दर्पण में मोहरें! अकबर बीरबल की कहानी

एक रात्रि में किसी मनुष्‍य को जब कि वह अचेत निद्र देवी की गोद में पड़ा-पड़ा विश्राम कर रहा था, ऐसा स्‍वप्‍न दीख पड़ा- मैं किसी किसी वेश्‍या के पास सोया हुआ हूँ। तमाम रात उसके साथ सोहबत करने के बाद दसे दस अशर्फियॉं देकर घर लौट रहा हूँ। जब वह नींद से जगा तो उसे स्‍वप्‍न की सारी बातें ज्‍यों की त्‍यों स्‍मरण रही। उस का फला फल जानने के अभिप्राय से उस मनुष्‍य ने स्‍वप्‍न की बातें अपनी मित्र मण्‍डली में चलाई। उसके मित्र कुछ ज्‍योतिषी तो थे नहीं! फल कैसे बतलाते। यह बात बढ़ते-बढ़ते उस वैश्‍या के कान तक पहुँची।

वह उस को वज्र मूर्ख समझकर उन अशर्फिर्यों को लेने की फिराक में पड़ी। उसको ज्ञात था कि मूर्ख ने इस बात को तमाम लोगों में बॉंट दिया है, गवाहों की कमी न पड़ेगी। दूसरे ही दिन वह उसके मकान पर गई और अपना नाम बतलाकर रात वाली अशर्फियॉं मॉंगने लगी। उस गरीब के घर अशर्फियों का दर्शन मिलना दुलर्भ था, देता कहॉं से। उसे झूठी कहकर नकर गया। वेश्‍या उससे जबरी करने लगी और उसे पकड़कर नकर गया। वेश्‍या उससे जबरी करने लगी और उसे पकड़कर शहर कोतवाल के पास ले गई। कोतवाल ने उनका बयान लिया। जब उसे सच झूठ का ज्ञान नहीं हुआ तो लाचार होकर उन्‍हें बीरबल के पास ले गया।

बीरबल ने बारी-बारी दोनों का बयान लिया। उनकी बातें भली-भाँति समझ-बूझकर एक दर्पण और दश अशर्फियॉं बाजार से मँगवाया। तब एक ऐनक वेश्‍या के सामने रखकर अशर्फियों को इस चालाकी से रखा कि जिससे उनका विम्‍ब दर्पण पर पड़ता रहे। इस प्रकार बीरबल ऐनक में अशर्फियों को दिखलाकर वेश्‍या से बोला- इस शीशे में की अशर्फियॉं तू ले ले। तब वेश्‍या ने कहा- भला मैं इन्‍हें कैसे ले सकती हूँ, यह तो अशर्फियों की शाया दीखती है? तब बीरबल को मौका मिला उसने उस वेश्‍या से कहा- तुम को भी तो अशर्फियों का देना उसने स्‍वप्‍न में ही स्‍वीकार किया था ना अब तूँ उससे क्‍यों मॉंग रही है?

बीरबल के न्‍याया से वेश्‍या की गरदन नीची हो गई और उसने वहॉं से खिसकने का विचार किया। उसको जाते हुए देखकर बीरबल ने कहा- क्‍यों कहॉं को चली, अपने किये का प्रतिफल लेती जा, तूने इस गरीब को नाहक परेशान किया है और इसके कार्यो में बाधा पहुँचाई है अतएव इस अपराध में तुझे दो मास का कारागृह वास करना पडे़गा। इस प्रकार दण्‍ड देकर बीरबल ने उसे तुरंत जेल भेजवा दिया और बिचारे गरीब की छुटकारा हुई।

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