अजीर्ण रोग या बदहाजमी ( Indigestion / Dyspepsia ) के घरेलू उपचार!

रोग परिचय:- अजीर्ण या बदहाजमी (Indigestion) रोग प्राय: साधारण सा रोग समझा जाता है, किन्‍तु याद रखिये कि यदि किसी रोगी को यह रोग अत्यन्‍त पुराना हो गया हो तो उसे शनै: शनै: मृत्‍यु पथ पर ढकेलने वाला भी साबित हो सकता है। उसमें कोई दो राय अथवा अतिशयोक्ति नहीं है। साधारण सी बोलचाल में अजीर्ण का सीधा सा अर्थ होता है- पाचन विकार अर्थात् खाया पीया हज्म न होना। इसी रोग को अग्निमाद्य तथा मन्‍दाग्नि के नामों से भी जाना जाता है।

अजीर्ण रोग या बदहाजमी ( Indigestion / Dyspepsia ) के घरेलू उपचार:-

( Home Remedies For Indigestion in Hindi )

• चित्रक Plumbago zeylanica (चीता) के मूल का महीन चूर्ण करके सुरक्षित रख लें। इसे 4-4 रत्ती की मात्रा में नित्‍य प्रति शहद के साथ चाटने से मात्र 45 दिनों में ही लाभ हो जाता है।

• चित्रक- मूल चूर्ण 2 ग्राम, सौठ, काला नमक और पोदीना (सभी औषधियाँ 1-1 ग्राम) को 100 ग्राम जल के साथ पीसकर तदुपरान्‍त छानकर नित्‍य प्रति पीने से अजीर्ण का पाचन होकर भूख खुलकर लगने लगती है।

• टमाटर को आग से कुछ सोककर सेंधा नमक व काली मिर्च लगाकर खाने से भी अजीर्ण / बदहाजमी रोग नष्‍ट हो जाता है। अथवा टमाटर का रस 25 ग्राम लेकर उसमें गरम जल तथा अल्‍प मात्रा में खाने वाला सोड़ा मिलाकर देने से भी अजीर्ण रोग भाग जाता है।

• गिलोय, लौंग, दालचीनी का चूर्ण 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा लीटर पानी में पकावें। आधा पानी शेष रहने पर छानकर 25 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार लेने से अग्निमॉंद्य में बहुत लाभ होता है।

• नारंगी का रस आवश्‍यकतानुसार लेकर उसमें थोड़ा सा नमक और सौंठ का चूर्ण मिलाकर कुछ दिनों तक लगातार सेवन करने से पाचन शक्ति बढ़ जाती है तथा अजीर्ण रोग नष्‍ट हो जाता है।

• कूट कड़वी 100 ग्राम, काला नमक 400 ग्राम दोनों का चूर्ण करके 4 रत्ती (0.485 ग्राम ) की मात्रा में सेवन करने से अजीर्ण नष्‍ट हो जाता है।

• अमरूद के कोमल पत्‍तों के स्‍वरस 10 ग्राम में थोड़ी सी शक्कर मिलाकर प्रतिदिन (दिन में 1 बार) पिलाने से भूख बढ़ती है तथा अजीर्ण का नाश हो जाता है।

• छाया-शुष्‍क अनार के पत्ते 4 भाग तथा सेंधा नमक 1 भाग दोनों को महीन पीसकर कपड़छन कर सुरक्षित रख लें। इसे 4 ग्राम की मात्रा में प्रात: सायं प्रतिदिन दो बार जल के साथ सेवन करने से अजीर्ण रोग नष्‍ट हो जाता है।

• मुनक्का 6 नग, कालीमिर्च 5 नग, भुना जीरा 10 ग्राम, सेंधा नमक 6 ग्राम, टाटरी 4 रत्ती पीसकर चटनी बनाकर खाने से अजीर्ण, अरूचि तथा मलावरोध में लाभ होता है।

• अदरक का रस 5 ग्राम, नीबू का रस 4 ग्राम, भुना जीरा व सेंधा नमकर 1 ग्राम, मुनक्‍का 5 नग, छोटी इलायची 8-10 नग लें और सबकी चटनी बनाकर दिन में 2-3 बार अजीर्ण के रोगी को चटायें। अत्‍यन्‍त लाभप्रद योग है।

• नासपाती के रस में थोड़ा सा पीपल का चूर्ण मिलकार पिलाने से अजीर्ण विकार दूर हो जाता है।

• अदरक का रस 10 ग्राम, नीबू का रस 5 ग्राम सौंचर लवण 1 ग्राम सभी को मिलाकर पिलाने से अजीर्ण रोग नष्‍ट हो जाता है। नित्‍य भोजन के साथ उसको सेवन करने से कभी अजीर्ण नहीं होता है।

• अदरक की चार अंगुल लम्‍बी गाँठ को आग से भूनकर सेंधा नमक लगाकर नित्‍य प्रति दिन खाली पेट कुतर-कुतर कर थोड़ा-थोड़ा कुचल-कुचलकर दाँतो से खाने से पुराने से पुराना अजीर्ण रोग भी नष्‍ट हो जाता है।

• नीबू स्‍वरस 200 ग्राम में 100 ग्राम शक्कर मिलाकर 1 काँच की मजबूत ढक्कन शुक्‍त शीशी में भरकर 15 दिनों तक धूप में रखें। तत्‍पश्‍चात् इसे भोजन के साथ चाटने से पाचनशक्ति बढ़ जाती है तथा अजीर्ण रोग नश्‍ट हो जाता है।

• धनिये का चूर्ण 3 ग्राम, सौंठ का चूर्ण 3 ग्राम, 10 ग्राम गरम पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण में लाभ होता है।

• द्रोणपुष्‍पी (गूमा) 2 ग्राम तथा काली मिर्च 11 नग लें व पीसकर प्रात: काल ताजे पानी से या अर्क सौंफ से फाँक लें। मात्र दो-तीन सप्‍ताह में ही रोगी को खूब भूख लगने लगेगी तथा उजीर्ण रोग नष्‍ट होकर चमत्‍कारिक लाभ होगा।

• सेंधा नमक, सौंठ तथा हरीतकी सममात्रा में लेकर महीन चूर्ण कर लें। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा में नित्‍य प्रात: तथा सायंकाल सेवन करें। अजीर्ण नाशक है।

• बिल्‍ब के गूदे में शक्कर, सौंठ, कालीमिर्च, इलायची, जीरा और कपूर मिलाकर घौंट छानकर पिनाले से ऑंव दोष शमन होकर भोजन में रूचि बढ़ती है।

• भुनी हींग, भुना जीरा, सौंठ और संधा नमक सभी को सममात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। इस चूर्ण का कुछ दिनों तक नियमित सेवन करने से अजीर्ण रोग नष्‍ट हो जाता है।

• लाल मिर्च को नीबू के रस में 40 दिनों तक खरल करके 2-2 रत्ती की गोलियॉं बना लें। एक गोली पान में रखकर खाने से अजीर्ण रोग नष्‍ट होकर भूख लगने लगती है।

• धनियॉं तथा सौंठ सम मात्रा में लेकर पानी में औटाकर छान लें। इसे थोड़ा-थोड़ा पीने से अजीर्ण, बदहज्‍मी दूर होकर भूख बढ़ती है।

• तुलसी के पत्तों का रस 100 ग्राम की मात्रा में कुछ दिनों तक लगातार पीने से अजीर्ण का विकार दूर हो जाता है।

• सूखे खट्टे अनारदाने में समभ्राग सफेद जीरा और काला नमक मिलाकर गरम पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण दूर जाता है।

• छोटी पीपल का चूर्ण शहद के साथ कुछ दिनों तक नियमित रूप से चाटने से पाचनशक्ति बढ़ जाती है तथा अजीर्ण नष्‍ट हो जाता है।

• छोटी हरड़ को भूनकर काले नमक के साथ फंकी लगाने से अजीर्ण आदि समस्‍त विकार नष्‍ठ हो जाते है।

• छोटी जामुन का रस 5 लीटर तथा पॉंचों प्रकार के नमक 50-50 ग्राम की मात्रा में लें। पहले रस को कपड़े से छानें। तत्‍पश्‍चात् पाँचों नमक (पिसे हुए) एक काँच के किसी बर्तन में बंद करके धूप में एक महीना तक रखने के बाद में पुन: छानकर बोतलों में भरकर सुरक्षित रख लें। इसे 4-5 चम्‍मच बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्‍त सेवन कराने से अरूचि, अजीर्ण, मंदाग्नि, इत्‍यादि विकारों में आश्‍चर्यजनक लाभ होता है।

• काला नमक तथा खट्टा चूना 40-40 ग्राम तथा अजवायन, लौंग व काली मिर्च 4-4 ग्राम लेकर सभी को खरल में डालकर 4-4 रत्ती की गोलियॉं बनाकर सुरक्षित रख लें। यह गोलियॉं अरूचि, अजीर्ण तथा वायुनाशक है। दो से चार गोली आवश्‍यकतानुसार गरम जल से सेवन करायें अथवा मुख में डालकर चूसने को कहें।

• टाटरी काली मिर्च, यचक्षार, सेंधानमक, काला जीरा 40-40 ग्राम हींग व पिपरमेंट 3-3 ग्राम सभी का बारीक चूर्ण बना लें। यह अत्‍यन्‍त स्‍वादिष्‍ट व रूचिकारक अजीर्णनाशक चूर्ण है। इसे 1-2 ग्राम भोजनोपरान्‍त अथवा किसी भी समय व्‍यवहार करें।

• हरड़ का बक्कल, काला नमक एवं पीपल प्रत्‍येक 1-1 भाग तथा हींग तथा सुहागे का फूला चौथाई-चौथाई भाग सभी को लेकर बारीक चूर्ण बनायें। इसे नित्‍य गरम जल से 3 से 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। अजीर्ण, अरूचि, भूख न लगना इत्‍यादि विकारों में अत्‍यन्‍त ही लाभकारी है।

• सौंठ, कालीमिर्च, पीपल, दालचीनी, अजवायन, अजमोद, लौंग, हींग (घी में भुनी हुई) अकरकरा, सेंधा नमक, सौंचर नमक, मिश्री सभी औषाधियॉं 10-10 ग्राम तथा किशमिश, अदरक, छुआरा (गुठली निकालकर) इच्‍छानुसार लेकर सभी को घोंट पीसकर ऊपर से नीबू का रस निचोड़कर शीशी में भरकर मुख बंद कर सुरक्षित रख लें। इस चटनी को भोजनोपरान्‍त थोड़ा-थोड़ा खाने से अजीर्ण नष्‍ट हो जाता है।

स्रोत:-
डॉ. ओमप्रकाश सक्सैना ‘निडर’
(M.A., G.A.M.S.) युवा वैद्य आयुवैंदाचार्य जी की पुस्‍तक से।

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