बुलाता आ…
एक दिन बादशाह प्रात: काल हाथ मुँह धोकर अपने एक नौकर से बोला- बुलाता आ। लेकिन आगे का मतलब नहीं बतलाया कि फलॉं को बुलाता आ। बिचारे नौकर ने बहुतेरा मूड़ मारा, पर उसकी समझ में कुछ न आया कि आखिरस किसको ले जावे। वह निरर्थक बहुतेरे आदमियों के पास दौड़ा, आया, गया परंतु किसी की समझ में असल बात न आई कि बादशाह किसे बुलाया चाहते है।
वह विवश होकर बीरबल के घर पहुँचा और सब घटना कहकर इस बात का जिज्ञासू हुआ कि बादशा किस को बुला रहे है। बीरबल ने उससे पूछा- उस समय बादशाह क्या कर रहे थै। तब नौकर ने जवाब दिया- वे हाथ मुँह धोकर बेठे हुए थे। बीरबल ने बतलाया कि वे हाजामत बनवाना चाहते हैं, अतएव तू हज्जाम को लिवा ले जा। नौकर हज्जाम को ले गया बादशाह हज्जाम को देखकर अति प्रसन्न हुआ और उस नौकर से पूछा- यह राय तुझे किसने दी? नौकर ने कहा- पृथ्वीनाथ! जब मेरी समझ में आपकी बात न आई तो मैं बड़ा परेशान हुआ अंत में हारकर बीरबल के पास जाकर सारा किस्सा कह सुनाया। बीरबल ने कहा- बादशाह हज्जाम को बुला रहे हैं। सो मैं उन्हीं की सलाह से इस हज्जाम को ले आया हूँ। बादशाह बीरबल की कुशाग्र बुद्धि से बड़ा संतुष्ट हुआ।
मित्र मित्र में ईर्षा!
लोग कहा करते हैं कि सन्तान पर माता-पिता के खून का बड़ा असर पड़ता है। सो प्रत्यक्ष देखने में भी आया। बादशाह और दीवान के मैत्री का प्रभाव उनके लड़कों पर भी पड़ा। वे आपस में बड़े मित्र हो गए। यहॉं तक नौबत पहुँची कि वे दोनों अपना सारा कारोबार छोड़कर। मैत्री भाव का पालन करने लगे। यह बात बढ़ते-बढ़ते बादशाह के कान तक पहुँची, जिस कारण वह बहुत क्षुभित हुआ अैर उनकी मैत्री भंग करने का उपाय सोचने लगा। उसने इस काम का भार बीरबल को सुपुर्द किया। एक दिन वह भरी सभा में दीवान के लड़के को बुलाकर उसके कान से मुँह सटा कर अलग कर लिया, परंतु कहा कुछ भी नहीं। फिर लोगों को सुनाकर बोला- सावधान! इस बात को किसी दूसरे के सामने कदापि न कहना। दीवान का लड़का वहॉं से विदा होकर चुपचाप अपने घर चला गया।
जब दोनों मित्र फिर अपने समय पर एकत्रित हुए तो शाहजादे ने पूछा- कहिये मित्र! आपके कान से लगकर कल सभा में बीरबल ने क्या कहा था? तब दीवन के लड़के उत्तर दिया- मित्रवर! उसने मुझसे कहा तो कुछ भी नहीं, परंतु झूठमूठ मेरे कान से मुँह लगाकर हटा लिया। शाहजादे ने कहा- मित्रवर! आज यह नयी प्रणाली कैसी? आप तो कभी किसी बात को मुझसे छिपाव नहीं करते थे? शाहजादे के मनमें इतनेही से खटका उत्पन्न हो गया, जिससे वह थोड़े समय में ही दीवान के लड़के से पृथक हो गया और फिर कभी उससे मित्रता न की। इधर से दिल का झुकाव हट जाने से उसका मन निजी कारोबार में लग गया। बादशाह ने बीरबल की इस बुद्धिमत्ता से बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे खुश करने के लिये बहुत सा पुरस्कार दिया।
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