औरत
मैं औरत हूँ, जी हाँ मैं एक औरत हूँ
मैं खूबसूरत हूँ, मैं शिक्षित हूँ, मैं समझदार भी हूँ,
मैं माँ हूँ, मैं पत्नी हूँ हाँ मैं वफादार हूँ, जी हाँ मैं वफादार भी हूँ
रसोई की हर बरनी और बच्चो के लिए किताब का ज्ञान हूँ
खोये हुए रुमाल और अखबार को ढूंढने से परेशान हूँ
पूरा दिन एक चार दीवारी का मैं गुलिस्तान हूँ
मेरे गुलिस्तान मैं आने वाले के लिए
मैं एक बेहतरीन मेज़बान हूँ
मुश्किलें बहोत हैं, ज़िन्दगी में मेरी भी,
जानते हुये भी सबकी खुशियों के लिए
उन मुश्किलों से मैं अनजान हूँ
कभी कभी लगता हैं आइना देखकर।
दर्द तो मुझे भी होता हैं आखिर मैं भी तो एक इंसान हूँ
पर भूल जाती हूँ मैं।
जब अपनों को जरुरत हो मेरी
और लगता हैं की उनके चेहरों की मुस्कान हूँ मैं
जी हाँ समझदार हूँ मैं, वफादार हूँ मैं
“मैं ” मैं नहीं।
ज़िन्दगी के रंग मंच का हमेशा मुस्कुराता
दिखने वाला एक किरदार हूँ मै।
गौर कीजियेगा हमेशा मुस्कुराता दिखने वाला किरदार हूँ मैं
हाँ मैं औरत हूँ, और वफादार हूँ मैं
अपने आशियाने की ईमानदार।
चौकीदार हूँ मैं
हाँ मैं औरत हूँ
मैं औरत हूँ “
लेखिका:- रेणुका कपूर, दिल्ली
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