बादशाह अकबर अपने पड़ोसी मुल्कों से अच्छी मित्रता रखते थे। एसे ही एक फारसी मित्र थे जो की बहुत ही विशाल साम्राज्य के राजा थे। बादशाह और उनका मित्र दोनों एक दुसरे को अक्सर पत्र लिखा करते और एक दुसरे से मजाक चलती रहती। बादशाह अक्सर चुटकले और शायरिया लिखकर भेजते, और फारसी का राजा उनको अक्सर तोहफे भेजा करता।
एक दिन फारसी के राजा ने एक ऐसा तोहफा और पत्र भेजा जिसको देखकर बादशाह चौंक गये। तोहफे के अंदर से एक पिंजरा और एक पत्र निकला। पिंजरे के अंदर एक शेर था। बादशाह ने पत्र खोलकर देखा तो उसके अंदर लिखा था की इस शेर को कैसे भी करके बाहर निकालना हैं और इस पिंजरे को खोलना भी नहीं है, और अगर ऐसा किया तो हम आपकी सल्तनत पर हमला करेंगे।
बादशाह पत्र पढ़कर सोच में पड़ गये, बादशाह ने तुरंत सभा बुलाई और उस पिंजरे और पत्र को सभी के सामने पेश किया। सभी को पत्र सुनाकर सभी से एक-एक करके राय मांगी। उस दिन बीरबल किसी सरकारी काम से बाहर गए हुए थे। अकबर को इस बात का अफ़सोस था की बीरबल इस मुसीबत बला में उनके साथ क्यों नहीं है। पूरे दरबार में सभी एक दुसरे का मुहं देखने लगे। अकबर ने पूछा कि किसी के पास इस पहेली का कोई हल है क्या?
बादशाह समझ गये की विषय जरा गंभीर है, फ़ौरन बीरबल को बुलाने को कहा।
दूसरे ही दिन बीरबल दरबर में हाजिर हो गये। बीरबल ने झुककर अकबर का अभिवादन किया। अकबर ने बीरबल के हाथ में उस पत्र को थमवा दिया। बीरबल ने पत्र को ध्यान से पढ़कर, आग और लोहे की सरिये की व्यवस्था करने को कहा।
बादशाह के हुक्म पर तुरंत सरिये और आग की व्यवस्था की गइ। बीरबल ने सरिये को गर्म किया और पिंजरे में शेर को चिपका दिया। जहॉं से शेर को सरिया लगा वहां से शेर खंडित हो गया। बीरबल ने राहत भरी सांस ली और बोले जहापनाह मसला सुलक्ष जायेंगा। बीरबल ने अकबर से एक बड़े अग्नि कुण्ड की व्यवस्था करने को कहा। अकबर ने दास लोगों से कहकर इसकी व्यवस्था करवा दी। बीरबल के कहने पर उस पूरे पिंजरे को अग्नि कुण्ड में रखवा दिया। बंद पिंजरे से पूरा शेर पिघल कर बाहर निकल गया। बीरबल की चतुराई पर बादशाह अति प्रसन्न हुए और पूछा की बीरबल तुमको कैसे पता चला की इसके अंदर लाख का शेर है। जहापनाह इस पत्र में साफ-साफ लिख रखा हैं की इस शेर को पिंजरे से निकालना है वो भी बिना इसको खोले तो इसका मतलब है की जरूर शेर किसी धातु का नहीं है। हमने तो केवल देखने के लिए सरिया मंगाया था की क्या वाकई शेर पिघलता है की नहीं। हमने सही अंदाजा लगाया और शेर पिघल गया।
फिर क्या था फ़ारसी का दूत एक और पत्र लेकर गया और राजा को एक और बीरबल की बुद्धिमानी की कहानी सुनाई… फारसी का राजा भी बीरबल की चतुराई से अति प्रसन्न हुआ और अगला तोहफा बीरबल के लिए भेजा।
इस अकबर बीरबल के किस्से ”नकली शेर” से क्या सीखा- बुद्धिमानी हमेशा अपना सर ऊपर रखती है।
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