रोग परिचय:- यह अंग्रेजी में (Epilepsy) तथा हिकमत में सरा और आयुर्वेद में अपस्मार तथा साधारणतय: आम बोलचाल में मिर्गी के नाम से जाना जाता है। यह रोग सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम (केन्द्रीय तन्त्रिका संस्थान) अर्थात् मस्तिष्क से संबंध रखता है। इस रोग में मस्तिष्क के तंत्रिका में गड़बड़ी हो जाती है। इस रोग में रोगी बेहोश हो जाता है और शीघ्र अथवा देर से दौरे पड़ते रहते हैं। उचित चिकित्सा व्यवस्था के अभाव में कई रोगियों को इसके दौरे जीवनभर पड़ते रहते हैं। मस्तिष्क की शोथ (Encephalitis) मस्तिष्क का भली भॉंति पोषण न होने के कारण अर्थात् पूर्ण रूप से मस्तिष्क की रचना न होने पर अथवा किसी विषैली औषधि के प्रयोग से मस्तिष्क के तंत्रिका में विष फैल जाने से, अथवा मस्तिष्क में अर्बुद (टयूमर Tumour) या फोड़ा हो जाने पर मिर्गी के दौरे पड़ने लगते हैं।
नोट- अकारण आने वाले मृगी के दौरे को अंग्रेजी में इथियोपैथिक लेप्सी तथा लक्षणिक मृगी को (Symptomatic Epilepsy) कहते हैं तथा इनके दौरे (FITS) को मामूली दौरे जो Petitmal तथा सख्त और तेज दौरे को Grandmal कहते हैं। बच्चों की मिर्गी को पिकानोलेप्सी कहते हैं।
मिर्गी का आयुवेर्दिक उपचार :-
• करौंदे के पत्ते 6 से 10 ग्राम तक पीसकर दही के तोड़ में 3 दिन तक पिलाने से अपस्मार में लाभ होता है।
• कूट के चूर्ण के साथ बच (Sweet flag) का चूर्ण समभाग एकत्र कर खरल कर सुरक्षित रख लें। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार शहद के साथ लगातार 4-5 मास सेवन करने से अपस्मार में स्थायी रूप से लाभ हो जाता है।
• बच (Sweet flag) का चूर्ण 4-6 रत्ती की मात्रा में दिन में 2 बार शहद के साथ चटाने से अपस्मार में लाभ होता है। पथ्य में – 12 दिनों तक केवल दूध-भात खायें।
• नीम की ताजी पत्तियाँ 5 तथा अजवायन और काला नमक 3-3 ग्राम एकत्र मिलाकर 50 ग्राम जल में घोलकर नित्य प्रति सुबह-शाम लगभग 3 माह तक सेवन करने से अपस्मार में लाभ होता है।
• लहसुन 10 ग्राम, काले तिल 30 ग्राम लें। इन दोनों को मिलाकर सबेरे ही 21 दिन तक खाने से अपस्मार में लाभ होता है।
• शुद्ध हींग 1-2 रत्ती गधी के दूध के साथ दिन में 2 बार निरन्तर 1 मास तक सेवन कराने से अपस्मार ठीक हो जाता है।
• कॉंटे वाली चौलाई की जड़ 20 ग्राम, काली मिर्च 9 नग, जल 50 ग्राम लें। पीस छानकर 7 दिनों तक रोगी को पिलाने से अपस्मार रोग जाता है।
• बेल के 5-7 पत्ते (प्रत्येक में 3-3 बेल पत्र हो) लेकर उन्हें 8-10 काली मिर्च के साथ पिलाने से अपस्मार में आश्चर्यजनक लाभ होता है। प्रयोग कम से कम रोग की अवस्थानुसार 1 से 3 माह तक करें।
• भुनी हींग 10 ग्राम, दूध-बच 20 ग्राम, सौंठ 40 ग्राम, सैंधानमक 80 ग्राम, बायविडंग 100 ग्राम, सभी को कूटपीस कर कपड़छन कर रख लें। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन कराने से अपस्मार में लाभ होता है।
• अकरकरा (Anacyclus pyrethrum) 100 ग्राम, पुराना सिरका 100 ग्राम, शहद 140 ग्राम लें। पहले अकरकरा को पीसकर सिरके में खूब घोंटे, बाद में शहद भी मिला दें।
• 50 ग्राम नौसादर को 1 लीटर केले के पत्तों के रस में डालकर रखें। मृर्गी का दौरा तुरन्त शांत हो जायेगा।
• मृगी का दौरा प्रारम्भ होने से पूर्व सुरसराहट होने वाले अंग पर रूमाल या कपड़ा कसकर बाँध देने से जिस में ऐंठन प्रतीत हो उस अंग को खींच देने से रोगियों में मृगी का दौरा पड़ना रुक जाता है।
• हींग, सौंठ, काली मिर्च, इन्द्रायन (जो भी उपलब्ध हो) को जल में घिसकर नाक में कुछ बूँदें टपकाने से मृगी का दौरा दूर हो जाता है।
• खील किया हुआ (भुना) सुहागा 1 से 2 माशा तक 6 माशा में मधु मिलाकर सुबह-शाम खिलाते रहने से मृगी के दौरे का आराम आ जाता है।
• हींग 1 से 6 माशा तक मधु में मिलाकर सुबह-शाम चटाना अपस्मार नाशक है।
• छोटी चंदन, काली मिर्च सममात्रा में पीसकर 4 से 6 रत्ती की मात्रा में सुबह शाम जल से खिलाना अपस्मार नाशक है।
• ब्राह्मी स्वरस और मधु 15-15 मि.ली. एक साथ मिलाकर दिन में 3 बार पिलाने से अपस्मार में लाभ होता है।
• हाथी की ताजी लीद वस्त्र में रखकर उसका 6 ग्राम की मात्रा में रस निचोड़कर प्रात:सायं 1 माह सेवन कराने से अपस्मार में लाभ होता है।
• जायफल के 21 दाने रेशमी धागे में पिरोकर गले में पहनने या भेडि़या की विष्ठा और हड्डी पास में रखने अथवा सुअर के नाखून की अंगूठी बनवाकर मंगलवार के दिन दाहिनी कनिष्ठका में धारण करने अथवा शुद्ध हींग 1 तोला की पोटली ताबीज की भांति गले में पहनने से मिर्गी रोग दूर हो जाता है।
• ऊदसलीम (पुरानी अथवा घुनी हुई न हो) नीला, या हरा या लाल या सुनहरे या पीले डोरे के बीच में बांधकर अपस्मार (मिर्गी) का रोगी गले में इस प्रकार लटकाने कि ऊदसलीम हृदय की संधि में स्वर्श करती रहे (ऊदसलीम हलके फाले के समान होती है) पंसारी के यहाँ से खरीदें।
अपस्मार (मिर्गी) की प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदिक दवा:-
नेड टिकिया (चरक) 2-2 टिकिया दिन में 3 बार बच्चों को आधी मात्रा दें। मिर्गी रोग, गंभीर अपस्मार, सौम्य अपस्मार, मानसिक तनाव एवं ऐंठन रोग में अतीव लाभकारी है। यह औषधि केन्द्रीय मस्तिष्क की विकृति ठीक करने हेतु सर्वोत्तम निरापद औषधि है।
सायलेजिन टेबलेट (अलारसिन) मात्रा उपर्युक्त। यह एक उत्तम ट्रक्विांलाइजर आयुर्वेदिक औषधि है। अपस्मार, हिस्टीरिया व उन्माद आदि रोगों में अत्यधिक उपयोगी है निद्रा लाती है।
सर्पेन्थिन टेबलेट (मार्तन्ड) 1-2 गोली दिन में 3 बार दूध से दें। यह स्नायु दौर्बल्य जन्य रोगों (अपस्मार, योषापस्मार) में अतिशय लाभकारी है।
वालापस्मार वटी (धन्वन्तरी कार्या.) 1-2 गोली दिन में 3-4 बार। बच्चों के अपस्मार रोग की बहुपरीक्षित लाभकारी ओषधि है।
हिस्टीरियान्तक कैपसूल (गर्ग बनौऔषधि) 1-1 कैपसूल दिन में 3 बार हिस्टीरिया के साथ-साथ अपस्मार में भी अत्यन्त उपयोगी है।
नेत्रबलादि घनसत्व टेबलेट (गर्ग बनौऔषधि) 2-2 गोली दिन में 3-4 बार। अपस्मार में स्थायी लाभ हेतु प्रशस्त है।
लिक्विड एक्सट्रक्ट आफ बाह्मी (झन्डू) 1-2 चम्मच दिन में 3 बार जल मिलाकर दें। मस्तिष्क को बल प्रदान करता है तथा अपस्मार व उन्माद में लाभप्रद है।
चन्द्रावलेह (वैद्यनाथ) 1-2 चम्मच दूध के साथ दिन में 2 बार दें। यह मूर्च्छा, सिर में चक्कर अन्य एवं अपस्मार नाशक है तथा दिमाग को पुष्ट करता है। निद्रा लाता है।
दिमाग पौष्टिक रसायन (वैद्यनाथ) मात्रा व लाभ उपर्युक्त।
इथीनोर लिक्विड एवं टेबलेट (मेडिकल इथिक्सि) 1-2 चम्मच 1 गिलास जल के साथ 2-3 बार भोजनोपरान्त तथा टेबलेट दिन में 3 बार 1-1 गोली जल के साथ दें। मस्तिष्क को बल प्रदान करने वाला यह एक उत्तम टॉनिक है। इसके निरन्तर सेवन से मस्तिष्कजन्य दुर्बलता दूर हो जाती है।
स्रोत:-
डॉ. ओमप्रकाश सक्सैना ‘निडर’
(M.A., G.A.M.S.) युवा वैद्य आयुवैंदाचार्य जी की पुस्तक से
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