ट, वाद्यारिष्ट प्रत्येक 15 मि.ली. एकत्र मिलाकर उसमें समान जल मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करना भी पुराने आतशक (उपदंश) से उत्पन्न सिरदर्द नष्ट हो जाता है।
गुर्दों में शोथ (सूजन) होने से उत्पन्न सिरदर्द-
ऐसी दशा में रोगी के सिर के निचले भाग में संक्रमण के कारण निरन्तर (हर समय) सिरदर्द होता रहता है तथा उसे रात्रि में बार-बार मूत्र आता है। रोगी के मूत्र में अण्डे की सफेदी जैसा पदार्थ (एल्क्युमिन) भी आता है। मूत्र का घनत्व भी कम हो जाता है। यह सिरदर्द बड़ी आयु में हुआ करता है। इस रोग से ग्रसित रोगी उचित उपचार व्यवस्था के अभाव में शीघ्र बूढ़ा हो जाया करता है।
उपचार:- मलेरिया ज्वार का उचित उपचार कर जड़मूल से दूर करें।
• दिमागी में रसूली (Intra Craninal Tumour) हो जाने पर भी पहले तो मामूली किन्तु बाद में भयंकर सिरदर्द से रोगी की दृष्टि कमजोर हो जाती है।
➢ घी या मक्खनयुक्त भोज्य पदार्थ पूडि़यॉं, परांठे इत्यादि खाने के कारण भी सिर दर्द हो जाया करता है। यह सिरदर्द प्रात: के समय अधिक होता है।
उपचार:- 1 या 2 नीबू का रस ठण्डे या गरम पानी में निचोड़ कर व पीने से पित्ताशय में उत्तेजना से चिकनाई हज्म होकर सिरदर्द दूर हो जाता है।
➢ रक्त में जमने की शक्ति कम हो जाने पर सिरदर्द प्रात: समय हुआ करता है। ज्यों-ज्यों दिन बढ़ता जाता है, दर्द कम होता जाता है। रोगी के चर्म पर खुजली के दाने और पित्ती उछलने जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। रोगी का चेहरा और ऑंखों के पपोट सूजे हुए होते हैं। यह रोग प्राय: स्त्रियों को होता है।
उपचार:- हाई ब्लड प्रेशर (रक्तदाव की अधिकता) के कारण उत्पन्न सिरदर्द होने पर एैलोपैथी की ‘एमाईल नाइट्रेट’ नामक औषधि की 4-5 बूँदें साफ रूमाल पर डालकर मुंह और नाक के पास रखकर सुँघाने से तुरंत आराम मिल जाता है।
• धूप में चलते-फिरने के कारण उत्पन्न सिरदर्द के रोगी को ठण्डे कमरे में लिटायें तथा बिजली का पंखा चलायें। खस का इत्र सुंघायें अथवा कद्दू का तैल नाक में टपकायें या आलू बुखारा 7 दानों अथवा इमली पानी में घोलकर पिलायें। वैसे गर्मी के कारण उत्पन्न सख्त सिरदर्द में होम्योपैथी औषधि (ग्लोनाइन 30 शक्ति की) 2-3 बूंदे पानी में डालकर प्रत्येक 20-25 मिनट पर सेवन करना लाभप्रद है।
• सिर में रक्त की अधिकता हो जाने के कारण भी तीव्र सिरदर्द उत्पन्न हो जाता है। सिर भारी, माथे और सिर की गुद्दी में सख्त दर्द, ऑंखों के सामने लाल चिनगारियॉं अथवा काले धब्बे और कनपटियों में तड़प प्रतीत होती है।
पचनांगों (digestive organ) के दोषों से एवं सिर में रक्त की अधिकता के कारण उत्पन्न सिर दर्द सिर को मसलना या दबाना उचित नहीं है। प्रत्येक प्रकार का सिरदर्द पाखाना आ जाने से कम हो जाया करता है। अत: दस्त लाने की औषधि या वेदना-शामक औषधि भी ले सकते हैं।
➢ मस्तिष्क में कीड़े पड़ने के कारण उत्पन्न सिर दर्द के रोगी की सूँघने की शक्ति घट जाती है और इसको पीनस रोग हो जाता है तथा रोगी के तालु में छेद पड़ सकता है। आतशक (उपदंश) के रोगियों को भी आधी रात के समय सिरदर्द हुआ करता है।
उपचार- चमड़े के पुराने जूते का तला आग में जलाकर, पीसकर कपड़े से छानकर सुरक्षित रख लें। इसकी ननस्य लेने (सुँघना) से कीड़े निकल जाते है तथा सिरदर्द भी दूर हो जाता है।
➢ पित्ताधिक्य के कारण उत्पन्न सिरदर्द (Bilious Headache) जिगर की खराबी, गरम भोजनों को खाने अथवा गरम-पेय पदार्थों के पीने से उत्पन्न हुआ करता है। सिर में सख्त दर्द, मितली और मुख का स्वाद कड़वा हो जाया करता है, कै और दस्तों मं पित्त (Bile) निकल जाने पर सिरदर्द कम हो जाता है।
उपचार:- सिरसिर पर ठण्डे पानी की धर बांधकर पानी गिराना लाभप्रद है।
• अमृतधारा की 2-3 बूँदें बताशे पर डालकर खाना भी लाभकारी है।
• चंदन तथा कपूर को घिसकर माथे और कनपटियों पर लेप करें।
• नीबू, आलूबुखारा या इमली से बना शरबत पीना लाभकारी है।
• दृष्टि, कमजोर हो जाने से उत्पन्न सिरदर्द की अवस्था में ऑंख के विशेषज्ञ चिकित्सक से ऑंखें टेस्ट करवाकर उपयुक्त नम्बर के शीशों की एनक (चश्मा) लगवाने से सिरदर्द नष्ट हो जाता है। अन्य नेत्र दृष्टिवर्धक सुरमा अथवा खाने की औषधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है।
• (लो ब्लड प्रेशर) रक्त का दबाव कम हो जाने से उत्पन्न सिरदर्द में ब्लडप्रेशर का उपचार करने से सिरदर्द स्वयं नष्ट हो जाता है।
• उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त अधिक और बार-बार खाने से भारी पगड़ी बॉंधने से, सिर में जुऐं तथा बाल बड़े-बड़े होने से, दॉंत में कीड़ा लगने से, शराब, कोकीन एवं लौह (आयरन) की औषधियों के अधिक प्रयोग से तथा कुछ रोगों के कारण जैसे- खॉंसी, सर्दी इत्यादि के कारण भी सिर में दर्द उत्पन्न हो जाया करता है। इन सभी के मूल कारणों का उपचार करने से सिरदर्द की शिकायत दूर हो जाती है।
• रीठे को पानी में पीसकर नाक में टपकाने से सिर के कीड़े मर जाते हैं।
• सॉंप की केंचुली 10 ग्राम को घी में बारीक पीसकर इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर खूब घुटाई कर शीशी में सुरक्षित लखलें। आवश्यकता पड़ने पर 2 ग्राम यह दवा बताशें में भरकर रोगी को देकर ऊपर से 3-4 घूंट पानी पिलादें। इस प्रयोग से पुराने से पुराना सिरदर्द मात्र 2-4 मात्राओं से ही सदा-सदा के लिए नष्ट हो जायेगा।
• शुद्ध तिल का तैल 250 ग्राम, चंदन और दालचीनी का तेल 10-10 ग्राम लें। सभी को साफ शीशी में डालकर रख लें। इस तेल को माथे पर लगाने से सिरदर्द तुरंत दूर हो जाता है। 4-4 बूँदें दोनों कानों में भी डाल लें।
• नीबू की पत्तियों को कूटकर रस निकाललें। इसकी नस्य लेने से सिरदर्द नष्ट हो जाता है। जिन रोगियों को सदैव सिरदर्द की शिकायत रहती है वे इस प्रयोग को करें। जीवन भर के लिए उन्हें सिरदर्द से छुटकारा मिल जायेगा।
• पीपल को पानी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से मस्तक पीड़ा नष्ट हो जाती है।
• अनार की जड़ को पानी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से बात और कफ की पीड़ा दूर हो जाती है।
• धतूरे के 3-4 बीज प्रतिदिन निगलने से पुराने से पुराना सिरदर्द कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
• ‘षडबिन्दु तैल’ की नस्य लेने से सभी प्रकार का सिरदर्द दूर हो जाता है।
• नौशादर और बिना बुझा चूना बराबर मात्रा में लेकर शीशी में भर लें। जब भी सिरदर्द हो तो शीशी को हिलाकर सूँघें। इस प्रयोग से सिरदर्द तुरन्त ही दूर हो जाता है। नजले के कारण उत्पन्न सिरदर्द हेतु उत्तम प्रयोग है।
• खाने के चूने के थोड़े से घी में मिलाकर सिर पर लेप करने से गर्मी से उत्पन्न सिरदर्द दूर हो जाता है।
• कच्चे दूध में बिन्दाल की मींगी पीसकर सूंघने से सिर का भयंकर दर्द शांत हो जाता है।
• पीपल और बच (Sweet flag) का समभाग चूर्ण सूँघने से सिरदर्द दूर हो जाता है।
• भटकटैया (Yellow-fruit nightshade) के फलों का रस सिर में लगाने से सिरदर्द दूर हो जाता है।
• रीठा, काली मिर्च और सौंठ तीनों को जल में घिसकर पानी मिलाकर 2-3 बूँदें नाक के नथुनों में टपकाकर नस्य लेने से सिरदर्द दूर हो जाता है।
• छोटी पीपल डेढ़ ग्राम को बारीक पीसकर 10 ग्राम शहद के साथ चाटने से सिरदर्द 5 मिनट में दूर हो जाता है।
• मैंथल 3 ड्राम, रेक्टी फाइड स्प्रिट 3 औंस, आयल क्वाथ 2 ड्राम सभी को शीशी में भरकर मजबूत कार्क लगाकर सुरक्षित रखलें। इसको फुरैरी से सिर पर लगाने से भयंकर से भयंकर सिरदर्द दूर हो जाता है।
स्रोत:-
डॉ. ओमप्रकाश सक्सैना ‘निडर’
(M.A., G.A.M.S.) युवा वैद्य आयुवैंदाचार्य जी की पुस्तक से
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