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करवा चौथ व्रत:-
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत किया जाता है। पति के स्वस्थ रहने, दीर्घायु होने एवं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा-अर्चना की जाती है। करवा चौथ व्रत को ‘कर्क चतुर्दशी’ के नाम से भी जाना जाता है। उत्तरी भारत में यह व्रत आज श्रद्धा व विश्वास की सीमाओं से आगे निकलकर, नए रंग में रंग गया है। करवा चौथ आज अपने प्रेमी, होने वाले पति और जीवनसाथी के प्रति भावनाएं प्रदर्शित करने का पर्याय बन गया है। आज यह केवल एक सुहागन का व्रत ही न रहकर, पति के द्वारा अपनी पत्नी के लिए रखा जाने वाला पहला व्रत बन गया है। करवा चौथ के व्रत ने बाजारीकरण को कितना लाभ पहुंचाया है, यह तो स्पष्ट है, परंतु यह व्रत वैवाहिक जीवन को सफल और खुशहाल बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, क्योंकि करवा चौथ अब केवल एक लोक परंपरा न रहकर, भावनाओं के आदान-प्रदान का पर्व बन चुका है।
करवा चौथ का पौराणिक महत्व:-
करवा चौथ पर्व का पौराणिक महत्व धर्मग्रंथों में उल्लेखित है। महाभारत से संबंधित कथानुसार, अपने वनवास काल के दौरान अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं तथा दूसरी ओर पांडवों पर कई संकट आने लगते है। यह सब देख द्रोपदी चिंता में पड़ जाती है और वह भगवान श्रीकृष्ण से इन समस्याओं को मुक्ति पाने का उपाय जानने की प्रार्थना करती हैं। उनकी विनय सुन कृष्ण, द्रोपदी से कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृषण चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत रखें, तो उन्हें अपने संकटों से मुक्ति मिल सकती है। भगवान के कथन अनुसार द्रोपदी ने पूर्ण निष्ठा भाव के साथ करवा चौथ का व्रत किया। व्रत के फलस्वरूप पांडवों को आने कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है। अटूट बंधन व सौभाग्य का प्रतीक करवा चौथ का व्रत आज के संदर्भ में भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की प्राचीन काल में था।
सरगी:-
इस व्रत में सरगी का बहुत महत्व है। यह सास की तरफ से बहू को दी जाती है। इसका सेवन महिलाएं करवा चौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं। सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं। सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है। सरगी ग्रहण करने के बाद व्रत आरंभ होता है।
करवा चौथ व्रत पूजन विधि:-
व्रत के दिन प्रात: स्नान करने के बाद संकल्प के साथ करवा चौथ व्रत का आरंभ करना चाहिए। गेरू और पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित किया जाता है। आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ एवं पक्के पकवान बनाएं। पीली मिट्टी से मां गौरी और उनकी गोद में गणेशजी को चित्रित किया जाता है। गौरी की मूर्ति को साथ भगवान शिव व गणेशजी को भी लकड़ी के आसन पर बिठाते है। मां गौरी को चूनर, बिंदी आदि सुहाग सामग्री से सजाया जाता है। जल से भरा हुआ लोटा रखा जाता है करवा पर स्वास्तिक बनाए जाते हैं। इस मंत्र का जाप करें – ‘नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥’ गौरी – गणेशजी की श्रद्धा अनुसार पूजा की जाती है और कथा श्रवण किया जाता है। ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही पूजा करती हैं। हर क्षेत्र के अनुसार पूजा करने का विधान और कथा अलग-अलग होता है। इसलिये कथा में काफी ज्यादा अंतर पाया गया है। पति की दीर्घायु की कामना करते हुए कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर सास के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें करवा भेंट करते हैं। रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं।
ये है व्रत की कथा (Karwa Chauth Vrat Katha in Hindi) :-
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी के साथ उसकी सातों बहुओं और बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं भोजन करूंगी।
साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।
साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस पवजह से करवा चौथ का व्रत भंग हो गया और विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।
साहूकार की बेटी को जब अपनी गलती का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा मांगी और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया। इस प्रकार उस लड़की की श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान दिया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।
कहते हैं इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत को पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।
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