स्वयं की आत्मरक्षा के लिए- सही समय पर सही बात बोलना!
“आवाज” – बोलने की ताकत, परमात्मा ने दी हैं। ईश्वर ने यह मानव देह बनायीं हैं उसके हर एक अंग का अपना महत्व हैं। जब इन्सान दुनिया में आता है, हम सब जानते है, बच्चे को पैदा होते ही उसे रुलाया जाता हैं ताकि बच्चे के कोई प्रॉब्लम तो नहीं, पता चल जाता है।
बच्चे को प्रभु आवाज देके भेजता है ताकि जब तक वह बोलना नहीं सीखे वह रो कर, चिल्ला कर अपनी जरुरत अपने माता-पिता को बता सके। कहते है न, बिना रोये माँ भी दूध नहीं पिलाती बच्चे को। कितना सही कहा है – कि इंसान को धरती पर आते ही आवाज की जरुरत होती है अपनी बात कहने को और अपनी जरुरत बताने के लिए, और अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए। बच्चा पैदा होते ही रोये नहीं तो डॉ. और परिवार को लगता है बच्चा स्वस्थ नहीं, उसके फेफड़े ख़राब है क्या, उसको कही कंठ मिला है या नहीं इत्यादि।
आवाज को शब्द परिवार के साथ रहते हुए मिलते है, और बच्चा धीरे धीरे बोलना सीखता है। पेरेंट्स कि परवरिश बच्चे के बोलने में व्यक्त होती है। जो बच्चा देखता है, आस-पास जो शब्द सुनता है मन ही मन वही सोचता है, और वह आवाज से मिलकर बच्चे के शब्द बनते जाते है।
बच्चे के बोलने से ही पता चल जाता है कि वह किस माहौल में पल रहा है। इसलिए कहते है न कि बच्चे को अच्छी समझ और अच्छा माहौल देना चाहिए ताकि उसके बोलने कि शैली और शब्द अच्छे बने और सामने वाला सुन कर मंत्र मुग्ध हो जाये।
हमने अक्सर देखा है कि हम सभी बोलते है परन्तु सही समय पर सही बात नहीं बोल पाते। अक्सर हम बच्चो को तो अच्छा बोलना सीखा देते है परन्तु जब स्वयं कि बारी आती है हम अपनी लाइफ में हर रिश्ते में उतनी ईमानदारी से बात नहीं करते और न ही रिश्तो में सही बात सही से कह भी पाते है:-
आखिर क्यू जरूरी है सही समय पर सही बात बोलना ??
1 :- परिवार में हम कभी एक दूसरे के रिश्तो में खटास न आ जाये, इसलिए मौन रह कर नजर अंदाज कर के गलत बात को भी गलत नहीं बोल पाते और सही बात को सही नहीं कह सकते। इसका परिणाम होता है कि आज भले ही खटास न हो पर वह रिश्तें अंदर से टूट जाते है और सिर्फ देखने मात्र के दिखते है, क्यूकि पेरेंट्स को लगता है बेटा बदल गया, बीवी को लगता है पति केवल उसके माता-पिता का ही है मेरे लिए सोचता ही नहीं, बच्चे सोचते है कि मम्मी-पापा तो ठीक से बात ही नहीं करते इसलिए अपने दोस्त और टीवी में BUSY रहे। और जब problems जरुरत से ज्यादा बढ़ जाती है तो ग़लतफ़हमी कि वजह से रिश्ते कांच कि तरह टूट जाते है और परिवार बिखर जाता है।
इस से बेहतर है जब छोटी छोटी बातें भी शुरू हो तभी समय पर सही को सही कहना और गलत को गलत बोलना सीखे और दुबारा एक ही गलती न करे, पति अपनी पत्नी को अपने पेरेंट्स के लिए भी अपना कर्तव्य समझा दे और सास ससुर भी बहु को समझे। पत्नी- एक बेटी भी है और एक बहु भी और एक माँ भी, सबसे ज्यादा सही समझ एक औरत की जरूरी होती है। पेरेंट्स बच्चे को समय दे और उनकी सोच को समझने का प्रयास करे ताकि बच्चे सही guidance में आगे बढे।
2 :- अक्सर प्रोफेशनल लाइफ में हम देखते है की प्राइवेट सेक्टर हो या सरकारी, ऊपरी अधिकारी निचले अधिकारी के साथ कैसा भी व्यव्हार करे, निचला अधिकारी सब सुनता रहता है बोलता कुछ नहीं! क्यू की उसे अपनी नौकरी का डर होता है, पर क्या वाकई यह सही है, क्या बिना बोले रह कर वह अपने अन्दर छिपे टैलेंट के साथ सही कर रहा है??? इंसान अपने आप को दबा-दबा कर कब तक जी पायेगा ??? इस तरह से वह नौकरी क्या, वह स्वयं ख़तम होते जा रहा है, दिन प्रतिदिन स्वयं को ज्यादा थका हुआ और चिड़चिड़ा महसूस कर रहा है।
यदि वह सही समय पर अपनी सही बात बोले तो खुद को ज्यादा खुश और ज्यादा काबिल बना सकता है, आज सही बात बोलने पर नौकरी भी चली जाये तो क्या इंसान में काबिलियत है तो आगे नौकरी और मिलेगी।
“हम है तो सब है, हम नहीं तो कुछ नहीं”, “सबसे पहले हमे स्वयं को सही बात स्वीकार करनी है तभी हम सामने वाले को सही बात बोल पाएंगे” अगर हम अपने दिल की बात अपनों से नहीं कर सकते, तो क्या सामने वाले वाकई अपने है ?? अपनों से कैसा डर?? और अपना होगा तो आप को भी समझेगा और आपकी भावनाओ को भी| सही समय पर सही बात बोल कर आप खुद को और अच्छा और हल्का महसूस करा सकते है| अपनों में कौन अपना है उसे समझ सकते है और अपनी duties को ज्यादा बेहतर निभा सकते है|
कहते हैं न- सच बोलना पर सही समय पर बोलना सही व्यक्तित्व की निशानी है!
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