यह एक राजा की कहानी है,
जिसने अपने ही 3 दरबारियों को एक ही अपराध की तीन अलग-अलग प्रकार की सजा दी।
पहले को राजा ने कुछ बर्षो का कारावास दिया,
दूसरे को देश निकाला तथा तीसरे से मात्र इतना कहा कि मुझे आश्चर्य है,
ऐसे कार्य की तुमसे मैंने कभी आपेक्षा नहीं की थी।
और जानते हैं कि इन भिन्न सजाओं का परिणाम क्या हुआ?
पहला व्यक्ति दुखी हुआ और दूसरा व्यक्ति भी, तीसरा व्यक्ति भी लेकिन उनके दुख के कारण भिन्न थे।
तीनों ही व्यक्ति अपमान और असम्मान के कारण दुखी थे लेकिन पहले और दूसरे व्यक्ति का अपमान दूसरों के समक्ष था।
तीसरे का अपमान स्वयं के समक्ष।
यह भेद बहुत बड़ा है।
पहले व्यक्ति ने थोड़े ही दिनों में कारागृह के लोगों से मैत्री कर ली और वहीं आनंद से रहने लगा।
दूसरे व्यक्ति ने भी देश से बाहर जाकर बहुत बड़ा व्यापार कर लिया और धन कमाने लगा
लेकिन तीसरा व्यक्ति क्या करता ?
उसका पश्चाताप गहरा था क्योंकि वह स्वयं के समक्ष था।
उससे शुभ की अपेक्षा की गई थी,
यही बात उसे कांटे की भांति गड़ने लगी और यही चुभन उसे ऊपर भी उठाने लगी।
उसका परिवर्तन प्रारंभ हो गया क्योंकि जो उससे चाहा था, वह स्वयं भी उसकी चाह से भर गया था।
शुभ या असुभ, शुभ के जन्म का प्रारंभ है। सत्य पर विश्वास,
उसके अंकुरण के लिए वर्षा है और सौंदर्य पर निष्ठा, सोये सौंदर्य को जगाने के लिए सूर्योदय है।
अशुभ एक दुर्घटना है और इसलिए ही उसे देखकर व्यक्ति स्वयं के समक्ष ही अपमानित भी होता है।
सूर्य बदलियों के पीछे छिप जाने से स्वयं बदलियां नही हो जाता है।
बदलियों पर विश्वास न करें। किसी भी स्थिति में नहीं।
सूर्य पर विश्वास हो तो उसके उदय में शीघ्रता होती है।
– ओशो
मनुष्य “पुण्य का फल” सुख चाहता है,
परंतु पुण्य करना नहीं चाहता!
और
“पाप का फल” दु:ख नहीं चाहता है
पर पाप छोड़ना नहीं चाहता है।
इसीलिए सुख मिलता नहीं है और दु:ख भोगना पड़ता है।
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