एक दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा- क्यों बीरबल संसारसंसार के मनुष्यों की बुद्धि एक समान होती है वा उसमें कुछ अंतर भी होता है। बीरबल ने जवाब दिया- पृथ्वीनाथ! क्या आपने इस कहावत को नहीं सुना है- सब सयानों का एक मत। यानी और सब बातों में तो लोगों की बुद्धि में विभेद पाया जाता है, परंतु स्वार्थ सिद्धि में सबकी मति एक समान ही देख पड़ती है।
बादशाह बोला- भला यह कैसे हो सकता है कि बुद्धि तो अलग-अलग हो और विचार सबका एक हो? बीरबल ने कहा- पृथ्वीनाथ! हाथ कंगन को आरसी क्या। यदि आपको प्रमाण की आवश्यकता हो तो मैं कल ही सिद्ध करके दिखला देने को तैयार हूँ।
बादशाह ने कहा- बहुत बेहतर
दूसरे दिन प्रात: काल बीरबल ने बादशाह की अनुमति प्राप्तकर सरकारी बगीचे का एक बड़ा हौज जो पानी से लबालब भरा था रिक्त करवा दिया और सारे नगर में ढिढोरा पिटवा दिया कि सब लोग अपने-अपने घरों से एक एक घड़ा दूध लाकर हौज में भरें। फिर हौज के ऊपर एक सफेद चादर बिछवाकर उसे भलीभॉंति ढक दिया। ऐसी तरकीब कर बादशाह को देखने के लिये बुलवा भेजा। समय रात्रि का था लोगों ने विचार किया कि जब हौज में इतना घड़ा दूध पड़ेगा तो भला उसमें एकाध घड़ा चल छोड़ देने से खराबी क्या होगी। इसी विचार से प्रत्येक घरों से दूध की जगह पानी ही डाला गया। अंधेरी रात में किसी को भी न सूझा कि हौज में सभी लोग पानी ही छोड़ रहे हैं। उनका निजी अनुमान था कि मेरे सिवा अन्य नागरिक हौज को दूध ही से भर रहे हैं! यदि किसी ने साहस कर देखा भी तो चादर की सफेदी के कारण दूध का भ्रम हो गया, पानी तो नीचे छिपा हुआ था जब सबेरा हुआ तो बादशाह बीरबल के साथ हौज का दूध देखने के लिये गया। बीरबल ने बागवान को हौज की चादर उठाने की आज्ञा दी। जब चादर उठा दी गई तो हौज एकदम पानी से भरा हुआ निकला उसमें दूध का लेश मात्र भी नहीं था। यह अजीब तमाशा देखकर बादशाह दंग हो गया और उसकी समझ में न आया कि आखिर मामला क्या है। जब बीरबल से उसका कारण पूछा गया तो वह बोला- गरीबपरवर! अपने अपनी ऑंखो देख लिया अब भी ”सब सयानों का एक मत” वाली कहावत मानने को तैयार हैं या नहीं?
बादशाह ने सशंक होकर उत्तर दिया- बीरबल कहावत तो अक्षरस: सत्य प्रतीत होती है, परंतु फिर भी मैं पूर्णतया संतुष्ट नहीं हुआ हूँ अतएव इसमें और भी खोज बीन करने की आवश्यकता प्रतीत होती है। अब मैं उसका स्वयं अन्वेषण कर लूँगा तुझे कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।
बीरबल तो हृदय से बादशाह का भक्त था इसलिये चुप रह गया। दूसरे दिन जब बादशाह सोकर उठा तो उसे वही रात वाली धुन समाई। वह अन्वेषण करने के अभिप्राय से भेष बदल कर नगर की तरु चला। कई चक्कर काटने के बाद उसको एक मकान दृष्टिकग हुआ। इसकी दीवारें बहुत ऊँची न थी और न कोई टीम टाम की सजावट ही थी, परंतु मकान खूब साफ सुथरा था। बादशाह ने इसी मकान को अपने अन्वेषण का केन्द्र ठहराया और द्वार पर पहुँकर मकान की घुन्डी खड़खड़ाई। किवाड़ खुल गया। भीतर से एक आदमी ने पूछा- आप कहॉं से आये हैं और आपका यहॉं किससे और क्या प्रयोजन है?
बादशाह बोला- मैं एक मुसाफिर हूँ, कल का इस शहर में आया हूँ मैंने अपना डेरा सराय में डाला है, आज नगर देखने की इच्छा से निकला तो घूमते फिरते रास्ता भूलकर इधर आ पहुँचा, थकावट के कारण मेरे बदन में पीड़ा हो रही है इसलिये कुछ समय तक विश्राम लेकर अपनी थकावट दूर करना चाहता हूँ। बादशाह के प्रस्ताव को मकान मालिक ने स्वीकार करते हुये उसे भीतर बुला लिया और एक चारपाई दिखलाकर विश्राम करने की आज्ञा दी बादशाह चारपाई पर जा पड़ा और मकान मालिक अपना निजी काम करने लगा। जब वह सब कामों से निपट चुका तो मुसाफिर के पास आया और उससे कुछ खाने पीने का अनुरोध किया, परंतु बादशाह ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उससे मकान मालिक से आपस दारी की बातें होने लगी।
मुसाफिर (बादशाह) – भाई कल मैं इस नगर में आकर एक ढिढोरा सुना था क्या यह बराबर प्रति मास पीटा जाता है वा इसी बार पीटा गया था। मैं बड़े आचर्श्य में पड़ गया हूँ कि इस ढिढोरे से बादशाह का क्या प्रयोजन है। मकान मालिक ने उत्तर दिया- नहीं भाई, पहले ऐसा कभी नहीं सुनने में आया था, कल्ही अचानक यक नई बात सुनने में आई, मुझे इसका भेद कुछ भी नहीं मालूम है।
उसने फिर पूछा- तो बादशाह इतने दूध को लेकर आखिरश करेगा क्या। मकान मालिक- भाई चाहे वह जो कुछ भी करे, परंतु मैं आपसे सत्य-सत्य बतलाता हूँ कि मैं तो दूध की जगह हौज में पानी डाल आया था। मैंने देखा कि शहर में जब सभी लोग दूध की तलाश में है तो इतना दूध कहां से आवेगा और यदि हजारों घड़े में इक घड़ा पानी ही डाल दूँगा तो उससे क्या होता है!
बादशाह ने मुस्कुरा कर कहा- बेशक! युक्ति तो आपने अच्छी निकाली, परंतु यह बात कही बादशाह के कानों तक पहुँचे तो फिर आपकी कौन सी दुर्गति हो, इस पर भी आपने कुछ विचार किया था? मकान मालिक ने कहा- भाई यह बात किसी प्रकार प्रकट नहीं हो सकती। बादशाह ने सोचा कि अब अपना असली स्वरूप इस पर प्रगट कर देना चाहिये ताकि अपनी धूर्तता पर इसे पश्चाताप हो। वह तुरंत अपना ऊपरी लिवास हटाकर शाही लिवास में प्रकट हुए। मकान मालिक बड़ा भयभीत हुआ और उसका मुख मलीन हो गया। तब बादशाह उसे ढाढ़स बँधाते हुए बोले- तुम घबराओ नहीं, इससे तुम्हारा कोई अनिष्ट न होगा। फिर असल बात तो यह है कि आपने आपने मुख से ही अपना दोष स्वीकार किया है, सुनो में यहॉं किसी अपराधी को दण्ड देने के अभिप्राय से नहीं आया हूँ। केवल मुझे झूठ सच की जॉंच करनी थी, जो मैं शाही लिवास में आया होता तो यह बात मुझे न मालूम होती। इस प्रकार उस मकानदार को निर्भय कर बादशाह अपने चेहरे को फिर नकली लिवास में ढक लिया और उससे बिदा हो एक दूसरे घनी के घर जा पहुँचे। यह धनी अपनी दयालुता के कारण सारे नगर में विख्यात हो रहा था। बादशाह ने उससे भी अपनी वही पहली युक्ति निकाली, यानी अपने को बहुत थका मांदा बतलाकर थोड़ी देर के लिये आश्रय मॉंगा। वह रईस बादशाह की थकावट सुन दयाद्र होकर बोला- मियॉं मुसाफिर! यह घर आपका ही है, आप सानंद जितनी देर जी चाहे विश्राम कर लो, वह सामनें कई चारपाइयॉं पड़ी हुई हैं। वहॉं पर आपको सब प्रकार का सुपास मिलेगा।
बादशाह ने कहा- महाशय जी! मैं अपने भार से आपको दबाने नहीं आया हूँ, बल्कि थोड़ी थकावट मिटाकर राही हो जाऊँगा। फिर उन दोनों में देशकाल की बातें छिड़ी। बातों-बातों में फंसाकर बादशाह ने फिर उससे वही बात छेड़ी। तब रईस बोला- भाई! किफायत सभी को पसंद है, दूसरे लोगों ने चाहे भले ही दूध डाला हो, परंतु मैंने तो पानी ही डाला है। बादशाह ने कहा- परंतु इसपर आपने आगा-पीछा का विचार नहीं किया नहीं तो दूध की जगह पानी न डालते। अगर किसी प्रकार यह बात बादशाह को प्रगट हो जायगी तो आप राजाज्ञा भंग करने के अपराधी होंगे। धनाढ्य ने कहा- सिवा मेरे और आपके दूसरा कोई भी मनुष्य इस बात को नहीं जानता। यदि तुम नहीं कहोगे तो बादशाह किसी प्रकार नहीं जान सकता।
बादशाह ने अपना नकली लिवास उतार कर अलग रख दिया और उसके देखते-देखते असली लिवास में हो गया। काटो तो बदन में लहू नहीं। विचारा धनाढ्य एकदम ठिठुक गया उसके हवास गुम हो गये। तब बादशाह उसे आश्वासन देते हुए बोला- चिंता करने की कोई बात नहीं है, जैसे आपने किया है उसी प्रकार सभी लोग अपने-अपने घर किया करते हैं, परंतु उसके लिये किसी को दण्ड नहीं दिया जाता। उसे धीरज दे बादशाह शाही पोशाक बदल कर चला गया और बीरबल के पाण्डित्य की सतत प्रशंसा की।
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