प्रकृति हमे देती है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखे…
सूरज हमे रौशनी देता, हवा नया जीवन देती है…
भूख मिटने को हम सबकी, धरती माँ अन्न देती है…
पथिको को ताप्ती धुप में, पेड़ सदा देते ह छाया
फूल सुगंध देते है, हम सबको फूलों की माला…
पहाड़ गिरी ऊँचे ऊँचे, देते है औषधियों का भंडार
कल कल बहती नदिया झरने, मिटाते हमारी प्यास…
प्रकृति देती इतना कुछ बदले में हम क्या देते है?
सोच के देख मनुज तेरी इंसानियत कहाँ है???
जो पेड़ छाया फल देते, उनको तू काट रहा है…
जिन फूलों की माला तू पहने उन बगिया को मिटा रहा है…
जो धरती देती खाने को दाना, उसको बंजर बन रहा है…
ऊँचे ऊँचे आशियाने के लिए, धरती का सीना फाड़ रहा है…
जो पहाड़ रक्षा तेरी करते, उन औषधियों को हटा रहा है…
जो नदिया तेरी प्यास बुझाती, उनके रास्ते बदल रहा है…
जो प्रकृति तुझे इतना देती है, तू उसका सब कुछ चीन रहा है…
चतुर मानुष खुद तू अपने पैर पे कुल्हाड़ी मर रहा है…
अब भी वक़्त है संभल जा मनुष्य, प्रकृति से तेरा अस्तित्व है…
ध्यान रख उसका तू, तेरा जीवन उसका गिफ्ट है…
इतना अन्याय न कर प्रकृति से.. इक दिन वह तुझे मिटा देगी..
जिस दिन आएंगे बाढ़ भूकम्प, तुझे पूरा मिटा देगी… तुझे पूरा मिटा देगी…
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English Summery: Prakriti Humko Deti Hai Sab Kuch, Prakriti Par Kavita Bachon Ke Liye, Poem on Nature in Hindi by Writer Shweta Jhanwar Bhilwara Rajasthan.
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nice