रूपचंद्र और फूलचंद्र जौहरी! Akbar Birbal Ki Kahani

दिल्‍ली शहर में कपूर चंद्र जौहरी के दो पुत्र थे। बड़े का नाम रूपचंद्र और छोटे का फूलचंद जौहरी था। मरते समय कपूरचंद काफी धन अपने दोनों लड़को के लिये छोड़ गया था। बाप के क्रिया कर्म के पश्‍चात जो कुछ धन बच रहा उससे दोनों भाइयों ने कई वर्षो तक गुलछर्रे उड़ाये। आखिरकार उनकी नासमझी से सारा धन खर्च हो गया। तब इनको धनोपार्जन की चिन्‍ता हुई। जब दिल्‍ली मे रहकर धनोपार्जन की इन्‍हें कोई तरकीब न सूझी तो परदेश जाने का ठहराया और गृहस्‍थी के निर्वाहार्थ दो तीन वर्षो के लिये सब साम्रगी एकत्रित कर बाहर के लिये रवाना हुए।

जब कुछ दूर निकल गये तो इन लोगों ने दिहातों से सामान खरीदना और अगले दिहातों में बेचना प्रारम्‍भ किया। इस तरह खरीद फरोक्‍त करते हुये बहुत दूर निकल गये, रास्‍ते में एक जंगल मिला। उस जंगल के मध्‍य में एक तालाब था। इनको प्‍यास सता रही थी अतएव उस तालाब पर बैठकर निर्मल जल पान किया। फिर स्‍नान करने की इच्‍छा हुई। तालाब में स्‍नान करने के निमित्त दो-तीन सीढ़ी नीचे उतरते ही फूलचन्‍द के पैर के नीचे कोई ठोस चीज पड़ी। उसने डुबकी मारकर उसे बाहर निकाला तो वह एक छोटी सी संदूक थी। संदूक में एक छोटा सा ताला बंद था। फूलचंद ने ताले को पत्‍थर से मार-मारकर तोड़ दिया उसमें दो वेशकीमती लाल बंद थे। वह उनको देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और अपने ज्‍येष्‍ठ भ्राता रूपचंद को दिखलाने के लिये बुलाया।

रूपचंद उसकी आवाज सुनकर नजदीक गया तो देखा कि फूलचंद के हाथ में दो लाल हैं। वह उन लालों को अपने भाई रूपचंद को दिखलाकर बोला- भाई! यह एक लाल आप अपने पास रखें और एक मैं लूँगा। रूपचंद ने कहा- भाई इस दौलत को लेकर आप घर लौट चलें मैं भी यह सब तिजारती माल बेचता हुआ थोड़े दिनों में लौट आता हूँ। फूलचंद भाई की आज्ञा सिरोधार्य कर घर लौटने की तैयारी करने लगा। वह लाल दिखलाते हुए रूपचंद से बोला- भैया! मैं घर तो लौट आऊँगा, परंतु आप अपने हिस्‍से का लाल ले लेवे।

रूपचंद ने भाई को आगा पीछा समझा कर उत्‍तर दिया- भाई आप जानते ही हो कि परदेश में अपने पास दौलत रखना कितना खतरनाक होता है अतएव यदि आप मुझे लाल देने की इच्‍छा रखते है तो घर पहुँचकर मेरे हिस्‍से का लाल अपनी भाभी को देकर उसे छिपाकर रखने के लिये भलीभॉंति समझा देना। मैं लौटकर उससे अपना लाल ले लूँगा। फूलचंद अपने बड़े भाई का आज्ञापालक था, उन लालों को सावधानी से कमर में छिपाकर घर का रास्‍ता लिया। घर पहुँचकर माया की चक्‍कर में पड़ गया और रूपचंद के भाग का लाल अपनी भाभी को नहीं दिया, बल्कि उन दोनों लालों को अपने ही पास छिपा कर रख लिया। पैसे के जोर से नगर में एक दूकान खोलकर जौहरी बन बैठा।

जब रूपचंद दो-तीन वर्षो के पश्‍चात चक्‍कर लगाता हुआ घर पहुँचा और अपनी स्‍त्री से लाल मांगा तो वह बोली- कैसा लाल और किस ने कब मुझे दिया था, जो मैं सहेज कर रखती। स्‍त्री से ऐसा निरास उत्‍तर सुनकर रूपचंदने फूलचंद से पूछा- क्‍यों भाई मेरा लाल कहॉं है? फूलचंद ने उत्‍तर दिया- भैया वह लाल तो मैं आते ही भाभी को सौंप दिया था, बल्कि उसे भली भॉंति समझा भी दिया था कि देखो भैया के आने पर इसे उनहें सौंप देना। जान पड़ता है कि अब लालच में पड़कर वह उसे आपको देना नहीं चाहती है। जिस कारण आप से झूठ बोल रही है।

रूपचंद को भाई के ऐसे उत्‍तर से बउ़ा क्रोध उत्‍पन्‍न हुआ और घर आकर अपनी स्‍त्री को बहुत मारा पीटा, परंतु फिर भी उसने अपने को निर्दोषी बतलाया। वह बोली- लाल पाना तो बड़ी दूर की बात है, मैं तो इतना भी नहीं जानती कि लाल कैसा होता है? उसका क्या रंग है। तब रूपचंद की ऑखे खुली औश्र उसने अपने मन में अनुमान किया कि यह सारा फरेब भाई का रचा हुआ है। लालच में आकर लाल को अपनी भाभी को नहीं दिया। अब मेरे पूछने पर उस पर दोषारोपण करता है। वह इस फर्याद को लेकर बीरबल के पास गया और उसकी अदालत में दरख्‍वास्‍त लगाई। बीरबल ने निश्चित तिथि पर फूलचंद को उसके शाखियों के सहित तलब किया। इधर रूपचन्‍द को भी उसकी स्‍त्री के सहित बुलाया। पहले उसने रूपचंद और उसकी स्‍त्री का बयान लिया फिर उन्‍हें अलग-अलग स्‍थानों पर बैठने की आज्ञा देकर फूलचंद के साखियों को तलब किया- जब वे आये तो बीरबल ने पूछा- देखो भाई! जो मैं आप लोगों से पूछता हूँ उसका ठीक-ठीक उत्‍तर देना, नहीं तो यदि बात झूठी जान पड़ेगी तो दोष के उपयुक्‍त दण्‍ड पावोगे। क्‍या तुमने फूलचंद को रूपचंद की स्‍त्री को लाल देते हुये अपनी ऑंखों से देखा था? उन साखियों ने फूलचंद का लाल देना स्‍वीकार किया। तब बीरबल ने सोचा- यह मसला इस प्रकार नहीं हल होगा। उन पॉंचों साखियों को भ अलग-अलग कोठरी में बंद करवा दिया और बाजार से मोम मँगवाकर सात-सात तोला उन पॉंचों को देकर हुक्‍म दिया- अच्‍छा यदि तुम लोगों ने लाल देते हुए देखा है तो इस मोम से उसी शक्‍ल का लाल बना डालो। रूपचंद की स्‍त्री को भी लाल की शक्‍ल बनाने के लिये मोम दिया गया।

जब निर्धारित समय बीत गया और सभी से लाल लेने की बारी आई तो बीरबल ने पहले उन्‍हीं दोनों भाईयों का लाल मँगवाया। उन दोनों के लालों का आकार एक सा था। तब एक एक कर पॉंचों साखियों का लाल भी मँगाकर देखा वे पॉंचो पॉंच ढंग के थे। उनमें लाल के आकार का एक भी न निकला। जब रूपचंद की स्‍त्री की तलबी हुई, भला वह बिचारी लाल का हाल क्‍या जाने पिरा चुप रह गई। बीरबल ने उससे पूछा- तू ने अपना लाल क्‍यों नहीं बनाया? वह पर्दे की आड़ से बोली- सरकार! आजतक मैं ने लाल ऑंखों से देखा भी नहीं है तो कौन सा आकार बनाकर आपको दिखलाती। बीरबल ने उसकी करतूतों से उसे निर्दोष समझा और उसको यह भी प्रकट हो गया कि यह सारी करतूत फूलचंद की ही है, केवल अपने भाई को ठगने के लिये ही यह सब प्रपंच रच रखा है। बीरबल फूलचंद के साखियों को फिर से धमकाया, परंतु वे भलीभॉंति गढ़ छोल कर तैयार किये गये थे। इसलिये उनमें से एक भी नहीं डिगा। तब बीरबल ने दो सिपाहियों को इशारे से बुलाकर कोड़ा लगाने का संकेत किया। वे दोनों चाबुक लेकर आगे आये और बीरबल के दूसरी आज्ञा की प्रतीक्षा करने लगे। यह दशा उपस्थित देख उनमें से दो साखी फूट गये और वे सत्‍य-सत्‍य बात कहने को प्रस्‍तुत हुये। उनका दूसरा बयान इस प्रकार हुआ- पृथ्‍वीनाथ! हमारा कसूर माफ किया जाय क्योकि हमने जो कुछ भी झूठ कहा है उसका कारण एक मात्र फूलचंद है। उसने ही हमलोगों को बहकाकर झूठ बोलवाया है।

बीरबल को फूलचंद का ही सारा दोष प्रतीत हुआ और उसे लक्षकर बोला- अब बता, तू क्‍या कहता है, तेरे साखियों ने अभी तेरे सामने क्‍या कहा? फूलचंद ने उत्‍तर दिया- हुजूर मार की डर से भूत भागता है, आखिर वे तो मनुष्‍य ही हैं। केवल मार से बचने के लिये ही सबों ने आपके सामने झूठ बोलना स्‍वीकार किया है। इस पर बीरबल ने कहा- तब ये मोम का पिंड लाल के आकार का क्‍यों नहीं बनालाये, यदि लाल को देखे जो जरूर बना लाते। बेशक तू झूठा है और सजा के काबिल है। बीरबर ने सिपाहियों को उसे कोड़े लगाने की आज्ञा दी। सिपाहियों ने बोनों तरु से एक एक कोड़े जमाये। रूपचंद भी ठिकाने आ गया और अपना कसूर गर्दन कर अर्ज किया- हुजूर वे लाल मेरे ही पास हैं मैं उन्‍हें अभी ला देता हूँ। लालों को मँगा कर बीरबल ने एक लाल रूपचंद को दिया और दूसरा फूलचंद के हिस्‍से का राज कोष में जमा करा दिया। फूलचंद और उसके साखियों को झूठ बोलने के कारण उचित दण्‍ड दिया गया।

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