दिल्ली नगर एक बड़ा शहर है, उसमें सभी श्रेणी के मनुष्य निवास करते हैं। इसी शहर में एक अति दीन मनुष्य भी रहता था। वह बड़ा कंजूस था। कंजूसी के कारण धीरे-धीरे इसके पास बहुतेरी मुहरें इकट्ठी को गई। जब उसे मुहरों को घर में रखने से चोरी हो जाने की आशंका हुई तो उन को एक छोटे से वक्स में बंद कर एक विस्तृत मैंदान में आशपल्लव के नीचे गढ़ा खोदकर गाढ़ आया ताकि उसे कोई चुरा न सके। उसकी देखरेख करने के लिये कभी-कभी उस वृक्ष तले जाकर गुपचुप लौट आता।
एक दिन उसका द्रव्य वहॉं से गायब हो गया, और जब वह नित्य के अनुसार पेड़ तले अपना द्रव्य देखने गया तो क्या देखता ळै कि वह जगह खुदी पड़ी है, वहॉं द्रव्य का नामो निशान तक नहीं है। मारे चिन्ता के छाती पीट-पीट कर रोने और चिल्लाने लगा। इस प्राकर बड़ी देर तक कुँहुक-कुँहुक कर रोता रहा, जब थककर लाचार हो गया तो हृदय को ढाढ़स देते हुए कुछ शांत हुआ। वह रात्रि चिन्तना करते ही बीत गई। दूसरे दिन साहस कर बादशाह की अदालत में गया। वहॉं के कुछ दरबारियों की सम्मति से एक कागज पर अपनी विपत्ति गाथा लिखकर बादशाह के पास पेश किया। बादशाह उसका समाचार पढ़कर बडे़ चिन्तित हुए। सूमड़ा उनके सामने और भी फूट-फूटकर रोने लगा।
इसकी चिल्लाहट और रूलाई से सारा दरबार घबड़ा उठा सब लोग अपना-अपना कामकाज बंद कर एकमात्र उसकी दर्द भरी रूलाई सुनने लगे। बादशाह के पूछने पर उस दु:खित सूमड़े ने अपना आद्योपान्त समाचार कहकर गिडगिड़ाता हुआ बोला- गरीबपरवर! मैं बेहद लुट गया, मेरे निर्वाह के लिये अब मेरे पास एक कौड़ी भी नहीं है, क्योंकर जीवन-रक्षा करूँगा। बादशाह का हृदय पिघल गया खजांजी को हुक्म दिया- जब तक इसका द्रव्य नहीं मिलता तब तक इसे खाने पहनने को दरबार से दिया जाय। फिर सूमड़े को जॉंच कराने की तसल्ली देकर बादशाह ने दूसरा कार्यारम्भ किया।
जब सब कामों से निश्चिन्त होकर बादशाह और बीरबल संध्या समय एकत्रित हुए तो बादशाह सूमड़े के संबंध की बातें बतलाकर बोला- बीरबल! इसका खेज कराना बड़ा जरूरी है। यदि धन न मिला तो सूमड़ा रोते-रोते अपना प्रण गँवा देगा। बीरबल ने कहा- पृथ्विनाथ! मैं खोज कराकर उसका द्रव्य यथाशीघ्र ढूँढ निकालने की कोशिश करूंगा। जब बादशाह को कुछ शांति मिली और फिर बीरबल के सहित महल में दाखिल हुआ। वे एक अलग कमरे में बैठकर आपस में गुप्त परामर्श करने लगे। कुछ देर बाद बीरबल को एक युक्ति सूझी और वह उसे बादशाह से कहकर सुनाया।
उसकी युक्ति से बादशाह भी सहमत हो गया और उसे तत्क्षण कार्यान्वित करने के लिये बीरबल को आज्ञा दी। बीरबल का कार्यारम्भ हुआ।
वह बहुतेरे वैद्य हकीमों को बुलावा भेजा, जब वे आये तो उन से पूछा- आपको जड़ी बूटियों का हाल भली भांति मालूम है- यदि न भी मालूम हो तो एक हफ्ते में छानबीन कर बतलावें कि आशापल्लव की पत्तियॉं और उसकी जड़ किन-किन दवाओं में काम आती है? बीरबल की आज्ञा मानकर सब वैद्य लोट गये और धर पहुँचकर उसके अनुसंधान में यथासक्य कोशिश करने लगे।
जब सप्ताह का अंतिम दिन आया तो अपनी-अपनी सम्मति देने के लिये दरबार में उपस्थित हुए। सभी ने अपनी खोज का पृथक-पृथक वर्णन किया, परंतु बीरबल के मतलब की बात किसीने नहीं बतलाई। तब उनमें से एक सर्वश्रेष्ठ वैद्य बोला- दीवानजी! आपकी आज्ञानुसार मैंने भी अपने भरसक अनुसांधन किया है। बड़ी खोजबीन के पश्चात् मुझे निघन्टु से एक बात मिली है। सुस्त्रुत और निघन्टु में लिखा है कि आशापल्लव के पत्ते का चूर्ण बना कर देने से पीलिया रोग वाले को तत्काल अरोग्य-लाभ होता है और जलन्धर वाले रोगी को इसकी जड़ की धूनी देने से जलन्धर का रोग जड़ से जाता रहता है।
बीरबल ने पूछा- क्या आप बतला सकते है कि इस महीने के अंतर्गत कितने लोग जलन्धर के रोग से ग्रसित हुए थे और उससे बचने के लिये उन रोगियों ने किन-किन औषधियों का सेवन किया थ। इसका ठीक-ठीक अनुसंधन कर आप लोग पुन: एक हफ्ते के बाद मुझसे मिलें और सारी बातों को पूरा-पूरा रिपोर्ट दें।
वैद्यों ने घर पहुँचकर हर प्रकार से खोजबीन कर आठवें दिन फिर दरबार में उपस्थित हुए। एक वैद्य ने कहा- पृथिवीनाथ! इस मांस में केवल चार रोगियों की दवा की गई थी जिसमें एक रोगी को आशापल्लव के जड़ की धूनी से आरोग्य लाभ हुआ था।
तब बीरबल ने पुन: प्रश्न किया- अच्छी बात है, अब बतलावो कि इसकी जड़ तुम लोग कहॉं-कहॉं से लाये थे, ध्यान रहे कि झूठ बोलने वाले को कठिन दण्ड दिया जायेगा। बीरबल की ऐसी सख्ती देखकर विचारे वैद्यों के रोंगटे खड़े हो गये, उनमें से एक जो आशापल्लव के जड़ का इस्तेमाल किये था, डरकर बोला- महाशयजी! मेरा नौकर उसको जंगल से खोद लाया था, मेरा अपराध क्ष्ामा किया जाय, आगे फिर ऐसा न करूंगा। बीरबल बोला- पहले उस नौकर को उपस्थित करो फिर जैसा होगा उसपर आगे विचार किया जायेगा। वैद्य ने उसका पता ठिकाना बतला दिया। तब एक अर्दली को भेजकर उसे बुलवाया गया। नौकर तुरंत हाजिर हुआ। बीरबल ने पूछा- क्या जू आशापल्लव के वृक्ष को पहचानता है?
नौकर ने उत्तर दिया- बेशक! गरीबपरवर उसे मैं बखूबी पहचानता हूँ।
बीरबल- किसी दिन तू वैद्य की आज्ञा से उसका मूल खोदकर लाया था
नौकर- हॉं पृथिवीनाथ! लाया था।
बीरबल भृकुटी चढ़ाकर बोला- क्या उस पेड़ के नीचे गड़ी अशर्फिया को तू ही खोद लाया था? बेहतरी चाहता है तो उन्हें जल्द लाकर उपस्थित कर, नहीं तो अभी तेरी चमड़ी उखाड़ ली जायगी।
नौकर बीरबल की धमकियों में आकर घबड़ा गया और कॉंपता हुआ बोला- पृथिवीनाथ! मेरा अपराध क्षमा किया जाय तो मैं उन अशर्फियों को आपके सामने ला धरूँ। बीरबल ने उसे अभयदान दिया। वह अपने घर जाकर सारी अशर्फियॉं उठा लाया। बीरबल अशर्फियों को देखकर भीतर-भीतर बड़ा प्रसन्न हुआ और उन अशर्फियों को मट्टीचूस के हवाले कर विदा किया। विचारे वैद्य छोड़ दिये गये।
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